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जहांगीरपुरी: बुलडोजर से एक्शन का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, दिल्ली HC नहीं करेगा सुनवाई

दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक अन्य याचिका का जिक्र किया गया. एडवोकेट शाहरुख आलम ने हाईकोर्ट में मामले का जिक्र करते हुए तत्काल सुनवाई और अतिक्रमण हटाने पर रोक लगाने की मांग की. लेकिन अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, इसलिए हाईकोर्ट अब इस मामले में सुनवाई नहीं करेगा.

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बुधवार सुबह जहांगीरपुरी में बुलडोजर से अतिक्रमण हटाया गया.
बुधवार सुबह जहांगीरपुरी में बुलडोजर से अतिक्रमण हटाया गया.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सुबह 11:30 बजे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दी गई जानकारी
  • जिन संपत्तियों को तोड़ा जा रहा है, वे अवैध हैं: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल

दिल्ली के जहांगीरपुरी हिंसा के बाद बुधवार को तीन बुलडोजरों ने यहां अवैध निर्माण को हटाने का काम शुरू किया. मामले की जानकारी के बाद सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट दोनों ने हस्तक्षेप करते हुए MCD की कार्रवाई पर रोक लगा दी. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने सीनियर वकील दुष्यंत दवे की ओर से सुबह 11 बजे से ठीक पहले मामले का उल्लेख किए जाने के बाद यथास्थिति के आदेश जारी किए. CJI ने कहा कि फिलहाल यथास्थिति रखें. गुरुवार को मामले की अगली सुनवाई करेंगे.

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दुष्यंत दवे ने तर्क दिया कि जहांगीरपुरी इलाके में जहां कथित तौर पर दंगे हुए थे, वहां मकानों को गिराए जाने का आदेश पूरी तरह से अनधिकृत और असंवैधानिक है. दवे ने कोर्ट को बताया कि संपत्तियों के मालिकाना हक रखने वाले लोगों को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था. तोड़फोड़ दोपहर 2 बजे शुरू होनी थी, लेकिन वे जानते थे कि हम अदालत जा रहे हैं, इसलिए यह पहले ही शुरू की गई.

सुबह 11:30 बजे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दी गई जानकारी

सूत्रों के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने जहांगीरपुरी SHO, नॉर्थ MCD के मेयर और दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को सुबह 11:30 बजे कानूनी नोटिस भेजकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी दी. हालांकि, दोपहर 12 बजे तक वकीलों ने कहा कि उन्हें अधिकारियों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है और अदालत के आदेश के बावजूद अवैध निर्माण को हटाए जाने का अभियान जारी है.

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जिन संपत्तियों को तोड़ा जा रहा है, वे अवैध हैं: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल

MCD की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने तर्क दिया कि जिन संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है, वे अवैध हैं. वहीं, वकील आलम ने यह भी तर्क दिया कि निवासियों को विध्वंस अभियान की कोई सूचना नहीं दी गई थी और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. कई लोग दंगों के कारण अन्य क्षेत्रों में भाग गए हैं, कुछ जेल में हैं. ऐसे में उन्हें सूचना दिए बगैर इस तरह का अभियान कैसे चलाया जा सकता है? 

बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अवैध बुलडोजिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दो याचिकाएं दायर की थीं, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अवैध अतिक्रमणों की पहचान करने, संपत्ति मालिकों को नोटिस जारी करने और नोटिस का जवाब देने के लिए समय देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.

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