क्या आप कभी सोच सकते हैं कि आपका 13-14 साल का बच्चा नशा करता होगा, और नशा भी सिगरेट, शराब का नहीं बल्कि हार्ड ड्रग्स जैसे कोकीन, एलसीडी और तमाम डिजाइनर ड्रग्स का? ये एक कड़वी सच्चाई है, जिसका सामना आज बहुत से स्कूल और पैरेंट्स रोजाना कर रहे हैं.
13 से 17 साल तक के स्कूल में पढने वाले बच्चे हार्ड ड्रग्स का शौक फरमा रहे हैं और पकडें जाने पर इन बच्चों को वार्निंग मिल रही है. कुछ दिनों के लिए स्कूल से सस्पेंड हो रहे हैं बहुतों को स्कूलों से निलंबित तक किया जा रहा है. मूलचंद अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. जितेंद्र नागपाल बताते हैं कि उनके पास महीने में 3-4 ऐसे बच्चे काउंसलिंग के लिए जा रहे है जो या तो स्कूल में नशा लेते पकडे गए हैं और स्कूल ने ही उन्हें काउंसलिंग के लिए भेजा है. कई बार पैरेंट्स खुद उनके नशे की आदत के बारे में जान जाते हैं और उनकी ये आदत छुडाने के लिए हमारे पास आ रहे हैं.
आपको बता दें कि इनमें से ज्यादातर बच्चे राजधानी के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित स्कूलों में पढते हैं. गंगाराम अस्पताल की मनोवैज्ञानिक डॉ. रोमा कुमार के अनुसार स्कूलों में नशा लेते पकड़े जाने पर इन बच्चों को या तो स्कूल से ही निकाला जा रहा है या फिर चेतावनी देकर काउंसलिंग के लिए हमारे पास रेफर किया जा रहा है.
इन बच्चों की काउंसलिगं करने वाले बहुत से मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक और स्कूल काउंसलर से बात करने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
13 से 17 साल के किशोर ले रहे हैं हार्ड ड्रग्स
इन बच्चों में 20 से 30 फीसदी लड़कियां शामिल हैं. स्कूलों के बाथरूम, छत के अलावा सूनसान कोने बन रहे हैं नशा लेने का अडडा. सीनियर्स से या फिर एसएमएस, फेसबुक के जरिए बच्चों को आसानी से ड्रग्स मिल रहा है. पारिवारिक कलह बच्चों में नशे की लत पडने की बडी वजह साबित हो रहे हैं. कई मामलों में फैशन, अपने को बड़ा बताने की होड़ भी बन रही है नशा लेने की वजह.
बड़े स्कूलों में सीनियर्स के ग्रुप बेचते हैं ड्रग्स
मूलचंद अस्पताल की मनोवैज्ञानिक पूजा के अनुसार जब इन बच्चों की काउंसलिंग करो तो पता चलता है कि उन्हें कितनी आसानी से ड्रग्स मिल रहे हैं. स्कूलों के अंदर बाकायदा सीनियर्स के ग्रुप बने हैं, जो बच्चों को बड़े आराम से ड्रग्स दे देते हैं. ये ड्रग्स महंगे हैं लेकिन बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पैसों की कमी कहां. हर कोई किसी तरह से इसे खरीद ही लेता है. हंसराज स्कूल की काउंसलर गीताजंली के अनुसार कई ऐसे कारण हैं, जो छोटी उम्र में ही बच्चों को ये जहर लेने पर मजबूर कर रहे हैं. इनमें से एक बड़ा कारण पारिवारिक कलह. पति-पत्नी के झगडे बच्चों को बहुत हद तक डिस्टर्ब कर देते हैं और वो जो खुशी उन्हें घर में नहीं मिलती वो उसे बाहर ढंढते हैं.
लड़कियां टशन में आकर करती हैं नशा
मनोवैज्ञानिक रुनझुन बताती हैं कि उनके पास कई छोटी उम्र की लड़कियां काउंसलिंग के लिए लाई जा रही हैं और उनसे बात करो तो बताती हैं कि उनके लड़के दोस्त नशा करते हैं और उनके जैसा बनने के लिए वो टशन में आकर नशा करती हैं. कहने का मतलब है कि जब लड़के नशा कर सकते हैं तो हम क्यों पीछे रहें. बहुत मामलों में नशा लेने के पीछे बच्चों का क्रेज भी झलकता है. वह नशे के बारे नें जानना चाहते हैं और एक बार इसे महसूस करना चाहते हैं और ये एक बार उन्हें इसका आदी ही बनाकर छोड़ता है.
शरुआत में छुड़ाई जा सकती है लत
डॉ. नागपाल के अनुसार अगर बच्चों में अचानक आए बदलाव को समय पर नोटिस कर लिया जाए तो शुऱुआत में ही बच्चों की नशे की आदत का पता लगाया जा सकता है. जैसे अगर बच्चा अकेला रहना पसंद कर रहा है, व्यवहार में एकदम से बदलाव आ गया, सोने ज्यादा लगा है, भूख लगनी बंद सी हो गई, गंदा रहने लगा है, अचानक ही नए दोस्त बन गए हों. घर से कीमती चीजें, पैसे गायब होने लगे तो आपको चौकन्ना होने की जरूरत है. क्योंकि ये सब बातें काफी हद तक बच्चे की नशा लेने की आदत की तरफ इशारा करती हैं.
बच्चों के दोस्त बनकर रहें पैरेंट्स
विशेषज्ञों के अनुसार नशे का जहर बच्चों में छोटी उम्र से ही फैल रहा है. कई मामलों में उनके पास 11-12 साल के बच्चे नशा लेने के कारण लाए जा रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि सही समय पर सही उम्र से ही बच्चों को नशे के खतरे के बारे में बताया जाए. मां-बांप उनसे खुलकर बातचीत करें. बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे सकते तो क्वालिटी समय जरूर दें. उनके दोस्तों पर जरूर नजर रखें, उससे दोस्ताना व्यवहार बना कर रखें. अगर आप ऐसा करते हैं तो यकीन मानिए बच्चा कुछ गलत हरकत करेगा तो आपको इसके बारे में जरूर बताएगा. क्योंकि उसे लगेगा कि वो एक दोस्त से बात कर रहा है जो उसे मारने-पीटने की बजाय उसे सही-गलत के बारे में बताएगा.