2012 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बेहतरी के मकसद से एक दिल्ली नगर निगम (MCD) को तीन भांगों में बांटा था, ठीक उसी मकसद से केंद्र सरकार ने अब तीनों निगमों को एक करने का फैसला लिया है. लेकिन कमाल देखिए निगम के हालात बदतर ही रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब तक केंद्र और एमसीडी में एक ही राजनीतिक पार्टी की सरकार है तब तक कोई रोड़ा नहीं होगा, लेकिन अलग-अलग पार्टी की सरकार होने पर क्या गारंटी है कि एकीकरण के बाद एमसीडी, दिल्ली सरकार, केंद्र के बीच राजनीतिक टकराव कभी नहीं होगा.
बहरहाल एकीकरण से फायदे की नई-नई दलीलें दी जा रही हैं. इनके तहत 3 की जगह निगमों में एक ही कमिश्नर होगा जो बेहतर तरीके से मैनेजमेंट करेगा. अब कमेटियों की संख्या भी एक ही होगी जो तीन गुना हो गई थी. वहीं, अब तक डेपुटेशन पर जो अधिकारी अलग-अलग निगम में आ रहे थे, अब उनकी संख्या भी घटेगी.
निगम के आंकड़े बताते हैं कि पूर्वी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम का सालाना बजट घाटा करीब 2000 करोड़ रुपए तो साउथ एसीडी का बजट घाटा 500 करोड़ रुपए है. लिहाजा अधिकारियों की संख्या कम होगी और कई दफ्तर खाली होंगे. फलस्वरूप खर्च कम होगा और बचत होगी.
आपको बता दें कि तीनों निगमों के करीब 160000 कर्मचारियों को सालाना 8900 करोड़ रुपए चाहिए और तीनों निगम जो खुद से सालाना रेवेन्यू पैदा करते हैं, वो 6700 करोड़ रुपए है. अनुमान है कि एकीकरण के बाद करीब 200 करोड़ रुपए बचेंगे. 2017 के एमसीडी चुनाव में बीजेपी के नेता कहते थे कि वो केंद्र से सीधे पैसे लाएंगे. ऐसे में केंद्र से फंड के प्रावधान पर सभी की नजर है.
3 भागों में बांटने की दलील
2012 में दिल्ली में तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित और केंद्र की यूपीए सरकार ने दलील थी कि एमसीडी बड़ी होने की वजह से उसे चलाना मुश्किल है. लोगों में एमसीडी की आसानी से पहुंच हो, इसलिए उसके तीन टुकड़े कर दिए गए. उस वक्त तो अधिकारी और नेता हर वार्ड तक नहीं पहुंच पाते थे. राजनीतिक जानकार इसे निगम में बीजेपी को खत्म करने की एक राजनीतिक चाल के तौर पर देखते हैं. कमाल देखिए 10 साल बाद बीजेपी तीनों निगमों को एक कर रही है. बताया जा रहा है कि इसका मकसद निगम में रिफॉर्म का है और लोगों की बेहतरी है जबकि ये एक राजनीतिक कदम भी है.
कैसे होगी बदले हुए दिल्ली नगर निगम की तस्वीर:
मेयर होगा पावरफुल
खबर है कि दिल्ली सरकार का दखल निगम में बेहद कम करने के लिए मेयर-इन-काउंसिल व्यवस्था अपनाई जा सकती है जिसमें मेयर और उसके पार्षदों को शहर को लोग सीधे चुनेंगे. अगर ऐसा होता है, तो वो सीएम से ज्यादा प्रभावशाली माना जाएगा, क्योंकि सीएम तो सिर्फ एक विधानसभा से विधायक के तौर पर चुना जाता है. वहीं, मेयर और पार्षदों का कार्यकाल बढ़ाने पर भी विचार किया जा रहा है.
वार्ड संख्या घटेगी या बढ़ेगी?
तीनों निगमों के कुल 172 वार्ड में से छावनी इलाके में आने वाले 8 वार्ड कम कर दें तो 264 वार्ड एकीकरण के बाद बने रहते हैं. इनकी संख्या कम या अधिक होगी, इस पर सबकी नजर हैं. क्योंकि इससे सीधे तौर पर चुनाव के जिताऊ समीकरण तैयार होंगे. कइयों के लिए पूरी तरह से बदले होंगे.
बढ़ाया जायेगा मेयर का कार्यकाल?
दिल्ली नगर निगम के चुनावों को लेकर एक चर्चा यह भी है कि तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ ही 272 वार्ड ही रखे जायेंगे, लेकिन मेयर का कार्यकाल बढ़ाकर कम से कम ढाई वर्ष किया जा सकता है. लेकिन इस व्यवस्था में तकनीकी पेंच फंस सकता है, क्योंकि अभी की व्यवस्था के मुताबिक आरक्षण व्यवस्था का बड़ा पेंच फंसा हुआ है. बता दें कि पहले साल में मेयर का पद महिलाओं के लिए तीसरे साल में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. ऐसे में क्या ये बरकरार रहता है या कोई नया प्रवधान होगा.