सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारीदावाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने तेलंगाना उच्च न्यायलय के उस आदेश को खारिज करते हुए बीएमडब्लू इंडिया को 50 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा है, जिसमें तेलंगाना हाईकोर्ट ने ऑटो कंपनी के खिलाफ अभियोजन को रद्द कर दिया था और कंपनी को दोषपूर्ण वाहन के स्थान पर शिकायतकर्ता को नया वाहन देने को कहा था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 10 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि "इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कार निर्माता बीएमडब्ल्यू इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को सभी दावों और विवादों का फुल एंड फाइनल सेटलमेंट करते हुए 50 लाख रुपये एकमुश्त भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है. कार निर्मात को यह राशि 10 अगस्त 2024 को या उससे पहले इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर के जरिए शिकायतकर्ता को देनी होगी.'
न्यूज एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कार निर्माता कंपनी की ओर से शिकायतकर्ता को भुगतान किए जाने की शर्त पर, शिकायत को रद्द करने संबंधी उच्च न्यायालय का आदेश तथा पुराने वाहन के स्थान पर नया वाहन देने का निर्देश रद्द माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि दिये गए आदेश के अनुसार मुआवजे के तौर पर 50 लाख रुपये की राशि भुगतान के बाद शिकायतकर्ता के दावे संतुष्ट माने जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस तथ्य पर गौर किया कि जून-जुलाई 2012 में कार निर्माता ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए पुरानी कार को एक नए वाहन से बदलने की पेशकश की थी. पीठ ने कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता ने इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया था. यदि शिकायतकर्ता ने कार का उपयोग किया होता तो आज के समय में उसका मूल्य कम हो जाता. सुनवाई के दौरान बेंच को यह बताया गया था शिकायतकर्ता ने अपनी पुरानी कार डीलर को लौटा दी थी.
मामले में पीठ ने कहा कि विवाद की प्रकृति केवल डिफेक्टिव कार तक ही सीमित थी. इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए, हमारा विचार है कि विवाद शुरू होने के लगभग पंद्रह वर्ष बाद, इस स्तर पर अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देना न्याय का लक्ष्य पूरा नहीं करता है. इसलिए इसे जारी रखने के बजाय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए शिकायतकर्ता को भुगतान का आदेश देकर पर्याप्त न्याय किया जा सकता है.
22 मार्च 2012 को दिये गए हाईकोर्ट के आदेश में खामी निकालते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने एफआईआर के आधार पर धोखाधड़ी का अपराध स्थापित नहीं होने पर निष्कर्ष पर पहुंची थी. ऐसे में इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद, उच्च न्यायालय के लिए निर्माता को एक बिल्कुल नई BMW 7 सीरीज वाहन बदलने का निर्देश देना का कोई औचित्य नहीं था.
पीठ ने कहा कि कार निर्माता ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत शिकायत को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय को यह पता लगाना था कि क्या शिकायत को रद्द करने का मामला बनता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश को आंध्र प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता जीवीआर इंडिया प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने चुनौती दी है, न कि कार निर्माताओं ने. निर्माताओं ने शिकायतकर्ता को पुराने वाहन वापस करने के लिए पत्र लिखा था. ताकि, हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन हो सके.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान निर्माताओं ने कहा था कि वे उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए हर समय तैयार और इच्छुक थे. वास्तव में उन्होंने शिकायतकर्ता को पत्र लिखकर दोषपूर्ण वाहन वापस करने को कहा था, ताकि उन्हें एक नया वाहन सौंपा जा सके. पीठ ने कहा कि 25 जुलाई 2012 को लिखे पत्र में शिकायतकर्ता ने अपने वकील के माध्यम से निर्माता को सूचित किया था कि वह नई बीएमडब्ल्यू कार लेने में रुचि नहीं रखते हैं, बल्कि वह कार के मूल्य के बराबर राशि ब्याज सहित लेना चाहते हैं.
पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता ने 25 सितम्बर, 2009 को एक बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज कार खरीदी थी. शिकायतकर्ता का मामला यह है कि 29 सितम्बर 2009 को एक गंभीर खराबी देखी गई और कार को वर्कशॉप में ले जाया गया. उनका आरोप है कि 13 नवंबर 2009 को भी कार में ऐसी ही समस्या आई थी. इसके बाद 16 नवंबर 2009 को आईपीसी की धारा 418 और 420 के तहत शिकायत की गई और फिर एफआईआर दर्ज की गई. इसमें निर्माता, प्रबंध निदेशक और अन्य निदेशकों को आरोपी बनाया गया है.