नोटबंदी के बाद से ही दिहाड़ी मजदूरों का काम धंधा और ज़िन्दगी बुरी तरह प्रभावित हुई है. किसी की नौकरी चली गई तो किसी का काम बंद हो गया. नोटबंदी के लिए सरकार ने जनता से जितनी मोहलत मांगी थी वो पूरी हो चुकी हैं और वादे अनुसार सबकी ज़िन्दगी पटरी पर लौट जानी चाहिए. लेकिन क्या फैक्ट्री मज़दूरों की जिंदगी पटरी पर लौटी आजतक ने इसका रियलटी चेक किया.
नोएडा में फैक्ट्री चला रहे दीपक कुमार के मुताबिक नोटबंदी के फ़ौरन बाद उन्होंने अपने 25 कर्मचारियों की छंटनी कर दी थी, अब जो कर्मचारी बचे हैं उनको अभी सिर्फ पुरानी बकाया सैलरी ही दी हैं क्योंकि उनके पास भी कैश लिमिटेड हैं. ऑनलाइन सैलरी देने के सवाल पर दीपक जी कहते हैं कि हमारे मजदूर चाहते हैं कि हम उन्हें सैलरी कैश में ही देते है ताकि वो अपने उधार वगैरह चुका सके.
ओखला के एक अन्य फैक्ट्री मालिक सलीम ने अपने कर्मचारियों को ऑनलाइन सैलेरी देनी शुरू कर दी हैं, लेकिन अभी भी उन्होंने अपने छंटनी किये हुए मजदूरों की जगह दूसरे कर्मचारियों को नौकरी नहीं दी हैं क्योंकि अभी
धंधा और प्रोडक्शन बहुत लिमिटेड हैं और कच्चा माल बाजार भी ठप पड़ा है. ओखला में ही अपनी फैक्ट्री चला रहे रविंद्र जी का बुक बाइंडिंग और प्रिंटिंग का काम हैं उनके मुताबिक़ काम अभी चल तो रहा हैं लेकिन कुछ भी पहले
जैसा नहीं है.
हालांकि नोट बंदी के तुरंत बाद के हालात से बेहतर हैं लेकिन पूरी तरह पटरी पर नहीं हैं, मजदूरों की माने तो अभी पुरानी सैलरी तो मिल गई हैं लेकिन सैलेरी नियमित नहीं हुई हैं.