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सच का हिसाब मांगने वाले अरविंद केजरीवाल खुद ही नहीं दे रहे RTI का जवाब

देश में आरटीआई लागू करवाने में अरविंद केजरीवाल की जबर्दस्त भूमिका रही है. लेकिन अब वह अपने ही बुने जाल में फंसते दिख रहे हैं. उनकी सरकार कई मुद्दों पर पूछे गए प्रश्नों के जवाब नहीं दे रही है. यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स ने दी है.

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अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल

देश में आरटीआई लागू करवाने में अरविंद केजरीवाल की जबर्दस्त भूमिका रही है. लेकिन अब वह अपने ही बुने जाल में फंसते दिख रहे हैं. उनकी सरकार कई मुद्दों पर पूछे गए प्रश्नों के जवाब नहीं दे रही है. यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स ने दी है.

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समाचार पत्र के मुताबिक नोएडा के देव आशीष भट्टाचार्य ने आरटीआई के तहत दो आवेदन किए. 22 विभागों का चक्कर काटने के बाद भी इनसे उन्हें कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.

भट्टाचार्य ने 2 जनवरी को अपना पहला आरटीआई दाखिल किया. उन्होंने अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके दो महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में जानकारी मांगी थी. एक फैसला हर घर को महीने में 20,000 लीटर मुफ्त पानी देने से संबंधित है और बिजली की दरों में 50 प्रतिशत की कटौती के बारे में था.

दूसरा आरटीआई 4 जनवरी को डाला गया था जिसमें नई सरकार के रामलीला मैदान में शपथ पर किए गए खर्च और सीएम के आवंटित भगवान दास रोड स्थित बंगले की मरम्मत से संबंधित था.ज्यादातर विभागों ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि यह मामला उनके अधीन नहीं आता.

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भट्टाचार्य ने बताया कि जो सवाल मैंने पूछे थे वे सीधे और आसान थे और चीफ सेक्रेटरी के ऑफिस को उसकी जानकारी होनी चाहिए थी. लेकिन सूचना देने की बजाय मेरे आवेदन को कई इधर-उधर के विभागों में भेज दिया गया. उदाहरण के लिए पहले आरटीआई को दिल्ली फायर डिपार्टमेंट को भेज दिया गया, उसके बाद उसे दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन और दिल्ली अरबन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड को भेज दिया गया. यह हश्र दूसरे आरटीआई का भी हुआ.

पूर्व सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमिश्नर शैलेश गांधी ने इस मामले को हास्यास्पद बताया और कहा कि चीफ सेक्रेटरी के ऑफिस को यह कैसे मालूम नहीं था कि कैबिनेट ने क्या फैसला किया है. उन्होंने कहा कि यह सूचना मांगने वालों को तंग करने का एक तरीका है. यह एक साधारण सा आरटीआई था जिसका जवाब मिलना चाहिए था.

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