उत्तर प्रदेश में 69000 सहायक शिक्षक भर्ती में आरक्षण संबंधित गड़बड़ घोटाले का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. जनरल वर्ग के अचयनित अभ्यर्थी विनय पांडेय और शिवम पांडेय ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. इससे पहले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने कैविएट दाखिल की थी.
बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया. इसके बाद शिक्षक सड़कों पर आ गए. प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया. इन सब के बीच अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को रोकने के लिए दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार 69000 शिक्षक भर्ती की मूल चयन सूची न बनाई जाए. इससे सामान्य वर्ग के छात्रों का अहित होगा.
एकल जज पीठ के आदेश पर हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के मुताबिक, सरकार यदि मूल चयन सूची बनाती है तो 19000 गलत तरह से लगाए गए शिक्षक इस भर्ती की सूची से बाहर हो जाएंगे.
'बेवजह देरी कर रही है सरकार'
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष 19000 सीटों पर आरक्षण घोटाले का केस लड़ रहे स्पेशल अपील 172/2023 के मुख्य पैरवीकार भास्कर सिंह एवं सुशील कश्यप ने पहले से ही अंदेशा जताया था कि सरकार की हीला-हवाली की वजह से यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक आया है. आरोप है कि सरकार लिस्ट बनाने में बेवजह देरी कर रही है.
'आरक्षण नियमावली का हुआ उल्लंघन'
शिक्षक भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27% जगह मिली है, जबकि एससी वर्ग के अभ्यार्थियों को 3.86% जगह मिली है. इसमें 21% की जगह सिर्फ 16.2% आरक्षण मिला है. शिक्षक भर्ती में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 तथा आरक्षण नियमावली 1994 का घोर उल्लंघन हुआ है.
सरकार ने इस भर्ती में 19000 सीटों पर आरक्षण का घोटाला करके इस भर्ती में ऐसे 19000 अभ्यर्थियों का चयन कर लिया है, जिन्हें इस भर्ती प्रक्रिया में होना ही नहीं चाहिए था. जिन ओबीसी-एससी के अभ्यर्थियों को इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए था. वह पिछले 4 साल से न्याय के लिए धरना प्रदर्शन करते हुए नेताओं के यहां जाकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं. मंत्रियों के जनता दरबार में प्रार्थना पत्र देने, मंत्री, विधायक, सांसद आदि से मिलकर न्याय पाने की हर जुगत लगा चुके हैं. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 13 अगस्त को 69000 शिक्षक भर्ती की पूरी लिस्ट को रद्द करते हुए बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन करते हुए 3 माह के अंदर पूरी लिस्ट को मूल चयन सूची के रूप में बनाने के आदेश दिए थे.