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'हर मामले में लागू नहीं होगा SC/ST एक्ट', पत्रकार को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी देना अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि आरोपी का इरादा जातिगत पहचान के आधार पर व्यक्ति को अपमानित करने का न हो.

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Supreme Court. (फाइल फोटो)
Supreme Court. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने केरल के एक पत्रकार को राहत देते हुए साफ कर दिया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के खिलाफ किए गए अपमान और धमकाने वाली टिप्पणियां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा. साथ ही अदालत ने पत्रकार शाजन स्कारिया की अग्रिम जमानत को भी मंजूर कर दिया है.

केरल के दलित विधायक पीवी श्रीनिजन की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने अपने फैसले में लिखा कि अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्य का अपमान करना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत तब तक अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक आरोपी का इरादा जातिगत पहचान के आधार पर उसका अपमानित करने का न हो.

अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य का जातिसूचक शब्द बोलकर या जताकर अपमान करना, धमकी देना या प्रताड़ित करना इस 1989 के अधिनियम के तहत अपराध होता है. लेकिन इसी स्थिति में इस अधिनियम के तहत ये अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि ऐसा अपमान या धमकी इस आधार पर न हो कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है.

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कोर्ट ने दी पत्रकार को अग्रिम जमानत

केरल में मलयालम के एक ऑनलाइन न्यूज चैनल के एडिटर शाजन स्कारिया को सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया. स्कारिया पर 1989 एक्ट की धारा 3(1)(R) और 3(1)(U) के तहत सीपीएम विधायक पीवी श्रीनिजन ने मामला दर्ज कराया था.

विधायक ने संपादक पर आरोप लगाया कि उन्होंने दलित समुदाय से आने वाले कुन्नाथुनाडु के CPM विधायक पीवी श्रीनिजन को माफिया डॉन कहा था. इस मामले में ट्रायल कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था.

आरोपी स्कारिया के वकील सिद्धार्थ लूथरा और गौरव अग्रवाल की दलीलें मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST समुदाय के किसी भी व्यक्ति पर जानबूझकर की गई टिप्पणी या उसे दी गई धमकी जाति आधारित अपमान नहीं माना जाएगा.

इस मामले में पीठ को ऐसा कुछ नहीं मिला जो साबित करे कि स्कारिया ने यूट्यूब वीडियो में SC/ST समुदाय के खिलाफ दुश्मनी या नफरत को बढ़ावा देने की कोशिश की हो. वीडियो का SC या ST के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है. उनका निशाना केवल शिकायतकर्ता श्रीनिजन ही था, जिसके निजी कार्यों को निशाने पर रखते हुए माफिया डॉन कहा था. इसमें एससी-एसटी एक्ट के तहत तो कोई मामला नहीं बनता. हां, अगर श्रीनिजन चाहें तो स्कारिया पर मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं.

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इस मामले में शिकायतकर्ता सीपीएम विधायक श्रीनिजन केवल इस आधार पर 1989 एक्ट के तहत केस दर्ज करने की अपील नहीं कर सकते, क्योंकि वह अनुसूचित जाति से हैं. अदालत में पेश किए गए स्कारिया के प्रसारित वीडियो में भी यह साबित नहीं हुआ कि श्रीनिजन के प्रति की गई टिप्पणी के जरिए उसका अपमान जाति से प्रेरित था. 

'जानबूझकर अपमान या धमकी है अपराध'

अदालत ने अपने 70 पेज के फैसले में जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि केवल उन मामलों में जानबूझकर अपमान या धमकी को अपराध माना जाता है, जिन्हें दलितों के प्रति छुआछूत की प्रथा या ऊंची जातियों के अन्य दलित समाज पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए होते हैं. इन्हें 1989 के एक्ट के तहत अपमान या धमकी देने का अपराध कहा जा सकता है.

क्या है मामला

बता दें कि पत्रकार स्कारिया ने अपने चैनल पर जिला खेल परिषद के अध्यक्ष के रूप में श्रीनिजन द्वारा खेल छात्रावास के कथित कुप्रबंधन के बारे में प्रसारित समाचार वीडियो में श्रीनिजन को माफिया डॉन बताया था. इसी को लेकर विधायक श्रीनिजन ने निचली अदालत में एससी-एसटी एक्ट के तहत अपील दायर की थी. निचली अदालत और केरल हाईकोर्ट ने स्कारिया को गिरफ्तारी से बचने में कोई राहत नहीं दी. अब सुप्रीम ने केरल हाईकोर्ट द्वारा जून 2023 में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है. केरल हाईकोर्ट ने पत्रकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था.

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