दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कहा कि जिन फ्लैटों का आवंटन रद्द कर दिया था, उनका दोबारा आवंटन अदालत के आदेश पर वर्ष 2002 में तैयार नीति के अनुसार किया गया.
कथित घोटाले के बारे में आयी खबरों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डीडीए ने एक आधिकारिक बयान में कहा, ‘जिन आवंटनों के सिलसिले में आरोप लगाए जा रहे हैं, वे आवंटन वर्ष 2002 में तैयार नीति के अनुसार किए गए हैं.
इस नीति में यह फैसला किया गया कि पते बदल लेने के सभी मामलों में, जहां आवंटियों द्वारा अपने पते बदलने की सूचना दिए जाने के बाद भी आंवटन पत्र गलत पते पर भेज दिए गए और उसकी वजह से आवंटन रद्द हो गया, को उसी कीमत पर फ्लैट आवंटित किया जाए जो मूल मांग पत्र में दिया गया है और उस पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जाए.’
डीडीए ने कहा कि इस नीति के राहत और आवंटन का दावा करते हुए कई आवेदकों ने दावे किए. डीडीए ने कहा, ‘कुछ तो अदालत भी चले गए. करीब 150 आवंटन कुछ अदालत के निर्देश पर और असली होने के कुछ सत्यापन के बाद किए गए.’
प्राधिकरण ने कहा कि सीबीआई ने दिसंबर, 2012 में इस शिकायत का संज्ञान लिया था और करीब 100 मामलों की छानबीन की थी. तीन मामले में प्राथमिकी दर्ज की गयी. इसी बीच सीबीआई ने कहा कि आरोपी दलालों ने डीडीए अधिकारियों से साठगांठ कर यह कहते हुए आवंटियों के नाम से आवेदन दिए कि उन्होंने 1979 के बाद रिहायशी पत्ते बदल लिए थे, उन्होंने उसकी सूचना डीडीए को दी भी थी लेकिन उन्हें आवंटन पत्र नहीं मिले.
सीबीआई प्रवक्ता धारिणी मिश्रा ने कहा, ‘यह आरोप है कि कुछ डीडीए अधिकारियों ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए एवं रिकार्ड के साथ छेड़छाड़ कर इन फर्जी आवेदनों पर गौर किया एवं झूठे दावे स्वीकार लिए. आरोपी प्रोपर्टी डीलरों ने डीडीए के कुछ अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर पुरानी दरों पर कुछ एमआईजी फ्लैट आवंटित करवा लिए और फिर आरोपी दलालों ने बहुत उंची कीमत पर उन्हें खुले बाजार में बेच दिए.’