जनहित का आंदोलन... सियासी जंग का सिकंदर.. और देश की राजधानी में आम आदमी का शहंशाह... यही है अरविंद केजरीवाल की कामयाबी की कहानी.. 2013 में दिल्ली और केंद्र सरकार से मोर्चा लेने वाले केजरीवाल अब खुद सरकार बनकर बैठे हैं. केजरीवाल तो कामयाब हो गए, लेकिन आम आदमी के लिए कामयाबी की मंजिल अभी दूर है.
एक महीने में आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल ने तो बहुत कुछ हासिल कर लिया, लेकिन आम आदमी को क्या मिला? आम आदमी जो केजरीवाल की पार्टी की असली ताकत है, उसके हिस्से में क्या आया..? पिछले एक महीने ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सूरत और सीरत दोनों ही बदली दी, लेकिन दिल्ली की तकदीर में बदलाव आना अभी बाकी है..
लाखों दिल्ली वालों के सामने मुख्यमंत्री बनने से पहले और सीएम का ताज संभालने के बाद जो वादे किए थे उसे आम आदमी नहीं भूला है.
सबसे पहले बात उस दिन की, जिस दिन केजरीवाल ने खुद को अब तक के सारे मुख्यमंत्री से अलग दिखाने की कोशिश की. शपथ ग्रहण का दिन. आम आदमी के खास नेता केजरीवाल सीएम की शपथ लेने मेट्रो से गए. ये एक ऐतिहासिक लम्हा था. बेहद आम आदमी की तरह कौशांबी से मेट्रो में आए अरविंद केजरीवाल. लेकिन, इस बात की इतनी चर्चा हुई कि मुख्यमंत्री को देखने के लिए मेट्रो के अंदर और बाहर सड़कों पर बेहिसाब भीड़ आ गई. यानी केजरीवाल आम आदमी की तरह मेट्रो से तो आए लेकिन उनका ये सफर रोज मेट्रो में आने वाले आम आदमी के लिए मुसीबत बन गया.
केजरीवाल जब रामलीला मैदान पहुंचे तो हजारों आम आदमी ने उनका स्वागत किया. क्योंकि पहली बार रामलीला मैदान में नया इतिहास लिखा जा रहा था. लेकिन इतिहास बदलने के इस अंदाज ने शपथग्रहण समारोह का बजट बहुत बढ़ा दिया. आम आदमी को ये जश्न बहुत महंगा पड़ा.
मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही केजरीवाल ने सबसे पहले राजनेताओं को आम आदमी बनाने का ऐलान किया. उन्होंने अपनी पूरी कैबिनेट के लिए लालबत्ती के इस्तेमाल को रेड सिग्नल दिखा दिया. मंत्रियों ने लालबत्ती तो ठुकरा दी, लेकिन पूरी तरह वीआईपी कल्चर से दूर नहीं रह सके. वीआईपी नंबर्स की गाड़ियां इसकी गवाह हैं. इसके अलावा जो मंत्री पहले दो दिन ऑटो और मेट्रो से विधानसभा पहुंचे वो तीसरे ही दिन से गाड़ियों में आने लगे. इसे लेकर विवाद हुए. लेकिन आम आदमी को कुछ हासिल नहीं हुआ..
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की जनता के सामने एक और बड़ा ऐलान किया. बड़े-बड़े बंगलों से खुद को और अपने मंत्रियों को दूर रखने का संकल्प लिया. लेकिन आम आदमी और दिल्ली सरकार के रहनुमा खुद 10 कमरों वाले बंगले में गृह प्रवेश की तैयारी करने लगे. मुख्यमंत्री के बड़े बंगले पर विवाद हुआ तो उन्हें एहसास हुआ कि वो आम आदमी हैं. और आम आदमी तो दस कमरों वाले घर का सपना भी नहीं देख सकता.
मुख्यमंत्री ने जनता के नाम एक और संदेश दिया था. कि वो नेताओं जैसी भारी-भरकम सुरक्षा नहीं लेंगे. सरकार की दलील ये थी कि पुलिसकर्मी जनता की सुरक्षा में तैनात हों ना कि नेताओं के साथ रहें. लेकिन केजरीवाल के घर पर यूपी पुलिस की जेड सिक्योरिटी है और सचिवालय में भी भारी सुरक्षा घेरा रहता है. केजरीवाल को दो राज्यों की पुलिस सुरक्षा मिली है. लेकिन, आम आदमी को क्या मिला..?
मुख्यमंत्री मेट्रो से शपथ लेने पहुंचे... आम आदमी ने तालियां बजाईं लेकिन उनके हाथ खाली ही रहे.. मंत्रियों ने लालबत्ती छोड़ दी.. जनता को फिर भी कुछ नहीं मिला.. मुख्यमंत्री ने बड़ा घर लेने से इनकार कर दिया.. लेकिन आम आदमी को क्या मिला..? 30 दिन में सरकार एक के बाद एक कई ऐलान करती चली गई, लेकिन आम आदमी के माथे की शिकन कम नहीं हुई.. वादे ना तो अपना रास्ता ढूंढ सके हैं और ना ही उन्हें मंजिलों का पता मिल सका है.