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रेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने मरे हुए शख्स को सुनाई सात साल कैद की सजा

यह जितना दिलचस्प है, उतना ही दुर्भाग्य भी. देश की कानून व्यवस्था में न्याय मिलने में हुई देरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन सोमवार को सर्वोच्च अदालत में जो कुछ हुआ, उसने कोर्ट को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की एक रिपोर्ट के बाद रेप मामले में एक शख्स को मिली 7 साल कैद की सजा वापस ले ली, क्योंकि दुर्भाग्य से दोषी की मौत तीन साल पहले ही हो चुकी है.

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नई दिल्ली स्थि‍त सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली स्थि‍त सुप्रीम कोर्ट

यह जितना दिलचस्प है, उतना ही दुर्भाग्य भी. देश की कानून व्यवस्था में न्याय मिलने में हुई देरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन सोमवार को सर्वोच्च अदालत में जो कुछ हुआ, उसने कोर्ट को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की एक रिपोर्ट के बाद रेप मामले में एक शख्स को मिली 7 साल कैद की सजा वापस ले ली, क्योंकि दुर्भाग्य से दोषी की मौत तीन साल पहले ही हो चुकी है.

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एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक, मामले में जहां आरोपी को 10 अप्रैल 2015 को कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई, वहीं उस दिन से करीब तीन साल पहले 2012 में ही उसकी मौत हो चुकी थी. कोर्ट के आदेश के बाद जब पुलिस उक्त दोषी को गिरफ्तार करने उसके गांव पहुंची तब मामले का खुलासा हुआ. स्थानीय लोगों ने बताया कि तीन साल पहले पारिवारिक रंजिश में दोषी के भाई ने ही उसकी हत्या कर दी थी. पुलिस ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में रिपोर्ट सौंपते हुए हत्या से संबंधि‍त एफआईआर और मृत्यु प्रमाण पत्र भी जमा किया है.

पुलिस की रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जिस व्यक्ति‍ के खि‍लाफ सजा का आदेश है, उसकी सुनवाई के दौरान ही मौत हो चुकी है और ऐसे में उक्त सजा को भोगने वाला कोई नहीं. रिपोर्ट मिलने के बाद सोमवार को जस्टि‍स पीसी घोष और जस्टि‍स आरके अग्रवाल की बेंच ने दोषी के खि‍लाफ कार्रवाई को बंद करने के आदेश दिए.

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साल 2006 का है मामला
जानकारी के मुताबिक, दोषी शख्स गूंगा और बहरा था. उस पर 2006 में एक नाबालिग ने रेप का आरोप लगाया था. पुलिस ने मामले में न तो पहचान परेड करवाई थी और न ही उसके खि‍लाफ कोई पुख्ता सबूत थे. लिहाजा निचली अदालत और हाई कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था. इसके बाद 2009 में नाबालिग ने एपेक्स कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को कायम रखा, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

SC ने भेजे कई नोटिस
मामले में सुनवाई को आगे बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरोपी शख्स को कई बार नोटिस जारी किया गया. लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने के बाद कोर्ट ने सुनवाई आगे बढ़ाई. कोर्ट ने एडवोकेट वंशजा शुक्ला को आरोपी का पक्ष रखने के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया. जिसके बाद अप्रैल 2015 में आरोपी को दोषी मानते हुए सजा सुनाई गई.

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