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क्या होता है गैंगस्टर एक्ट? जिसमें मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी को हुई सजा, जानिए नियम

Gangster Act में अंसारी भाईयों को जेल की सजा सुनाई गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह Gangster Act होता क्या है. पुलिस किस तरह से किसी को गैंगस्टर घोषित करती है. एक्ट के तहत किस तरह से कार्रवाई होती है, Gangster Act के क्या नियम हैं.

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मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी (File Photo).
मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी (File Photo).

माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को गैंगस्टर केस में गाजीपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया है. कोर्ट ने 10 साल की सजा के साथ ही 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है. वहीं, उनके भाई अफजाल पर भी गैंगस्टर एक्ट के 4 साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्मान लगाया गया है. इस फैसले के बाद अफजाल अंसारी की सांसदी जाना तय हो गई है. वह गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं.

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गाजीपुर की MP/MLA कोर्ट से 15 अप्रैल को ये फैसला होना था, लेकिन उस दिन सजा का ऐलान नहीं हो पाया था. साल 2007 में मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था. अब करीब 16 साल बाद इस मामले में फैसला आया है. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और एक कोयला व्यापारी के अपहरण केस के बाद दोनों भाइयों पर गैंगस्टर एक्ट लगा था.

क्या होता है गैंगस्टर (What is Gangster) ?

भारत में गिरोह बनाकर अपराध करने वाले बदमाशों के खिलाफ सरकार ने 1986 में गैंगस्टर एक्ट बनाया और लागू किया था. गैंगस्टर अधिनियम 1986 के मुताबिक, एक या एक से अधिक व्यक्तियों का समूह जो अपराध के जरिए अनुचित लाभ अर्जित करता है या इस मकसद से एक्ट में उल्लिखित अपराध करता है तो वह गैंगस्टर कहा जाता है. चाहे वह किसी भी तरह का अपराध हो. सीधे कहें तो गैंगस्टर एक अपराधी है, जो एक गिरोह का सदस्य है. ज्यादातर गिरोह संगठित अपराध का हिस्सा माने जाते हैं. गैंगस्टर शब्द भीड़ और प्रत्यय -स्टर से लिया गया है. इनके गैंग एक व्यक्तिगत अपराधी की तुलना में बहुत बड़े और अधिक जटिल अपराध करते हैं. भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के देशों में गैंगस्टर सक्रिय हैं.

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पुलिस कैसे करती है किसी को गैंगस्टर घोषित ?

जानकार बताते हैं कि हत्या, लूट, डकैती, रंगदारी वसूलना आदि जैसे संगीन अपराध में शामिल एक या एक से अधिक व्यक्ति जो अपनी जीविका अर्जित करने के लिए अपराध करते हैं. जिनका जीविका कमाने का साधन ही अपराध हो और वे अपराध करके संपत्ति अर्जित करते हैं. और वे संपत्ति अर्जित करने के मकसद से ही अपराध करते हों तो वे गैंगस्टर की श्रेणी में आ जाते हैं.

गैंगस्टर की कार्रवाई के लिए एक या एक से अधिक मुकदमें हो सकते हैं. ऐसा अपराधी जो गैंग के रूप में काम करता है और अपने साथी बदल बदलकर अलग-अलग आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है. ऐसे व्यक्ति को गैंगस्टर के तौर पर नामित करने के लिए संबंधित थाने का प्रभारी यानी एसएचओ एक चार्ट बनाता है, जिसे गैंग चार्ट कहते हैं. जानकारों के अनुसार, उस गैंग चार्ट में उस व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जो अपराध कारित करता है, उनके नाम और अपराध के विवरण दर्ज किए जाते हैं. उसमें गिरोह को संचालित करने वाले अपराधी को गैंग लीडर के तौर पर दर्शाया जाता है.

इसमें सबसे अहम बात ये है कि उन मामलों में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट लगा होना ज़रूरी है, जिसे न्यायलय में दाखिल किया गया हो. एसएचओ इस चार्ट को अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करता है. यह चार्ट सीओ, एसपी के पास होते हुए जिले के डीएम तक पहुंचता है. डीएम उस गैंग का चार्ट का अध्यन और निरीक्षण करते हैं, और अगर उन्हें लगता है कि आरोपी गैंगस्टर एक्ट के तहत आ रहा है, तो वे गैंग चार्ट को मंजूरी दे देते हैं. इस तरह से आरोपी को गैंगस्टर घोषित किया जाता है. 

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साल 2015 में मजबूत हुआ था गैंगस्टर एक्ट

उत्तर प्रदेश में तत्कालीन सरकार ने गैंगस्टर एक्ट में संशोधन किया था. उत्तर प्रदेश गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) (संशोधन) अध्यादेश 2015 को तत्कालीन राज्यपाल रामनाईक ने मंजूरी दी थी. इसके बाद गैंगस्टर एक्ट का दायरा बढ़ गया था. गैंगस्टर एक्ट में दोषी अपराधी को न्यूनतम दो साल और अधिकतम दस साल सजा दिए जाने का प्रावधान है. इससे पहले गैंगस्टर एक्ट में केवल 15 तरह के अपराध शामिल थे. लेकिन बाद में इसके तहत आने वाले अपराधों की संख्या में इजाफा किया गया.

उन अपराधों में साहूकारी विनियमन अधिनियम 1976 के अधीन दण्डनीय अपराध, गोवध निवारण अधिनियम 1955 और पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 में उपबंधों के उल्लंघन में मवेशियों के अवैध परिवहन अथवा तस्करी के कार्यों में संलिप्तता शामिल किए गए. साथ ही वाणिज्यिक शोषण, बंधुआ श्रम, बालश्रम, यौन शोषण, अंगों की तस्करी, भिक्षावृत्ति, मानव तस्करी, विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1966 के अधीन दण्डनीय अपराध, जाली भारतीय नोट का मुद्रण, परिवहन और परिचालन करना, नकली दवाओं के उत्पादन, विक्रय और वितरण में शामिल होना, आयुध अधिनियम 1959 की धारा 5, 7 और 12 के उल्लंघन में आयुध व गोला-बारूद के विनिर्माण, विक्रय और परिवहन में शामिल होना, भारतीय वन अधिनियम 1927 और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के उल्लंघन में आर्थिक लाभ के लिए वध करना, उत्पादों की तस्करी करना, आमोद तथा पणकर अधिनियम 1979 के अधीन दण्डनीय अपराध, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था और जीवन को प्रभावित करने वाले अपराध भी गैंगस्टर एक्ट के दायरे में शामिल किए गए.

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गैंगस्टर एक्ट के नए प्रावधान साल 2021 में यूपी गैंगस्टर नियमावली में नए प्रवधान शामिल किए गए. जिसके तहत पहले संपत्ति जब्त करने का प्रावधान वैकल्पिक था और ऐसे मामलों के अनुसार अलग-अलग फैसले लिए जा सकते थे. लेकिन 2021 के नए प्रावधान के मुताबिक गैंगस्टर एक्ट में संपत्ति जब्ती तो ज़रूरी बनाने के साथ-साथ डीएम के अधिकार और बढ़ा दिए गए. नए प्रावधान के मुताबिक एक ही अपराध करने पर भी गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई की जा सकती है. जबकि इससे पहले किसी आरोपी के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई करने के लिए दो या उससे अधिक मुकदमे होना जरूरी था.

नए प्रावधान के अनुसार, अब आईपीसी की धारा 376डी यानी सामूहिक दुष्कर्म, 302 यानी हत्या, 395 यानी लूट, 396 यानी डैकती और 397 यानी हत्या कर लूट जैसे संगीन मामलों में भी गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई की जा सकती है. यही नहीं, अब अगर कोई नाबालिग भी गंभीर अपराध करता है तो उसके खिलाफ भी डीएम की अनुमति से गैंगस्टर एक्ट लगाया जा सकता है.

जबकि इससे पहले नाबालिग अपराधी इस कार्रवाई से बच जाते थे. नए प्रावधान के मुताबिक गैंगस्टर एक्ट के मामले में अब जांच अधिकारी को विवेचना के दौरान या चार्जशीट दाखिल करते समय संपत्ति जब्त किए जाने की रिपोर्ट भी देनी होगी. अगर जांच अधिकारी ये रिपोर्ट नहीं देगा तो डीएम इसकी वजह एसएसपी से पूछ सकते हैं. साथ ही ऐसे मामले में डीएम जांच के आदेश भी दे सकते हैं.

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नए प्रावधान के तहत अब गैंगस्टर एक्ट में निरुद्ध होने वाले अपराधी पर दर्ज सभी मामलों की जानकारी थानेदार को थाने के गैंग चार्ट में दर्ज करनी होगी. गैंगस्टर एक्ट के मामलों में कहीं कोई लापरवाही न हो इसके लिए डीएम हर 3 महीने में, कमिश्नर हर 6 माह में और अपर मुख्य सचिव (गृह) हर साल इसकी समीक्षा करेंगे. अगर गैंगस्टर एक्ट के तहत गलत कार्रवाई की गई है, तो अब उसे वापस भी लिया जा सकता है. जांच के दौरान डीएम उसे खारिज कर सकते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला 

पिछले साल 27 अप्रैल 2022 को देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने के मकसद से बड़ा फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी आरोपी के खिलाफ पहली बार मुकदमा दर्ज होता है और वह अपराध में शामिल पाया जाता है तो भी उसके खिलाफ यूपी गैंगस्टर्स और एंटी-सोशल एक्टीविटी प्रीवेंशन एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. भले ही एक्ट की धारा 2(बी) में उल्लेखित किसी भी असामाजिक गतिविधि के लिए केवल एक अपराध, एफआईआर या आरोप पत्र दाखिल किया गया हो.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने ये फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी गैंग द्वारा किया गया एक अपराध भी गैंग के सदस्य पर गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए काफी है.
 
इस धारा के तहत होती है संपत्ति पर कार्रवाई 

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दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 83 (CRPC Section 83) फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की करने का प्रावधान करती है. CrPC की धारा 83 के मुताबिक, धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे उद्घोषणा जारी किए जाने के पश्चात् किसी भी समय, उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है. लेकिन अगर उद्घोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथपत्र द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति जिसके संबंध में उद्घोषणा निकाली जाती है.

ऐसा आदेश उस जिले में, जिसमें वह दिया गया है, उस व्यक्ति की किसी भी संपत्ति की कुर्की प्राधिकत करेगा और उस जिले के बाहर की उस व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की तब प्राधिकृत करेगा जब वह उस जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) द्वारा, जिसके जिले में ऐसी संपत्ति स्थित है, पृष्ठांकित कर दिया जाए.

अगर वह जायदाद जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, ऋण या अन्य जंगम संपत्ति हो, तो इस धारा के अधीन कुर्की (क) अभिग्रहण द्वारा की जाएगी ; अथवा (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी. (ग) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी; अथवा (घ) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे.

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अगर वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है. स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलक्टर के माध्यम से की जाएगी, जिसमें वह भूमि स्थित है. और अन्य सब दशाओं में (क) कब्जा लेकर की जाएगी; अथवा (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी.

अगर वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, जीवधन है या विनश्वर प्रकृति (Life or perishable nature) की है तो, यदि न्यायालय समीचीन समझता है तो वह उसके तुरंत विक्रय का आदेश दे सकता है और ऐसी दशा में विक्रय के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे.

इसी धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियां, कर्तव्य और दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन नियुक्त रिसीवर के होते हैं.

 

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