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आखिर दिल्ली में हो रही सीलिंग के लिए जिम्मेदार कौन?

हालांकि अभी कार्रवाई रिहायशी इलाकों में  कंवर्जन चार्ज दिए बिना चल रही व्यवसायिक दुकानों पर ही हो रही है लेकिन अन्य अवैध निर्माणों के विरूद्ध भी संज्ञान में लिए जाने के संकेत हैं.

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आखिर दिल्ली में हो रही सीलिंग के लिए जिम्मेदार कौन?
आखिर दिल्ली में हो रही सीलिंग के लिए जिम्मेदार कौन?

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एक बार फिर दिल्ली के रिहायशी इलाकों में चल रहे अवैध व्यापारिक प्रतिष्ठानों को सील करने का कार्य शुरू हो गया है, दुकानदार रोजगार खोने के डर से विरोध पर उतारू हैं और हमेशा की तरह इस पर राजनीति शुरू हो चुकी है. जब तक तोड़फोड़ व सीलिंग शुरू नहीं होती तब तक तो नगर निगम व राजनैतिक दल आंखें मूंदे रहते है लेकिन जब हाहाकार मच जाता है तो सड़क पर उतर जनता के लिए कुर्बान होने का नाटक शुरू हो जाता है.

सीलिंग की कार्रवाई की देखरेख हेतु सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसम्बर 2017 को चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार के जी राव की अध्यक्षता में तीन सदस्य निगरानी (मॉनटरिंग) समिति पुनर्नियुक्त की है, वर्तमान में अगर केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली की नगर निगमों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उचित पक्ष रखा होता और आवश्यक कार्रवाई की होती तो वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समाप्त की गई निगरानी समिति पुनर्जीवित नहीं होती. 12 जनवरी 2018 को इस मामले की अगली सुनवाई होगी, यदि दिल्लीवासियों को सीलिंग से राहत देनी है तो केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली की नगर निगमों को सुप्रीम कोर्ट में ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा.

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हालांकि अभी कार्रवाई रिहायशी इलाकों में  कंवर्जन चार्ज दिए बिना चल रही व्यवसायिक दुकानों पर ही हो रही है लेकिन अन्य अवैध निर्माणों के विरूद्ध भी संज्ञान में लिए जाने के संकेत हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट में डेढ से दो लाख अवैध निर्माण होने का हलफनामा दिल्ली के तीनों निगम पहले ही दे चुके हैं और उनके विरूद्ध कानून-व्यवस्था बिगडने का डर दिखा कार्रवाई न किए जाने के प्रति न्यायालय अपनी नाराजगी प्रकट कर चुका है.

न्यायालयों की सजगता के बावजूद दिल्ली भर में अवैध निर्माण लगातार हो रहे हैं, कार्रवाई के प्रति निगम किंकर्तव्यविमूढ नजर आता है ऐसे में सूचीबद्ध करीब दो लाख व वर्तमान मे चल रहे अवैध निर्माणों के विरूद्ध भी तोड़फोड़ के निर्देश दिल्ली हाईकोर्ट दे सकता है.

एमसीडी में बीजेपी के पूर्व पार्षद जगदीश ममगई ने भी इससे सवाल उठाए हैं कि आखिर क्यों जब भूख लगती है तब कोहड़ा रोपने सब चल देते है.

दिल्ली में बेतहाशा अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई न होने से कानून का डर समाप्त हो गया. दुर्भाग्य की बात यह है कि दिल्ली में निर्मित करीब 44 लाख आवासीय व व्यवसायिक इकाईयों में से केवल दो लाख के ही नक्शे पारित (स्वीकृत) हैं. इतने बड़े पैमाने पर हुए अवैध निर्माण हो गए और किसी के विरूद्ध कोई कार्रवाई क्यों नही की गई.

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हालांकि अप्रैल 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की सीबीआई जांच कर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे पर समय के साथ चलते जांच ठंडे बस्ते डल गई. सडकों व फुटपाथ पर भी कब्जे हो रहे हैं, आमजन का चलना फिरना भी दूभर हो गया है.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के निगम पदाधिकारियों ने हालांकि समय-समय पर कंवर्जन चार्ज जमा न कराने वाली इकाईयों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी के बयान तो दिए पर कार्रवाई के प्रति संजीदगी नहीं दिखाई.

सुप्रीम कोर्ट अवैध निर्माण व प्रतिष्ठानों के विरूद्ध कार्रवाई के प्रति लगातार निगमों को चेताती रही, उनके नाकाम रहने पर सीलिंग की कार्रवाई को निर्देशित करने हेतु सुप्रीम कोर्ट को निगरानी समिति पुनर्नियुक्त करनी पड़ी है.

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