सर्दियों में हरी सब्जियां खाने का जायका बढ़ा देती हैं. लेकिन इस साल मंजर कुछ अलग है. सब्जियां हरी तो हैं, लेकिन उनकी कीमतें लाल पीली होती जा रही हैं. कुछ महीने पहले भी सब्जियों की कीमत में बेतहाशा इजाफा दर्ज किया गया था. तब जानकारों ने इसके पीछे बेमौसम हुए बारिश को जिम्मेदार बताया था, पर वर्तमान महंगाई के लिए बारिश को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
पिछले साल के मुकाबले इस साल सब्जियों की कीमतों में 30 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी है. मसलन, पिछले साल प्याज की कीमतें 35 से 40 थीं, जो वर्तमान में 65 से 70 रुपये हैं. आलू 12-15 रुपये से बढ़कर 25 से 30 रुपये हो गया है. वहीं टमाटर की कीमतें 20-30 से बढ़कर 55-65 रुपये हो गई हैं.
सब्जियों की खरीदारी कर रहे एक ग्राहक के अनुसार आज की तारीख में हरी सब्जियां खरीदना और खाना लग्जरी के बराबर है. क्योंकि जिस हिसाब से सब्जियों की कीमतों में वृद्धि हो रही है, उससे यह स्पष्ट है कि कोई सामान्य आय वाला व्यक्ति हर दिन खाने में हरी सब्जियों को शामिल करने का खर्च नहीं उठा सकता.
नोटबंदी के बावजूद इतनी महंगी नहीं थीं सब्जियां
सब्जी वालों का कहना है कि पिछले साल नोटबंदी के बावजूद सब्जियां सस्ती थीं. लेकिन इस साल सब्जियों की कीमतें 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी हैं. कई सब्जियों के दाम तो सौ रुपए प्रति किलोग्राम तक जा पहुंच चुकी हैं.
सब्जी वालों का कहना है कि जहां से सब्जी आती हैं, वहीं से सप्लाई काफी कम हो चुकी है. एक वजह ये भी कि हर साल के मुकाबले इस साल फसल कम हुई है. खासतौर से गोभी और मेथी की फसल कम हुई है. घाटे से बचने के लिए किसानों ने पैदावार में कमी कर दी और खेतों में ज्यादातर कपास उगा लिया. कुछ किसानों ने अपने ऊपर लदे कर्ज के चलते अपनी जमीनें बेच दी. ऐसे में जब जमीनें कम हो गईं तो पैदावार पर भी इसका असर हुआ. मांग ज्यादा हो और पूर्ति कम तो कीमतों का बढ़ना तो लाजमी है.