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खुद बीमार पड़ा है जन औषध‍ि केंद्रों का तंत्र, सस्ती दवाएं ढूंढ़ते रह जाएंगे...

हर नागरिक स्वस्थ हो, देश में रहने वाले हर नागरिक को उच्चतम स्वास्थ्य सुविधाएं कम दामों में मिलें, कुछ इसी मकसद से खोले गए हैं जन औषध‍ि केंद्र. यह प्रधानमंत्री की ऐसी परियोजना है, जिसका लक्ष्य यह है कि समाज के गरीब तबके को भी सभी दवाइयां सस्ती कीमत पर मिल सकें.

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दिल्ली का एक जन औषध‍ि केंद्र
दिल्ली का एक जन औषध‍ि केंद्र

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हर नागरिक स्वस्थ हो, देश में रहने वाले हर नागरिक को उच्चतम स्वास्थ्य सुविधाएं कम दामों में मिलें, कुछ इसी मकसद से खोले गए हैं जन औषध‍ि केंद्र. यह प्रधानमंत्री की ऐसी परियोजना है, जिसका लक्ष्य यह है कि समाज के गरीब तबके को भी सभी दवाइयां सस्ती कीमत पर मिल सकें. लेकिन राजधानी दिल्ली में आजतक की पड़ताल से पता चलता है कि जन औषधि केंद्रों का तंत्र खुद बीमार पड़ा है और सस्ती दवाएं तो लोग ढूंढ़ते ही रह जाएंगे.

कागज के मुताबिक दिल्ली में हैं 25 केंद्र

पिछले साल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में ये ऐलान किया था कि एक साल में देशभर में अलग अलग राज्यों में 3000 ऐसे केंद्र खोले जाएंगे. राजधानी दिल्ली की अगर बात करें तो यहां बीपीपीआई यानी ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक कुल 25 केंद्र हैं. इन केद्रों को सेंट्रल, नॉर्थ, साउथ, ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ ईस्ट, नॉर्थ वेस्ट, साउथ वेस्ट, साउथ ईस्ट जैसे इलाकों में बांटा गया है. वेबसाइट के मुताबिक इन केंद्रों में 750 से भी ज्यादा दवाइयां उपलब्ध हैं. ये वो दवाइयां हैं जो आमतौर पर लोकल दवा की दुकानों के मुकाबले 80 से 90 फीसदी कम दामों पर मिलती हैं. यानी बुखार की दवाई का एक पत्ता जो आपको बाज़ार में 14-15 रुपये का मिलता है वह इन जन औषध‍ि केंद्र में करीब 2 रुपये तक का मिलेगा. इस लिस्ट में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की वो दवाइयां भी शामिल हैं जिनकी कीमत आमतौर पर बाज़ार में हज़ारों में हैं. ज़ाहिर है कि इन केद्रों का सीधा फायदा उन आम लोगों को मिलना चाहिए जो महंगी और ब्रांडेड दवाइयां नहीं खरीद सकते हैं, लेकिन क्या वाकई आम लोगों को इस सुविधा का फायदा हो रहा है? क्या वेबसाइट पर दी गई सारी दवाइयां मिल रहीं हैं.  जन-जन तक स्वास्थ्य सुविधाओं का केंद्र के दावों का सच क्या है? हमने जब इन सवालों के जवाबों की पड़ताल की तो सामने आया चौंकाने वाला सच.

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लोगों को पता ही नहीं इन केंद्रों के बारे में

 राजधानी दिल्ली में 25 केंद्र हैं. हमारी टीम ने दिल्ली के सेंट्रल, साउथ, ईस्ट और वेस्ट ज़ोन में चल रही, इन जन औषध‍ि केंद्रों की पड़ताल की और जो सच सामने निकल कर आया, वह केंद्र सरकार के दावों की कलई खोलता है. दिल्ली के दिल में बसा है राम मनोहर लोहिया अस्पताल. दिल्ली के सबसे बड़े इस अस्पताल में देशभर से लोग इलाज करवाने आते हैं. आरएमएल अस्पताल के ठीक पीछे दवाइयों की कई दुकाने हैं. इन दुकानों पर लगी भीड़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अच्छी और सस्ती दवाइयों की मरीज़ों को कितनी दरकार है. इससे भी ज्यादा हमारे लिए चौंकाने वाली बात ये थी कि आरएमएल अस्पताल के मेन गेट नंबर 4 पर ही एक जन औषध‍ि केंद्र है, तो फिर यहां पर इतनी भीड़ क्यों लगी है...  हमने जब यहां लोगों से बात की तो ज्यादातर लोगों को जन औषध‍ि केंद्र के बारे में पता ही नहीं था. दवाई लेने पहुचे पंकज ने बताया- 'मैं हमेशा दवाई यहीं से लेता हूं, मुझे नहीं पता इस केंद्र के बारे में'. वहीं मनोज ने बताया- 'केंद्र में पूरी दवाइयां नहीं मिलती हैं. 4 में से एक ही दवाई मिली है.' बाबा खड़क सिंह मार्ग पर आरएमएल के गेट नंबर 4 के सामने एक सबवे है, जहां एक जन औषध‍ि केंद्र है. यहां दुकानदार ने बताया, 'डॉक्टर और कंपाउंडर तो कुछ भी लिख देते हैं, लेकिन मैं कहां से दवाई दूंगा, सारे सॉल्ट्स हमारे पास भी नहीं होते हैं. हम कुछ दवाइयां डिमांड के हिसाब से रखते हैं.' इससे साफ पता चलता है कि डॉक्टरों और इन केंद्रों के बीच आपसी तालमेल न होने का खामियाज़ा मरीज़ो को ही उठाना पड़ रहा है.

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अभी कागजों में हैं कुछ केंद्र

 राजधानी के सबसे बड़े हॉस्पिटल का ये हाल है तो आप अंदाज़ा लगाइए कि शहर के बाकी हिस्सों में जन औषध‍ि केंद्र का क्या हाल होगा. राजधानी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में आचार्य निकेतन मार्केट में हर दो दुकानों के बाद एक केमिस्ट शॉप मिल जाएगी. बीपीपीआई की वेबसाइट के मुताबिक इस बाज़ार के शिव आरकेड में एक जन औषध‍ि केंद्र है. लेकिन यहां के स्थानीय निवासियों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. काफी मेहनत के बाद हम वेबसाइट पर दिए हुए पते पर आखिर पहुंचे तो यह देखकर दंग रह गए कि वहां कोई जन औषध‍ि केंद्र था ही नहीं. दुकानदार ने बताया, 'अभी स्टार्ट नहीं किया है, 10 दिन के बाद चालू हो जाएगा, जीएसटी की वजह से पुराना स्टॉक नहीं निकालना है.'

 जन-जन तक पहुंचने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं आम जनता तक नहीं पहुंच रही है. कहीं जानकारी की कमी तो कहीं पूरी दवाइयां नहीं. एक-एक कर जब पर्ते खुलीं तो साबित हो गया कि केंद्र सरकार की ये स्कीम वास्तव में किस हद तक कागज़ों में दौड़ रही है और कितना ज़मीन पर. साउथ दिल्ली में जब हम जन औषधि केंद्र का सच जानने पहुंचे तो हमें ढूंढ़ने पर ये मिल तो गया, लेकिन हमें इस केंद्र पर बड़ा-सा ताला लटका मिला. स्थानीय निवासी शंकर ने बताया- 'पिछले 15 दिन से ये दुकान बंद है, हमें नहीं पता कि ये क्यों बंद है'. वहीं वेस्ट दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की हालत और ज्यादा खराब थी. अस्पताल के अंदर ही जन औषध‍ि केंद्र है. यहां दवाई लेने आए अशोक ने बताया- 'डॉक्टर ने कहा था कि सारी दवाइयां यहां मिल जाएगी, लेकिन सिर्फ एक मिली है बाकी दवाई मजबूरी में बाहर से लेनी पड़ेगी'. दुकानदार ने बताया- 'पिछले 7 दिन से दवाइयां आउट ऑफ स्टॉक हैं.'

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 कुछ केंद्र सिर्फ कागजों पर मिले, कुछ मिले तो ऐसे जिन्हे ढूंढ़ना मुश्किल. जो आसानी से मिले वहां दवा नहीं मिली या फिर ताला लटका मिला. यानी आम लोगों के लिए सस्ती दवा पाना एक सपने से कम नहीं. सवाल ये है कि क्या लोगों तक इस सुविधा को मुकम्मल तरीके से पहुंचाने के साथ-साथ उसके बारे में पूरी जानकारी देना भी सरकार का फर्ज नहीं है. क्या सरकार इस योजना को और बेहतर तरीके से लागू करने का इंतज़ाम करेगी या फिर आने वाले सालों में भी लोग ढूंढते ही फिरेंगे कि सस्ती दवा कहां है?

 

 

 

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