ताज संरक्षण और विकास को लेकर बनाई गई सरकारी योजना से सुप्रीम कोर्ट सन्तुष्ट नहीं दिखा. जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच ने कहा कि दस-बीस साल के लिए योजनाएं बनाना नाकाफी है. योजनाएं ताज को सौ-दो सौ, पांच सौ साल तक सलामत रखने के लिए बनें. ऐसा दूरदर्शी विजन डॉक्यूमेंट बनाएं.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को हलफ़नामा सौंपकर बताया कि ताजमहल के संरक्षण और आगरा के विकास के लिए कई योजनाएं सरकार ने तैयार की हैं. इनमें आगरा में डीजल जनरेटर पर पाबन्दी, CNG वाहनों पर ज़ोर, प्रदूषण पर नियंत्रण और पॉलीथिन पर पाबन्दी जैसे कदम भी शामिल हैं. इसके अलावा आगरा महायोजना 2021 के तहत डबल रिंगरोड के साथ नेशनल हाइवेज को चौड़ा किया जा रहा है. इसके अलावा पौधे लगाने, प्रदूषणकारी उद्योगों की शिफ्टिंग सहित कई और योजनाए हैं, जिनसे ना केवल ताज को संरक्षित रखा जा सकेगा बल्कि पर्यटकों को भी सुविधा मिलेगी.
सरकार दरअसल ताजमहल परिसर में मल्टीलेवल पार्किंग बनाने की मंजूरी के लिए आई थी. ये अलग बात है कि कोर्ट ने सरकार को सलाह और निर्देश तो दिए पर मंज़ूरी फिर भी नहीं दी. कोर्ट ने सरकार को हड़बड़ी में योजना न बनाने की हिदायत के साथ टिप्पणी की- 'हेस्ट मेक वेस्ट', यानी हड़बड़ी से गड़बड़ी.
सरकार ने कहा कि इन योजनाओं का दायरा पूरे आगरा ज़ोन के छह ज़िलों आगरा, हाथरस, फिरोजाबाद, मथुरा, इटावा और भरतपुर तक है. भरतपुर की भरद सेंक्चुरी भी इस रेंज में है. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा योजनाओं का खाका ब्यूरोक्रेटिक है. जबकि इसमें समाज, संस्कृति, पर्यावरण और स्थापत्य के विशेषज्ञों की राय और सुझाव ज़रूरी हैं. सरकार अपनी योजनाओं में इनको ज़रूर शामिल करें. वरना जनरेटर, CNG, पॉलिथीन पर पाबन्दी जैसी योजनाएं तो फौरी उपाय हैं. स्थाई और व्यवहारिक उपाय किए जाएं ताकि ताज की शान सदियों बनी रहे.