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आजतक की पड़ताल: नोटबंदी के 50 दिन बाद कितना कैशलेस हुआ इंडिया

सब्जी की दुकान लगाने वाले रामकिशन की मानें तो नोटबंदी से उनकी दुकानदारी की कमर भी टूट गई है. दुकान में पेटीएम या स्वाइप मशीन जैसी कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन वह अपने ग्राहकों को खाली हाथ नहीं भेजते. रामकिशन ने बताया कि अगर किसी के पास कैश ना हो तो वह बगल वाली दुकान की मदद से कार्ड स्वाइप कराकर भुगतान लेते हैं.

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सब्जी की दुकान
सब्जी की दुकान

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नोटबंदी के 50 दिन पूरे हो गए हैं और 30 दिसंबर की डेडलाइन खत्म होने का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. ऐसे में आजतक ने दिल्ली में एक विशेष पड़ताल की है. पड़ताल के जरिए ये जानने की कोशिश की आखिर 50 दिनों में भारत कितना कैशलेस हो सका है.

आठ नवंबर को नोटबंदी लागू करने की घोषणा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि नोटबंदी से काला धन खत्म होगा. दिन बीतने के साथ बयान बदलते गए और आज सरकार ने नोटबंदी को कैशलेस अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया है. इसी कैशलेस व्यवस्था की पड़ताल दिल्ली के लोधी रोड इलाके से शुरु की गई. इलाके में ज्यादातर आबादी केंद्र सरकार के कर्मचारियों की ही है. मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग बाहुल्य इस इलाके में कई दुकानों ने कैशलेस व्यवस्था को अपनाते हुए पीओएस मशीनें और पेटीएम जैसी सुविधाएं शुरू कर दी हैं.

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लोधी कालोनी के खन्ना मार्किट में किराना स्टोर चलाने वाले राज गुलाटी इलाके के ज्यादातर लोगों को राशन और घर के जरूरी सामान मुहैया कराते हैं. राज गुलाटी के पास कार्ड स्वाइप मशीन पहले से ही है लेकिन नोटंबदी के बाद इसका इस्तेमाल बढ़ गया है. इनके मुताबिक कैश की कमी के चलते लोगों ने डेबिट कार्ड और दूसरे माध्यमों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. राज गुलाटी अपने ग्राहकों से सामान के बदले चेक के जरिए भी भुगतान लेते हैं लेकिन ये जरूर मानते हैं कि नोटबंदी के बाद उनके कारोबार पर बुरा असर पड़ा है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जल्द हालात ठीक हो जाएंगे.

खन्ना मार्केट में ही सब्जी की दुकान लगाने वाले रामकिशन की मानें तो नोटबंदी से उनकी दुकानदारी की कमर भी टूट गई है. दुकान में पेटीएम या स्वाइप मशीन जैसी कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन वह अपने ग्राहकों को खाली हाथ नहीं भेजते. रामकिशन ने बताया कि अगर किसी के पास कैश ना हो तो वह बगल वाली दुकान की मदद से कार्ड स्वाइप कराकर भुगतान लेते हैं. कई खरीददारों ने भी बताया कि कैश की किल्लत आगे भी बढ़ सकती है. ऐसे में वह लोग दूसरे माध्यमों के जरिए भुगतान के इस्तेमाल की आदत डाल रहे हैं.

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इलाके के पतंजलि स्टोर में खरीदरारी कर रहे राकेश ने बताया कि वह कैश में ही भुगतान करते हैं और उन्हें अभी पेटीएम चलाना तक नहीं आता है.

दिल्ली के झंडेवालान में पड़ताल करने पर पता चला कि यहां व्यावसायिक इलाके में काम करने वाले तमाम कर्मचारी खाना खाने के लिए अलग-अलग दुकानों का रुख करते हैं. यहां चाय की दुकान लगाने वाले सोनू ने कहा कि नोटबंदी के बाद लोगों ने चाय पर भी खर्च कम कर दिया है और जो लोग आते हैं वह कैश ही देते हैं.

स्वाइप कार्ड और पेटीएम जैसी सुविधाएं के बारे में सोनू ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं कि ये सब कहां से मिलेगा और मिल गया तो उसको चलाने का खर्च उनके लिए काफी महंगा रहेगा. यहां पर ही एक चाइनीज स्टॉल पर पेटीएम और दूसरे माध्यमों से भुगतान करने की सुविधा भी है.

यहां छोले कुलचे की दुकान लगाने वाले रवि ने तो स्वाइप मशीन और पेटीएम का नाम तक नहीं सुना था लेकिन नोटबंदी के 50 दिन बीतने के बाद भी कमाई पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है.

राजधानी के पहाड़गंज इलाके में मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लोग रहते हैं इसलिए कैशलेस स्कीम की असली तस्वीर यहां से समझी जा सकती है. यहां साइकिल रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर लोगों ने कभी पेटीएम का नाम ही नहीं सुना और वो कैश के अलावा किसी और माध्यम से भुगतान नहीं लेते हैं.

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पहाड़गंज के बैटरी रिक्शा चालक भी काम पर पड़ रहे असर से परेशान हैं. लेकिन उम्मीद है कि नोटबंदी से काला धन खत्म होगा. कुछ सवारियों ने बताया कि रिक्शे वाले तो सिर्फ कैश ही लेते हैं. कई रिक्शा वालों ने कहा कि उनके पास बैंक खाता तक नहीं है ऐसे में वह कैसे डिजिटल पेमेंट ले सकते हैं.

इलाके में सब्जी बेचने वालों और दूसरे रेहड़ी पटरी वालों की हालत भी कुछ ऐसे ही है. ज्यादातर के पास बैंक खाता नहीं है, जिनके पास है वो किसी भी डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल नहीं जानते. कुछ दुकानदार इन माध्यमों का इस्तेमाल करना चाहते हैं लेकिन बुनियादी सुविधाएं और जानकारी के अभाव में अब भी कैशलेस इंडिया का हिस्सा नहीं बन पा रहे.

पड़ताल पूरी होने पर ये पता चला कि नोटबंदी के 50 दिन बीतने के बाद कैशलेस व्यवस्था की शुरूआत तो हो गई है लेकिन कैशलेस अर्थव्यवस्था की मंजिल अभी बहुत दूर दिखाई देती है.

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