लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी तीनों नए क्रिमिनल लॉ बिल पास हो गए हैं. संसद के दोनों सदनों ने भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) बिल पारित किए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे'ऐतिहासिक' करार दिया है. उन्होंने कहा, ये कानून नागरिकों के अधिकारों को सर्वोपरि रखेंगे और महिलाओं- बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे. ऐसे में जानते हैं कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से लेकर भारतीय न्याय संहिता तक (BNS) के सफर में क्या नया है, क्या बाहर हो गया या बदल दिया गया है...
राज्यसभा में तीनों विधेयकों की मंजूरी के बाद अमित शाह ने कहा, आज देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है. आज भारत को अपना नया आपराधिक न्याय कानून मिल गया है. इस गौरवपूर्ण क्षण पर सभी भारतीयों को बधाई. संसद में पारित तीन विधेयक अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों की जगह लेंगे और स्वदेशी न्याय प्रणाली के दशकों पुराने सपने को साकार करेंगे. नई न्याय प्रणाली सभी को पारदर्शी और त्वरित न्याय देने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों से सशक्त होगी. इतिहास में पहली बार हमारे कानून आतंकवाद, संगठित अपराधों और आर्थिक अपराधों को परिभाषित करते हैं. कानून से बचने के हर रास्ते को रोकते हैं.
भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 में राजद्रोह से लेकर फर्जी खबरों और मॉब लिंचिंग तक में सजा के प्रावधान बदले गए हैं.
1. राजद्रोह की जगह अब देशद्रोह, क्या सजा होगी?
आईपीसी में धारा 124A में राजद्रोह को लेकर प्रावधान किया गया है. इसमें दोषी को 3 साल से लेकर उम्रकैद की सजा का प्रावधान था. इस कानून को निरस्त कर दिया है. अब बीएनएस में राजद्रोह की जगह 'देशद्रोह' लाया गया है. इसकी व्यापक परिभाषा दी गई है. देशद्रोह में प्रावधान किया गया है कि देश के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता है और इसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है. बीएनएस में धारा 150 में 'देशद्रोह' से जुड़ा प्रावधान है. इसमें कहा गया है कि 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य' को कानून के दायरे में लाया जाएगा. बीएनएस में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 7 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नया कानून सरकार की आलोचना करने पर दंडित नहीं करेगा.
शाह ने कहा, अब हम एक आजाद देश हैं. किसी व्यक्ति विशेष की आलोचना करने पर किसी को जेल नहीं जाना पड़ेगा. लेकिन देश के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता. जो लोग देश के खिलाफ बोलते हैं उन्हें जेल जाना चाहिए.
2. शादी के नाम पर धोखाधड़ी की तो सजा मिलेगी?
जी हां, अब शादी के नाम पर गुमराह करने या पहचान छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सजा होगी. BNS में धोखाधड़ी या झूठ बोलकर किसी महिला से शादी करने या फिर शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान किया गया है. भारतीय न्याय संहिता में खंड 69 में शादी के नाम पर धोखाधड़ी करने के बारे में प्रावधान है. शादी के नाम पर 'धोखेबाजी' या पहचान छिपाकर शादी करने को अपराध घोषित किया है. 'लव जिहाद' से निपटने के लिए सजा तय की गई है. क्लॉज 69 कहता है कि जो कोई भी धोखे से या महिला से शादी करने का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाता है और बाद में शादी करने से मुकर जाता है तो ऐसे मामले अपराधी की श्रेणी में आएंगे. दोषी को 10 साल तक की कारावास की सजा मिल सकती है. जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
3. नाबालिग से रेप में दोषी पाए गए तो क्या होगा?
आईपीसी में धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया है. इसमें वो 7 परिस्थितियां भी बताई गईं हैं, जब सेक्सुअल इंटरकोर्स को रेप माना जाता है. वहीं, आईपीसी में धारा 376 में रेप के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. हालांकि, बीएनएस में इसे धारा 63 और 64 में परिभाषित किया गया है. धारा 64 में इन अपराधों के लिए सजा बताई गई है. इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. रेप के मामलों में दोषी पाए जाने पर कम से कम 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. 18 साल से कम उम्र की नाबालिग से गैंगरेप के मामले में अभी तक दोषी को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. प्रस्तावित बीएनएस की धारा 70(2) के तहत नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है. 16 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के लिए सजा बढ़ाकर 20 साल कर दी गई है. नाबालिग से दुष्कर्म में मौत की सजा का भी प्रावधान है. 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से दुष्कर्म पर कम से कम 20 साल जेल की सजा या मौत की सजा होगी.
4. जेंडर नूट्रैलिटी में महिलाओं को आरोपी बनाया जाएगा?
हां, अब महिलाओं को भी आरोपी बनाया जाएगा. बलाकार का कानून सिर्फ महिलाओं को लेकर लागू होता है. BNS ने कुछ अन्य कानूनों, विशेष रूप से बच्चों से संबंधित कानूनों में बदलाव किया है. नाबालिगों के अपहरण से संबंधित अपराध में आईपीसी की धारा 361 अलग-अलग आयु सीमा निर्धारित करती है. पुरुष के लिए 16 और महिला के लिए 18 वर्ष. BNS ने इसे दोनों के लिए 18 साल निर्धारित कर दिया है. महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने (IPC की धारा 354ए) और ताक-झांक (IPC 354सी) के अपराध में अब BNS के तहत आरोपियों के लिए जेंडर नूट्रैलिटी लागू होगा. यानी अब महिलाओं पर भी कानून के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.
5. मॉब लिंचिंग में सजा का क्या प्रावधान?
सरकार ने पहली बार मॉब लिंचिंग को लेकर सख्ती से कार्रवाई का मन बना लिया है. यही वजह है कि मॉब लिंचिंग के दोषी को फांसी की सजा तक देने की व्यवस्था की है. अभी तक मॉब लिंचिंग के लिए सजा का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था. भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग को लेकर धारा 101(2) में सजा का प्रावधान है. इसके तहत पांच या उससे ज्यादा लोग जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर हत्या करते हैं तो आजीवन कारावास से लेकर फांसी की सजा तक मिल सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में केंद्र से मॉब लिंचिंग पर एक अलग से कानून लाने पर विचार करने के लिए कहा था. BNS में हत्या के लिए धारा 101 में सजा का प्रावधान है. इसमें दो सब-सेक्शन हैं. धारा 101(1) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति हत्या का दोषी पाया जाता है तो उसे आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है. साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा. इसके अलावा, BNS में हत्या की कोशिश के मामले में धारा 107 के तहत एक्शन होगा. इसी तरह, गैर-इरादतन हत्या के मामले में पुलिस के पास जाने और पीड़ित को अस्पताल ले जाने पर कम सजा होगी. लेकिन हिट एंड रन यानी घटना के बाद पीड़ित को छोड़कर भागने पर 10 साल की सजा होगी.
6. भगोड़े अपराधियों पर क्या कोर्ट में ट्रायल हो सकेगा?
हां, अब BNS में भगोड़े अपराधियों पर सख्ती की जाएगी. उनकी गैरमौजूदगी में कोर्ट में ट्रायल भी हो सकेगा. अब तक किसी भी अपराधी या आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू होता था, जब वो अदालत में मौजूद हो. लेकिन अब फरार घोषित अपराधी के बगैर भी मुकदमा चल सकेगा. यानी कोर्ट में कार्रवाई नहीं रुकेगी. फरार आरोपी पर आरोप तय होने के तीन महीने बाद ट्रायल शुरू हो जाएगा. पहले 19 अपराधों में ही भगोड़ा घोषित कर सकते थे, अब 120 अपराधों में भगोड़ा घोषित करने का प्रावधान किया गया है.
7. संगठित अपराध को कैसे परिभाषित किया?
BNS में पहली बार संगठित अपराध से निपटने को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाया गया है. संगठित अपराध के तहत सिंडिकेट्स या गिरोह द्वारा आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम और नियंत्रण्ण के लिए कई विशेष प्रावधान किए गए हैं. जिनमें सबसे चर्चित महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 है. ये विशेष कानून निगरानी की व्यापक शक्तियां निर्धारित करते हैं. नए कानून में संगठित अपराध करने के प्रयास और संगठित अपराध करने के लिए सजा एक ही है. लेकिन इस आधार पर अंतर किया गया है कि मौत कथित अपराध के कारण हुई है या नहीं. मौत से जुड़े मामलों के लिए आजीवन कारावास से लेकर मृत्यु तक की सजा का प्रावधान है. लेकिन जहां अपराध के कारण कोई मृत्यु नहीं होती है तो वहां अनिवार्य न्यूनतम सजा पांच साल निर्धारित की गई है, इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. छोटे संगठित अपराध की एक अलग श्रेणी भी रखी गई है, जो चोरी, छीना-झपटी, धोखाधड़ी, अनाधिकृत टिकटों की बढ़ती बिक्री, सट्टेबाजी या जुआ, सार्वजनिक परीक्षा प्रश्न पत्रों की बिक्री को अपराध मानती है. इससे पहले जो विधेयक लाया जा रहा था, उसमें छोटे संगठित अपराध की परिभाषा में व्यापक शब्द का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन नए बिल में ये शब्द हटा दिया गया है. हालांकि, इस प्रावधान का उद्देश्य रोजमर्रा की पुलिसिंग में छोटे कानून और व्यवस्था के मुद्दों से निपटना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह सामान्य चोरी आदि से कैसे अलग होगा.
8. आतंकवाद पर कैसे कार्रवाई होगी?
पहले आतंकवाद की परिभाषा नहीं थी. लेकिन BNS में आतंकवाद को लेकर प्रावधान किया गया है. बीएनएस आतंकवाद को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाता है. बेंगलुरु की नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के एक एनालिसिस के मुताबिक, 'आतंकवाद' की परिभाषा फिलिपींस के आतंकवाद विरोधी अधिनियम, 2020 से ली गई है. महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंक के वित्त पोषण से जुड़े अपराध UAPA की तुलना में BNS यानी नए कानून में व्यापक है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि UAPA और BNS दोनों एक साथ कैसे काम करेंगे. खासकर तब, जब प्रक्रियात्मक रूप से UAPA ज्यादा सख्त है और मामलों की सुनवाई विशेष कोर्ट में की जाती है. आतंकवाद को लेकर नए कानून के तहत, जो कोई भारत की एकता, अखंडता, और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. आतकंवाद की परिभाषा में 'आर्थिक सुरक्षा' शब्द को भी परिभाषा में जोड़ा गया है. इसके तहत, अब जाली नोट या सिक्कों की तस्करी या चलाना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. इसके अलावा किसी सरकारी अफसर के खिलाफ बल का इस्तेमाल करना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा. बीएनएस में धारा 113 में इन सभी कृत्यों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. इसके तहत, आतंकी कृत्य का दोषी पाए जाने पर मौत की सजा या उम्रकैद की सजा हो सकती है.
9. सरकारी कार्रवाई में बाधा या आत्महत्या के प्रयास में क्या होगा?
आत्महत्या के प्रयास को भी नए सिरे से परिभाषित किया गया है. नए प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति किसी भी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने की कोशिश करता है तो यह अपराध माना जाएगा और जेल की सजा निर्धारित की जाएगी. इसे सामुदायिक सेवा के साथ एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. विरोध-प्रदर्शनों के दौरान आत्मदाह या भूख हड़ताल को रोकने के लिए भी यह प्रावधान लागू होगा. बता दें कि सामुदायिक सेवा को एक ऐसी सजा माना जाएगा जो समाज के लिए फायदेमंद होगी.
10. अब इंसाफ के लिए भटकना पड़ेगा क्या?
सरकार का दावा है कि अब इंसाफ के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. अब देश में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे. इसमें धाराएं भी जुड़ेंगी. अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं. 15 दिन के भीतर जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी. छोटे-छोटे मामलों और तीन साल से कम सजा के अपराधों के मामलों में समरी ट्रायल किया जाएगा. इससे सेशन कोर्ट में 40% से ज्यादा मामले खत्म होने की उम्मीद है. पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी. परिस्थिति के आधार पर अदालत 90 दिन का समय और दे सकती है. 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा. अदालत को 60 दिन के भीतर आरोपी पर आरोप तय करने होंगे. सुनवाई पूरी होने के बाद 30 दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा. फैसला सुनाने और सजा का ऐलान करने में 7 दिन का ही समय मिलेगा. अगर किसी दोषी को मौत की सजा मिली है और उसकी अपील सुप्रीम कोर्ट से भी खारिज हो गई है, तो 30 दिन के भीतर दया याचिका दायर करनी होगी.
यह कानून भी बदले नजर आएंगे...
क्या कैदियों को राहत मिलेगी?
नए कानून में कैदियों के लिए कई प्रावधान किए गए हैं. एक-तिहाई सजा काट चुके अंडर ट्रायल कैदी के लिए जमानत का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा सजा माफी को लेकर भी कई प्रावधान किए गए हैं. अगर मौत की सजा मिली है तो उसे ज्यादा से ज्यादा आजीवन कारावास में बदला जा सकता है. आजीवन कारावास है तो 7 साल की सजा काटनी होगी. 7 साल या उससे ज्यादा की सजा है तो कम से कम 3 साल जेल में रहना पड़ेगा.
अप्राकृतिक यौन अपराध पर क्या होगा?
पहले आईपीसी की धारा 377 में अप्राकृतिक यौन गतिविधियों के बीच समलैंगिकता को अपराध मानती थी, लेकिन नए कानून यानी BNS में इसे निरस्त कर दिया गया है. हालांकि, धारा 377 पूरी तरह हटा दिए जाने से नई चिंताएं भी बढ़ गईं हैं. क्योंकि यह प्रावधान अभी भी गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों से निपटने में मददगार है. खासकर जब रेप कानूनों में लैंगिक आधार पर भेदभाव जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला ऐतिहासिक फैसला दिया था.
फर्जी खबर पर क्या होगा?
आईपीसी में धारा 153बी का प्रावधान है. इसमें राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आरोप और दावों को लेकर नियम हैं. बीएनएस ने यहां एक नया प्रावधान किया है. इसमें झूठी और भ्रामक जानकारी प्रकाशित करने को अपराध माना गया है.
क्या दया याचिकाएं की जा सकती है?
दया याचिका दायर करने के लिए सजा पाने वाले व्यक्ति की तरफ से अदालत से सजा मिलने के 30 दिनों के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है. थर्ड पार्टी दया याचिका नहीं डाल सकती है. ये अधिकार सिर्फ सजा पाने वाले व्यक्ति को ही मिलेगा. इसी तरह, किसी गंभीर अपराध में जहां सजा तीन से सात साल तक है, पुलिस को प्रारंभिक जांच 14 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी और एफआईआर दर्ज करनी होगी. अब एफआईआर को लेकर पुलिस के लिए सख्त समय-सीमा निर्धारित की गई है. यदि कोई शिकायत दर्ज की जाती है तो पुलिस को तीन दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी.
क्या आरोप पत्र दाखिल करने की समय-सीमा है?
पहले आरोप पत्र 60-90 दिनों के भीतर दाखिल करना होता था, लेकिन दोबारा जांच का हवाला देकर इसमें देरी की जाती थी. नए विधेयक के तहत पुलिस को विशेष रूप से कोर्ट पर निर्भर रहना होगा. आगे की जांच के लिए अदालत को आदेश देना होगा और निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना होगा.
क्या सुनवाई के लिए समय सीमा है?
समय पर सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए आरोपियों के पास बरी होने की दलील देने के लिए सात दिन का समय होगा. न्यायाधीश को उन सात दिनों के भीतर सुनवाई करनी होगी और अधिकतम 120 दिनों के भीतर मामले की सुनवाई होगी. पहले प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा नहीं थी. अब अगर कोई अपना अपराध करने के 30 दिन के भीतर स्वीकार कर लेता है तो सजा कम होगी.
नई गवाह सुरक्षा
गवाहों की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाएगा. बयान दर्ज करने और साक्ष्य एकत्र करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मोड की अनुमति दी गई है.
महिलाओं के लिए ई-एफआईआर
जो महिला शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहतीं, उनके लिए इलेक्ट्रॉनिक एफआईआर की सुविधा शुरू की गई है और एक पुलिस अधिकारी 24 घंटे के भीतर घर जाएगा.
फोरेंसिक जांच अनिवार्य की गई
विधेयक में सात साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं, जिससे फोरेंसिक जांच अनिवार्य हो जाएगी.
पुलिस हिरासत कब तक होगी?
नए कानूनों के तहत पुलिस हिरासत केवल 15 दिनों के लिए होगी. हालांकि, इसका प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है. यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और फिर चिकित्सीय जरूरत के कारण अस्पताल भेजा जाता है, तो अदालत द्वारा फिर से हिरासत की मांग करनी होगी और इस अवधि के दौरान, अदालत व्यक्ति को जमानत भी दे सकती है.
गृह मंत्री अमित शाह ने और क्या कहा...
गृह मंत्री ने कहा कि इतिहास में पहली बार देश में ऐसे कानून होंगे जो भगोड़ों की गैरमौजूदगी में मुकदमा चलाने के लिए स्पष्ट निर्देश प्रदान करेंगे. पहली बार हमारे कानून सजा के रूप में सामुदायिक सेवा की व्यवस्था करते हैं. न्याय के लिए सजा के हमारे सभ्यतागत सिद्धांत को पुनर्जीवित करते हैं. अत्याधुनिक तकनीकों से सशक्त 'न्यू इंडिया' की यह नई न्याय प्रणाली देशवासियों को पारदर्शी और त्वरित न्याय देने का काम करेगी. मैं हमारे देश को आत्मनिर्भर भारत की ओर ले जाने, हमारे औपनिवेशिक अतीत से दूर रहने और गुलामी की छापों को मिटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करता हूं. ये बिल लोकसभा से मंजूरी मिलने के एक दिन बाद गुरुवार को राज्यसभा से पारित हो गए.