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6 सितंबर 1978. राजधानी दिल्ली के पॉश इलाकों में अचानक बाढ़ का पानी घुसने लगा. लोग घबराए और अपने-अपने घरों की तरफ दौड़े. कोई नीचे रखा अपना सामान उठाकर सुरक्षित जगहों पर रख रहा था तो कोई अपने बच्चों को घर की तरफ लेकर भाग रहा था. हर तरफ खौफ का मंजर था. घंटे दर घंटे बीत रहे थे और पानी का लेवल तेजी से बढ़ रहा था. देखते ही देखते पानी कई फीट तक बढ़ गया और शहर के तमाम इलाकों के लोग अपने-अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को मजबूर थे.
ये वो समय था जब राष्ट्रीय राजधानी में 100 वर्षों बाद इतनी भयंकर बाढ़ आई थी. आलम ये था कि शहर आपातकाल की स्थिति में था. टेलीफोन लाइनें बंद थीं. यमुना के ऊपर सभी पुल बंद कर दिए गए थे और बाढ़ग्रस्त इलाकों में सेना तैनात कर दी गई थी. बाढ़ के खतरे को देखते हुए दिल्ली के महारानी बाग, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, जामिया मिल्लिया और ओखला समेत कई इलाकों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी गई थी. देश की राजधानी दिल्ली से 227 किमी दूर हरियाणा का हथिनीकुंड बैराज से तब करीब 7 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया थी.
1900 के बाद राजधानी में आईं कई बाढ़
यह पहली बार नहीं था कि शहर में बाढ़ आई हो. लेकिन यह दिल्ली में आई अब तक की सबसे भीषण बाढ़ थी. उस समय नदी पुराना पुल (पुराना रेलवे पुल) पर खतरे के निशान से 2.66 मीटर ऊपर बह रही थी. स्तर 207.49-मीटर के निशान को छू गया था. 1900 के बाद दिल्ली में कई बड़ी बाढ़ आईं. 1924, 1947, 1976, 1978, 1988, 1995, 2010, 2013 में दिल्ली के तमाम इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया. अब 2023 में पहली बार है जब यमुना में जलस्तर ने 1978 का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
हजारों वर्ग किलोमीटर खरीफ फसल हुई थी बर्बाद
1978 में बाहरी दिल्ली की 40 हजार वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) से अधिक कृषि भूमि करीब दो मीटर तक पानी में डूब गई थी. बाढ़ ने खरीफ की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था. वहीं आवसीय संपत्ती से लेकर बाजारों तक को काफी नुकसान हुआ था. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 18 लोगों की जान गई थी और नुकसान का आंकलन 10 करोड़ था. इस बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हुए थे.
उस भीषण बाढ़ को याद करके आज भी सुंगरपुर निवासी देवेंद्र सिंह की आंखों में आंसू आ जाते हैं. वो बताते हैं कि कैसे उनके खेतों में खड़ी फसल बर्बाद हो गई और वह अपने घरों को छोड़कर जाने को मजबूर हो गए. इस बाढ़ के कारण ही उनके खेत दो हिस्सों में बंट गए. आज कुछ खेत यूपी की सीमा में हैं तो कुछ दिल्ली में. दोनों के बीच से गुजर रही है तो वो है यमुना नदी.
हवाई मार्ग से पहुंचाई गई थी राहत सामग्री
तब की इंदिरा गांधी सरकार ने दिल्ली को हर संभव मदद मुहैया कराने का आश्वासन दिया था. बाढ़ पीड़ितों के लिए शरणार्थी शिविरों की व्यवस्था की गई, लेकिन शिविरों में पीने के पानी की कमी एक गंभीर समस्या बनी रही. इसके अलावा बाढ़ ग्रस्त गांवों में हवाई मार्ग से खाने-पीने की आपूर्ति की जा रही थी. लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने का एकमात्र रास्ता हवाई मार्ग था. पॉलिथीन की पैकिंग में सामान पैक करके जहाजों से ही फेंका जा रहा था. इसके लिए बकायदा वायुसेना की मदद ली गई. दरअसल, दिल्ली में 1956 से लेकर 1993 तक राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था. इस दौरान केंद्र सरकार ने ही सभी स्थितियों को लेकर मोर्चा संभाला हुआ था.
तटबंधों में दरार के कारण आई भीषण बाढ़
यमुना में खतरे का निशान 1866-67 में चालू हुए पुराने रेल पुल की ऊंचाई के अनुसार निर्धारित किया गया था. उस समय जो तटबंध थे, वे केवल कम तीव्रता वाली बाढ़ को रोकने के लिए ही कारगर थे. उन पर काम 1960-70 के दशक के आसपास काम शुरू हुआ और उन्हें मजबूत करने का काम किया गया. हालांकि जब 1978 में बाढ़ आई, तब भी वे इतने मजबूत नहीं हुए थे कि यमुना के 207.49 मीटर जलस्तर को संभाल सकें. यही कारण था कि नदी और नालों के तटबंधों में जगह-जगह दरारे आईं और पानी राजधानी के रिहाइशी इलाकों में घुस गया.
सुरक्षित जगहों पर जाने की चेतावनी हुई थी जारी
उत्तरी दिल्ली में 30 गांव बाढ़ में डूब गए थे. करनाल जाने वाला जीटी रोड का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब गया था, जिसके चलते इसे यातायात के लिए बंद करना पड़ा था. शाह आलम बांध में कई जगहों पर दरार आने के कारण प्रशासन ने उत्तरी दिल्ली की सात कॉलोनियों के निवासियों को 6 सितंबर की रात को सुरक्षित स्थानों पर चले जाने की चेतावनी जारी कर दी थी. वहीं लद्दाखी बुद्ध विहार के पास यमुना नदी किनारे को चीर रही थी और किसी भी समय पानी का सैलाब इलाके में घुसने को तैयार था.
कहीं यमुना तो कहीं नाले में आई थी दरारें
उस दौरान यमुना नदी के दो तटबंधों - दाएं सीमांत बांध और बाएं सीमांत बांध में दरार के कारण मॉडल टाउन और जहांगीरपुरी सहित इंदिरानगर, मजलिस पार्क, गोपाल नगर, अलीपुर, मुखर्जी नगर, किंग्सवे कैंप, दिल्ली विश्वविद्यालय, आदर्श नगर, सिविल लाइन्स, बेला रोड, ओखला, सराय काले खां और महारानी बाग समेत कई इलाकों में बाढ़ आ गई थी. वहीं नजफगढ़ नाले में ऊफान के कारण जनकपुरी, हस्तसाल, उत्तम नगर, पंखा रोड, विष्णु गार्डन और नजफगढ़ समेत आसपास के 72 गांव भी जलमग्न हो गए थे.
1978 की बाढ़ से दिल्ली सरकार ने लिया था सबक
1978 की तबाही के बाद दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए. दाएं सीमांत और बाएं सीमांत तटबंधों का निर्माण कराया गया. इसके बाद नदी के दोनों किनारों पर तटबंध को कंक्रीट से मजबूत किया गया और इनकी ऊंचाई भी बढ़ाई गई. इसके बाद 2010 और 2013 की बाढ़ में पहले की तरह इन तटबंधों में दरार के मामले दर्ज नहीं किए गए. हालांकि निचले इलाकों में जो पानी भरा था, उसका कारण नालों और सीवरों से होने वाला बैकफ्लो था. 2010 में यमुना का स्तर 207.11 मीटर और 2013 में 207.32 मीटर पहुंच गया था.
इस साल टूटा 1978 का रिकॉर्ड
1978 में यमुना में 207.49 मीटर पानी होने के बाद बाढ़ आ गई थी. लोग दिल्ली में विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए थे. अब 45 वर्ष का पुराना रिकॉर्ड तोड़कर यमुना का जलस्तर बुधवार शाम को 6 बजे 207.81 मीटर तक पहुंच गया. दिल्ली की यमुना में इतना पानी आ चुका है कि यमुना का रिकॉर्ड टूटते ही दिल्ली सरकार ने इमरजेंसी बैठक बुला ली है. देश की राजधानी में यमुना का वॉर्निग लेवल यानी चेतावनी का स्तर 204.50 मीटर होता है और खतरे का स्तर 205.33 मीटर है. दिल्ली में अबतक साढ़े 16 हजार लोगों को रेस्क्यू करके सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है. हाथिनीकुंड बराज से लगातार पानी छोड़े जाने के कारण दिल्ली में यमुना का जलस्तर बढ़ रहा है, जिसके चलते दिल्ली पर भीषण बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.
नदी के जलस्तर के अनुसार जारी होती है चेतावनी
गौरतलब है कि लगभग हर वर्ष यमुना नदी में बाढ़ आती है, जिसकी तीव्रता कम, मध्यम या अधिक हो सकती है. पुरानी रेलवे पुल पर यमुना का सामान्य जल स्तर शुष्क मौसम के दौरान लगभग 202.00 मीटर (662 से 663 फीट) पाया जाता है. कम तीव्रता वाली बाढ़ें वे होती हैं जो चेतावनी स्तर यानी 204.22 मीटर (670.00 फीट) से नीचे होती हैं. इस प्रकार की बाढ़ के दौरान पानी आमतौर पर अपने दायरे में रहता है और जान-माल को कोई खतरा पैदा नहीं होता है.
204.22 मीटर से ऊपर और 205.44 मीटर (674.00) से नीचे जल स्तर पहुंचने पर इसे मध्यम बाढ़ के दायरे में रखा जाता है. इस प्रकार की बाढ़ में पानी दोनों तरफ बने तटबंधों को छू लेता है. इस स्तर पर यमुना में गिरने वाले अधिकांश नालों में पानी का बैक फ्लो शुरू हो जाता है और इसलिए उनके नियामकों को संचालन में लाना पड़ता है. तटबंधों की निगरानी के लिए दिन और रात में गश्त बढ़ानी पड़ती है और पहले से निर्धारित रिसाव बिंदुओं पर उचित निगरानी रखी जाती है.औ
वहीं जब नदी का स्तर 205.44 मीटर (674.00 फीट) से ऊपर चला जाता है, तो इसे उच्च बाढ़ कहा जाता है. इस प्रकार की बाढ़ के दौरान निगरानी एवं रख-रखाव का उचित ध्यान रखना होता है. बाढ़ की स्थिति और गश्ती पर उचित निगरानी रखने के लिए इस अवधि के दौरान एई और जेई का मुख्यालय स्थल पर निर्धारित किया जाना आवश्यक है. इस जलस्तर पर पानी निचलने इलाकों में घुसने लगता है और चेतावनी जारी की जाती है.