पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे शनिवार को आजतक के ख़ास कार्यक्रम 'सीधी बात' में मेहमान रहे. यहां उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला के सवालों के जवाब दिए. कोर्ट को लेकर किये गए सवाल पर हरीश साल्वे ने कहा कि आजकल कोर्ट का जो रवैया देख रहा हूं वो मददगार होकर चल रहा है. मीडिया में, 'कोर्ट ने राज्य/केंद्र सरकार को फटकार लगाई' जैसे शब्द नहीं सुने जा रहे हैं.
वहीं प्रभु चावला के सवाल कि ऐसा कहा जाने लगा है कि सरकार के कहने पर कोर्ट चल रही है, इस पर साल्वे ने कहा कि ऐसा कहना बिलकुल गलत है. उन्होंने कहा कि सिविल सोसायटी के हिसाब से नहीं चलने पर कोर्ट बिक गया जैसे आरोप लगाए जाते हैं. जोकि मैं सिर्फ भारत में ही देखता हूं.
कार्यक्रम में प्रभु चावला ने पूछा कि अगर राज्य या केंद्र सरकार से कोई दुखी है तो वो कोर्ट की तरफ रुख करता है. ऐसे में अगर कोर्ट नहीं सुनेगा तो लॉ अपना भरोसा खोता है. साल्वे ने कहा कि अगर कोर्ट कहता है कि हमारे पास दूसरे केस है तो आप किसी भी मामले को जरुरी नहीं बता सकते हैं. वहीं सरकार के खिलाफ भी कोर्ट ने बेहिसाब केस की सुनवाई की हैं और उसमें फैसले भी हुए हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि अदालत सुनती नहीं है या सरकार की पैरोकार होती है.
बातचीत में हरीश साल्वे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मनमोहन सिंह सरकार में दो बहुत गलत फैसले दिए. पहला टेलीकॉम दूसरा कोल. साल्वे ने कहा कि उस दौर में मनमोहन सिंह सरकार पर जो आंच आई उसकी वजह सुप्रीम कोर्ट था. उन्होंने कहा कि भारत के माहौल को देखते हुए कोर्ट को हर मामले में नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह, भारत के सबसे बेहतर प्रधानमंत्री रहे. लेकिन ऐसा कहते हुए मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं किसी भी सरकार की तरफ हूं.
बता दें कि पूर्व चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और हरीश साल्वे दोनों की पढ़ाई एक ही स्कूल में हुई है. दोनों महाराष्ट्र के नागपुर शहर में पढ़ाई करते थे. 1976 में साल्वे दिल्ली आ गए और बोबडे, मुंबई हाईकोर्ट. बाद में बोबडे हाईकोर्ट के जज बन गए और साल्वे सीनियर एडवोकेट और फिर सॉलिसिटर जनरल.
हरीश साल्वे शुरू से ही अपनी प्रतिभा की बदौलत नामी वकील रहे हैं. यही वजह थी कि उन्हें भारत सरकार ने सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया था. साल्वे, कुलभूषण जाधव सहित कई अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत सरकार की पैरवी कर देश को गौरवान्वित कर चुके हैं. भारत सरकार की विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज के आग्रह पर उन्होंने इस केस की सुनवाई के लिए सिर्फ एक रुपए फीस ली थी. देश दुनिया के नामी उद्योगपतियों और कंपनियों वोडाफोन, रिलायंस, मुकेश अंबानी, रतन टाटा जैसे सभी बड़े नामों के कानूनी मामलों की कोर्ट में नुमाइंदगी भी साल्वे ने ही की है.