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गुड़गांव: तरक्‍की तो की, पर समस्‍याएं भी कम नहीं

रियल एस्टेट के सहारे एनसीआर में अगर किसी शहर को सबसे ज्यादा तरक्की मिली है, तो वो है गुड़गांव. यहां पर लोगों ने रहने के लिए घर खरीदे, लेकिन अब उन्हीं घरों की बदौलत गुड़गांव के लोग करोड़पति बन चुके हैं.

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रियल एस्टेट के सहारे एनसीआर में अगर किसी शहर को सबसे ज्यादा तरक्की मिली है, तो वो है गुड़गांव. यहां पर लोगों ने रहने के लिए घर खरीदे, लेकिन अब उन्हीं घरों की बदौलत गुड़गांव के लोग करोड़पति बन चुके हैं.

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शहर की प्लानिंग रियल एस्टेट की रफ्तार से ताल नहीं मिला पाई और लोगों का घर करोड़ों के मकान में तब्दील होकर रह गया है. आखिर पैसों का गुड़ ज़्यादा मीठा है या रोजाना की ट्रैफिक की गड़बड़ ज़्यादा कड़वी है.

दो तस्वीरों में दिखाई देता एक शहर. शहर की एंट्री दो दरवाज़ों के अंतर से ही दिख जाती है. नए हिस्से में प्रवेश करते लोगों का स्वागत शानदार सड़क करती है तो पुराने हिस्से में एंट्री कूड़े के ढेर के बीच से होती है. शहर के एक हिस्से में बसता है इंडिय़ा, दूसरे में बसता है भारत. एक तरफ मौजूद हैं गगनचुंबी इमारतें और कॉरपोरेट ऑफिस. यहां मौजूद है शानो-शौकत चमक-दमक तो दूसरी ओर शहर के हर बड़े अधिकारी का दफ्तर औऱ निवास है. जिला अस्पताल है, नगर निगम का दफ्तर है, लेकिन व्यवस्था बदहाल है.

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नए गुड़गांव में मेट्रो काफी पहले पहुंच गई है. आगे भी इसके विस्तार की योजनाएं हैं. मोनो रेल बनाने की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. पुराने गुड़गांव में लोगों के हिस्से आया है तो बस स्टैंड. नए गुड़गांव के लोग शॉपिंग के लिए मॉल में जाते हैं औऱ पुराने गुड़गांव के निवासी खरीदारी के लिए लोकल बाज़ारों का रुख करते हैं. नए गुड़गांव और पुराने गुड़गांव के लोगों की समस्याएं भी अलग अलग हैं.

गुड़गांव को मिलेनियम सिटी का दर्जा दिया जाता है, क्योंकि ये शहर एयरपोर्ट के नज़दीक है. यहां पर रियल एस्टेट ने जोरदार तरक्की की है. यहां पर देश-विदेश की नामी-गिरामी कंपनियों के आलीशान दफ्तर हैं. इसी वजह से लोगों ने यहां पर घर खरीदे. उन घरों में रहने वालों को सुकून मिले या नहीं, लेकिन लाखों में खरीदे घर करोड़ों में पहुंच गए हैं. रियल एस्टेट की तरक्की ने लोगों का घर निवेश का विकल्प बनाकर रख दिया है. अगर ये वाकई घर होते तो यहां के लोगों से बात करते ही मिलेनियम सिटी की सुविधाओं की पोल ना खुलती. लोगों के मुताबिक ये मिलेनियम सिटी नहीं है, ये तो मिलियन प्रॉब्लम सिटी है. शहर की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक है. चाहे नए गुड़गांव के निवासी हों या पुराने गुड़गांव के लोग, ट्रैफिक के बदतर हालात से सब परेशान हैं.

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आखिर शहर के इस बुरे हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? क्यों एनएच 8 पर बने ये फ्लाइओवर महज 5 साल में ही रोजाना इस तरह का भयंकर जाम झेलते हैं. फ्लाइओवर के नीचे लालबत्ती पर लंबा इंतज़ार है तो एक्सप्रेस वे होने का घमंड फ्लाइओवर पर लगने वाला जाम तोड़कर रख देता है.

दरअसल, कसूर प्लानिंग का है. हरियाणा के मुख्य सचिव इंडस्ट्रयिल प्लानिंग यशवीर मलिक के मुताबिक जब तक प्लानिंग का विज़न 100 साल का नहीं होगा शहर को समस्याओं से छुटकारा नहीं मिल पाएगा. गुड़गांव में करोड़ों के घर बनाकर बेचने वाले बिल्डर्स 100 साल की प्लानिंग से इत्तफाक तो रखते हैं लेकिन साथ ही ये भी कहते हैं कि ज़रुरतों के मुताबिक प्लानिंग में बदलाव होते रहते हैं और इसी वजह से मास्टर प्लान का दायरा 10 से 20 साल का ही होता है. प्लानिंग को लेकर सरकार के पास भी सोच है. प्लानिंग को शहर से लेकर घरों तक लागू किया जाना चाहिए. इस विज़न के बावजूद गुड़गांव की ये हालत देखकर तरस ही आ सकता है. शहर के निवासी तक सवाल खड़े करते हैं मिलेनियम सिटी की प्लानिंग पर.

बात जहां से शुरू की गई थी फिर वहीं आ जाती है कि आखिर क्यों यहां की सड़कों पर जाम लगा रहता है? क्यों ये शहर के लोगों का सबसे बड़ा दर्द बन गया है? शहर में कॉल सेंटर और तमाम तरह की आईटी कंपनियों की कैब्स जाम की एक बड़ी वजह हैं. अवैध कमाई के चक्कर में ये सवारियों को बिठाती हैं. सवारियों के लिए ये सड़क पर जहां-तहां गाड़ी रोक लेते हैं और फिर पीछे तक जाम लगे तो इनकी बला से. लोगों को भी कम किराए में आरामदायक सफर और वक्त बचाने के लिहाज से ये सबसे बेहतरीन विकल्प नज़र आता है. अगर शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत सुधर जाए तो इन कैब्स से लोग भी दूरी बनाएंगे. गुड़गांव के लोगों की ये शिकायत भी है कि यहां पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहद खराब हालत में है.

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खस्ताहाल पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लोगों का सहारा ये शेयरिंग ऑटो हैं लेकिन इनके खड़े होने से लेकर चलने तक का तरीका ऐसा है कि सड़कों पर ये जाम लगाने की एक बहुत बड़ी वजह हैं. यहां की खस्ताहाल सड़कें औऱ उनमें रोज रोज होने वाले एक्सपेरीमेंट भी जाम की बड़ी वजह हैं. मेट्रो स्टेशंस के नीचे बेतरीब ढंग से खड़े ऑटो बीच में ही रुककर सवारियों को उतारती बसें, ये सब जाम की मुसीबत को बढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं करते. पुलिस की पोस्ट तो यहां पर ज़रूर बनी हुई हैं लेकिन पुलिस की तादाद इतनी कम है कि समस्या से निपटना नामुमकिन है.

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