सुप्रीम कोर्ट ने बिल बढ़ाने की बिजली कंपनियों की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. बिजली कंपनियों ने गुहार लगाई है कि उनपर भारी कर्ज है जिसे पूरा करने के लिए उनको रेट बढ़ाने की जरूरत है.
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हालांकि, डीईआरसी का कहना है कि कंपनियों पर कर्ज उनके गलत प्रबंधन का नतीजा है. इस बीच दिल्ली सरकार ने गुरुवार को हाईकोर्ट में कहा है कि कैग को कंपनियों के ऑडिट का अधिकार है. हाईकोर्ट ने बिजली कंपनियों को पक्ष रखने के लिए 2 मार्च तक का समय दिया है.
बिजली कंपनियों की कोर्ट से गुहार
कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि बिना बिजली की कीमत बढ़ाए सप्लाई जारी रखना मुश्किल है. बिजली कंपनी बीएसईएस का कहना है कि बिजली खरीदने में जो लागत आ रही है, उसकी भरपाई उपभोक्ता के बिलों से नहीं हो पा रही है. बीएसईएस के मुताबिक उनकी करीब 6000 करोड़ की देनदारी है इसलिए इसका भार उपभोक्ताओं तक बढ़ाना चाहिए.
इस पर दिल्ली की बिजली नियामक संस्था डीईआरसी ने तर्क दिया है कि कंपनियों की कर्ज उनके अपने गलत प्रबंधन का नतीजा है. डीईआरसी के मुताबिक ये दिक्कत सिर्फ बीएसइएस को है. जबकि नॉर्थ दिल्ली में काम कर रही दूसरी कंपनी टाटा पावर ने ऐसी कोई शिकायत नहीं की है.
सीएजी को बिजली कंपनियों के ऑडिट का अधिकार
इस बीच दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा है कि सीएजी को बिजली कंपनियों के ऑडिट का अधिकार है. दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि सेक्शन 20 के सब क्लाउज 3 के मुताबिक सीएजी को ऑडिट का अधिकार है. सरकार के मुताबिक उसकी ओर से सिर्फ 2007 से आडिट कराने की मांग की गई है. इसे रेगुलर बेसिस पर ऑडिट नहीं माना जाना चाहिए. सरकार सिर्फ ये जानना चाहती है कि साल 2007 से नियमित तौर पर जिस तरह बिजली के रेट बढ़े, उसकी जरूरत थी या नहीं.
हाईकोर्ट में तीनों बिजली कंपनियों ने कैग ऑडिट के सरकारी आदेश को चुनौती दी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली कंपनियों को अपना पक्ष रखने के लिए 2 मार्च तक का समय दिया है.