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स्वाति मालीवाल केस: बिभव कुमार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल, 100 लोगों से पूछताछ, 50 को बनाया गवाह

पुलिस हिरासत के दौरान कुमार को उनके मोबाइल फोन से कथित रूप से डिलीट किए गए डेटा को रिकवर करने के लिए दो बार मुंबई ले जाया गया था. मालीवाल ने एफआईआर में आरोप लगाया था कि 13 मई को जब वह केजरीवाल के आवास पर गई थीं

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल पर कथित हमले के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगी बिभव कुमार के खिलाफ तीस हजारी कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया.  चार्जशीट का संज्ञान लेने के बाद तीस हजारी कोर्ट 30 जुलाई को मामले पर विचार करेगी. चार्जशीट में उन्हें आरोपी बनाया गया है. कोर्ट ने बिभव कुमार की न्यायिक हिरासत भी 30 जुलाई तक बढ़ा दी है. आरोपी बिभव कुमार को आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया. दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया कि करीब 100 लोगों से पूछताछ की गई और 50 लोगों को गवाह बनाया गया. 

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चार्जशीट में जोड़ी गईं कई धाराएं 
चार्जशीट में कई धाराएं जोड़ी गईं हैं. जिनमें 341 (गलत तरीके से रोकना), 354 (किसी महिला पर हमला करना या आपराधिक बल का प्रयोग करना, उसकी लज्जा भंग करने का इरादा) 354 बी (महिला की लज्जा भंग करना) 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) 509, 201 (साक्ष्यों को गायब करना) शामिल है.

बिभव को दो बार मुंबई ले जाया गया है
पुलिस हिरासत के दौरान कुमार को उनके मोबाइल फोन से कथित रूप से डिलीट किए गए डेटा को रिकवर करने के लिए दो बार मुंबई ले जाया गया था. मालीवाल ने एफआईआर में आरोप लगाया था कि 13 मई को जब वह केजरीवाल के आवास पर गई थीं, तो बिभव कुमार ने उन्हें 7-8 बार थप्पड़ मारे और उनकी छाती, पेट और कमर पर लात मारी.

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क्या था स्वाति मालीवाल का आरोप?
दिल्ली महिला आयोग की पूर्व प्रमुख स्वाति मालीवाल ने FIR में आरोप लगाया था, 'अचानक... कुमार कमरे में घुस आए. उन्होंने बिना किसी उकसावे के मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया. उन्होंने मुझे गाली देना भी शुरू कर दिया. मैं उनके इस बर्ताव से स्तब्ध रह गई... मैंने उनसे कहा कि वे मुझसे इस तरह बात करना बंद करें और सीएम को फोन करें.'

हाई कोर्ट से नहीं मिली थी जमानत
12 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने बिभव कुमार को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उनका 'काफी प्रभाव' है और उन्हें राहत देने का कोई आधार नहीं बनता. जज ने कहा था, 'इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है तो गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है या सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है.'

जज ने कहा, 'आरोपों की प्रकृति और गवाहों को प्रभावित किए जाने की आशंका को ध्यान में रखते हुए, इस स्तर पर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं बनता. इसलिए आवेदन खारिज किया जाता है.'

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