देश का सबसे बड़ा अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जहां सोनियां गांधी इलाज कराने के लिए पहुंचती हैं, जहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी इलाज के लिए जाते हैं. जब मनमोहन सिंह बीमार पड़ते हैं, तो वो एम्स पर भरोसा करते हैं. जिस अस्पताल पर देश आंखमूंद कर भरोसा करता है, वो अस्पताल आज सबका भरोसा तोड़ रहा है. आजतक ने खुलासा किया है कि कैसे यह अस्पताल मरीजों के विश्वास के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रहा है.
एम्स आज बदहाली के अंधेरे में डूब रहा है. यह खुलासा एम्स पर आपके विश्वास को डिगा सकता है, आपको सोचने पर मजबूर कर सकता है. एम्स का ये चेहरा बेहद खतरनाक है, जो किसी भी मरीज की जिन्दगी पर भारी पड़ सकता. आज तक के खुफिया कैमरे में कैद हुआ कि कैसे एम्स की इमर्जेंसी लैब में ब्लड टेस्ट, प्लेटलेट्स टेस्ट और अन्य जरूरी टेस्ट लैब टेक्नीशियंस की जगह लैब अटेंडेंट कर रहे हैं, जिनका काम है लैब की साफ-सफाई करना.
एम्स की इमर्जेंसी लैब में ब्लड टेस्ट के लिए बेहद संवेदनशील मशीनें रखी गई हैं, जिससे खून की जांच पूरी तरह से सही हो. इन महंगी मशीनों को ठीक ढंग से चलाने के लिए टेक्नीशियंस रखे गए हैं, लेकिन यहां किसी बात का ख्याल नहीं रखा जा रहा है. स्टोर में काम करने वाला, साफ-सफाई करने वाला, मशीनों को साफ करने वाला कर्मचारी मरीजों के ब्लड सैम्पल ले रहा है. यहां ऐसे एक नहीं बल्कि कई चेहरे हैं.
खुफिया कैमरे में कैद हुई एक तस्वीर तो दंग कर देती है, जब मशीनों को साफ करने वाला माइक्रोस्कोप पर बैठकर मरीजों के खून के सैंपल की मेनुअल जांच करता कैद होता है. यही नहीं, एक साफ-सफाई करने वाला खून की जांच करने से लेकर रिपोर्ट तक बनाकर मरीज के परिजन को देता है. ये सफाई कर्मचारी फाइनल रिपोर्ट तैयार करके भी दे रहे हैं, जो कि एम्स की गाइडलाइन्स के खिलाफ है.
टेक्नीशियंस की जगह उनका काम लैब अटेंटेंड प्रदीप डबास, हॉस्पिटल अटेंडेंट राजकुमार, हॉस्पिटल अटेंडेंट यशपाल, लैब अटेंडेंट श्रीकिशन, हॉस्पिटल अटेंडेंट समीर कर्माकर, लैब अटेंडेंट निजामुद्दीन और लैब अटेंडेंट हरिओम कर रहे हैं. गौर करने वाली बात यह है कि तकरीबन ये सारे अटेंडेंट मात्र दसवीं पास हैं. इससे ज्यादा इनमें से कई अटेंडेंट स्थाई भी नहीं हैं. फिर भी एम्स के भीतर मरीजों के खून से जुड़ा सबसे जरूरी काम कर रहे हैं. डॉक्टरों के पास इनकी बनाई रिपोर्ट ही जाती है. अब जब खून की जांच और रिपोर्ट का सच ये है तो सोचिए इलाज का सच क्या होगा. इनकी रिपोर्ट के आधार पर जो इलाज होता होगा उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है.
रात के समय इमर्जेंसी लैब के सारे टेस्ट की जिम्मेदारी सफाई कर्मचारियों के कंधों पर होती है. जो टेस्ट लैब टेक्नीशियंस को करना होता है, तो उनकी गैर हाजिरी में अन्य कर्मचारी करते हैं. आजतक के कैमरे में हकीकत कैद है.
इस खबर का मकसद सोए हुए प्रशासन को जगाना है. एम्स की साख पर अगर किसी अधिकारी या विभाग की वजह से धब्बा लग रहा है तो उसकी जांच जरूरी है. इतने बड़े अस्पताल से इतनी बड़ी अनदेखी की उम्मीद नहीं की जा सकती.