दिल्ली की सियासत पर कांग्रेस की बादशाहत कायम रखने वाली शीला दीक्षित का शनिवार की शाम निधन हो गया. दिल्ली की राजनीतिक से बीजेपी को 1998 में बेदखल कर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी, जिसे 15 साल के बाद 2013 में अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने चुनौती दी थी. शीला सत्ता से बेदखल क्या हुईं, कांग्रेस दिल्ली की सियासत से पूरी तरह साफ हो गई.
शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस को दिल्ली की राजनीति से बीजेपी कभी भी उखाड़ नहीं सकी है. शीला की राजनीतिक को पहली बार चुनौती ही नहीं बल्कि सत्ता से बेदखल अरविंद केजरीवाल ने किया. अन्ना आंदोलन से निकले केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और 2013 के विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित के खिलाफ खुद चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया. केजरीवाल ने कांग्रेस को मात देने के साथ-साथ शीला जबरदस्त वोटों से नई दिल्ली सीट से हराया.
2013 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की आंधी में कांग्रेस पूरी तरफ से उड़ गई. कुल 70 सीटों में से बीजेपी 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से 5 सीटें कम होने के चलते सरकार नहीं बना सकी. वहीं आम आदमी पार्टी 28 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही और कांग्रेस को 8 सीटें मिली. ऐसे कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सीएम के पद से इस्तीफा देकर विधानसभा भंग कर दी.
इसके बाद 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बजाय अरविंद सिंह लवली को आगे किया था. इसके बावजूद कांग्रेस पूरी तरफ साफ हो गई. 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकी. दिल्ली की कुल 70 सीटों में से आम आदमी पार्टी 67 सीटें जीतने में कामयाब रही और बीजेपी को महज 3 सीटें मिली. इसके कांग्रेस की कमान अजय माकन को मिली, लेकिन पार्टी में हार का सिलसिला फिर भी नहीं रुका. माकन के नेतृत्व में 2017 में एमसीडी के चुनाव हुए तो कांग्रेस दूसरे नंबर से तीसरे स्थान पर खिसक कर चली गई.
जबकि, इस दौरान दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस को कोई चुनौती देने वाला नहीं था. दिल्ली में विधानसभा चुनाव की शुरुआत 1993 में हुई और बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई, लेकिन पांच साल में उसे तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़ गए. इसके बाद 1998 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी अपनी सत्ता नहीं बचा सकी. वहीं, शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही. 1998 में कुल 70 सीटों में से कांग्रेस को 52 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को महज 15 सीट से संतोष करना पड़ा.
शीला दीक्षित के नेतृत्व में 2003 में विधानसभा चुनाव में उतरी कांग्रेस को एक बार फिर जबरदस्त जीत मिली. 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 और बीजेपी को 20 सीटें मिलीं. इसके बाद 2008 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को 43 और बीजेपी को 23 सीटें मिली. शीला दीक्षित लगातार 15 साल मुख्यमंत्री रहीं और केरल की राज्यपाल का पद संभाला.
हालांकि कांग्रेस को दिल्ली में संजीवनी देने के लिए 2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर पार्टी की कमान शीला दीक्षित को सौंपी गई. शीला के नेतृत्व में कांग्रेस में एक बार फिर जान पड़ी और पार्टी तीसरे नंबर से दूसरे स्थान पर पहुंच गई.