36 साल बाद भी 'रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981' के तहत रोहिणी सेक्टर-28, 29, 30, 32, 34, 35, 36, 37 में अलॉट की गई जमीन को विकसित नहीं किए जाने को लेकर इलाके के लोग बेहद नाराज हैं. आसपास के लोगों ने आगामी लोकसभा चुनाव में वोट न देने का फैसला लिया है. जंगल में बदल चुके ये आवासीय प्लॉट बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.
हजारों लोग ऐसे हैं जिन्हें मकान अलॉट किया जा चुका है लेकिन आज भी वे किराए के मकान पर रहने को मजबूर है. एक ऐसे ही अलॉटी आरके लूथरा (अध्यक्ष, रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981) का कहना है कि डीडीए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी नहीं मान रहा है. आपको बता दें कि साल 1981 में एक लाख 17 हजार प्लॉट के लिए निकाली गई इस स्कीम में कई आबंटियों की मौत हो चुकी है तो कई जवानी से अधेड़ की उम्र में आ गए हैं. ऐसे लोगों को इस स्कीम का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
आवंटियों की मानें तो रोहिणी सेक्टर-28, 29, 30, 32, 34, 35, 36, 37 में अलॉटमेंट किए क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. यहां सीवर, पेयजल, बिजली, मेडिकल, स्कूल और अस्पताल तक नहीं हैं. ऐसे में कोई भी व्यक्ति यहां घर बनाकर कैसे रह सकता है. डीडीए की इस लापरवाही का खामियाजा आबंटियों को भुगतना पड़ रहा है. 36 साल के इस लंबे इंतजार के बाद भी हजारों लोगों के घर का सपना अभी तक पूरा नहीं हो सका है. इस मामले की लड़ाई लड़ रहे रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981 एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मानें तो लंबे समय से डीडीए की नीतियों के खिलाफ उनकी लड़ाई अभी जारी है. इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल, प्रधानमंत्री, डीडीए अधिकारियों से कई बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन 36 साल के लंबे अरसे के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. दिल्ली को साफ-सुथरा बनाने और स्मार्ट सिटी बनाने का दावा करने वाली डीडीए इस स्कीम में बिल्कुल विफल साबित हो रही है. थक हार कर आबंटियों ने आगामी चुनाव में वोट न करने का फैसला लिया है.