दिल्ली में रविवार को एमसीडी चुनाव के लिए वोटिंग हुई तो हर तरफ यही चर्चा थी कि इस बार दिल्ली नगर निगम चुनाव में बाजी कौन मारेगा? वोटिंग प्रतिशत कम रहा, उसके बावजूद शाम होते-होते 50 फीसदी का आंकड़ा दर्ज कर ही लिया गया. कुल मिलाकर ऐसा लग रहा था कि किसी के पक्ष में लहर नहीं है, क्योंकि अगर लहर होती तो वोटर बड़ी संख्या में निकल कर बाहर आते, लेकिन आजतक एक्सेस माय इंडिया के एग्जिट पोल में एक साफ इशारा मिल रहा है और वह यह कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का जादू फिलहाल लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. आखिरकार झाड़ू को क्यों मिल रही है इतनी बड़ी कामयाबी, इसके पीछे अगर हम देखें तो कुछ मुख्य वजहें साफ तौर पर दिखाई पड़ती हैं.
15 साल से दिल्ली में एमसीडी पर बीजेपी का राज है. भ्रष्टाचार की लगातार शिकायत और काम ना होने की वजह से लगभग हर तबके में एमसीडी के कामकाज को लेकर नाराजगी साफ तौर पर दिखाई पड़ती है. चुनावी भाषा में इसे एंटी इनकंबेंसी कहा जाता है. अगर इसी लिहाज से देखें तो दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ एमसीडी में जबरदस्त Anti Incumbency थी. और सत्ता के खिलाफ इसी माहौल का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिला. बीजेपी का वोटर कई जगहों पर इतना निराश था कि उसने अपनी फेवरेट पार्टी को वोट देने की बजाय घर में बैठना ठीक समझा. बीजेपी के खिलाफ जो सबसे बड़े मुद्दे फैक्टर बनकर सामने आए, वह थे- दिल्ली में साफ-सफाई की कमी और पार्षदों का भ्रष्टाचार... खासतौर पर बिल्डिंग बनवाने को लेकर.
साफ-सफाई का अभाव, पार्षदों का भ्रष्टाचार
बीजेपी ने पूरे एमसीडी चुनाव प्रचार के दौरान खुद पर लगे आरोपों पर सफाई देने की बजाय उन्हें आम आदमी पार्टी की तरफ डायवर्ट किया. बीजेपी ने कोशिश की थी कि एमसीडी पर बात कम हो और आम आदमी पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मसलन सत्येंद्र जैन के वीडियो और आबकारी नीति में हुए घोटाले पर लोग ज्यादा चर्चा करें. कई बार बीजेपी इस नरेटिव को लोगों के बीच ले जाने में कामयाब भी दिखाई पड़ी, लेकिन एमसीडी के मुद्दों पर बात ना करना उसके लिए कहीं ना कहीं भारी पड़ा और परेशान लोगों ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट दिया, ताकि दिल्ली में डबल इंजन की सरकार बन सके.
लोगों के बीच ब्रांड केजरीवाल
दूसरी वजह रही दिल्ली में अब ब्रांड बन चुके अरविंद केजरीवाल की. दिल्ली में ब्रांड केजरीवाल का मतलब है लोगों को सुविधाएं देना और कई तरीके की मुफ्त स्कीम का फायदा लोगों तक पहुंचाना. केजरीवाल के कामकाज और तौर-तरीकों पर विपक्ष सवाल तो उठाता है लेकिन पब्लिक में अरविंद केजरीवाल को लेकर अभी काफी सहानुभूति है. मुफ्त बिजली से लेकर सुधरती हुई शिक्षा व्यवस्था, मोहल्ला क्लीनिक और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, बुजुर्गों को तीर्थ करवाने की वजह से केजरीवाल को एक ब्रांड बनाते हैं.
केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व दांव आया काम
उस ब्रांड की काट के लिए दिल्ली में बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल तो किया लेकिन सरकारी फायदे के सामने पीएम के ऊपर खेला गया दांव भी नाकाफी साबित हुआ. दिल्ली में आमतौर पर जहां धार्मिक ध्रुवीकरण बहुत ज्यादा वोटरों को प्रभावित नहीं करता है, वहां सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव भी केजरीवाल के लिए फायदेमंद साबित हुआ है. खासतौर पर तब, जब मुस्लिम वोटरों के सामने कांग्रेस का मजबूत विकल्प उपलब्ध नहीं है. आम आदमी पार्टी ने अपने पोस्टरों पर और कैंपेन में भी अरविंद केजरीवाल के नाम और उनके फोटोग्राफ का इस्तेमाल बखूबी किया ताकि इस ब्रांड केजरीवाल को और ज्यादा एमसीडी चुनावों में भुनाया जा सके.
व्यापारियों के साथ टाउनहॉल में जीत का ब्लू प्रिंट
पहले आम आदमी पार्टी ने स्लोगन दिया था- 'एमसीडी में भी केजरीवाल' लेकिन जब पार्टी को यह लगा कि यह स्लोगन उतना काम नहीं कर रहा है तो डबल इंजन का नरेटिव बनाने के लिए 'केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद' नारा देकर दिल्लीभर में कैंपेन चलाया. पहले आम आदमी पार्टी की रणनीति यह थी कि अरविंद केजरीवाल ना के बराबर एमसीडी चुनाव प्रचार में हिस्सा लेंगे, लेकिन जब गुजरात चुनाव के पहले फेज का प्रचार खत्म हुआ, उसके बाद लगभग 4 दिनों तक केजरीवाल ने दिल्ली में रहकर आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल लिया. इसी दौरान कुछ पब्लिक रैली और रोड शो हुए. साथ ही साथ आरडब्ल्यूए और कारोबारियों के साथ बैठक कर एमसीडी चुनाव जीतने का ब्लूप्रिंट तैयार कर दिया.
10 साल में AAP की पॉपुलैरिटी कम हुई?
आम आदमी पार्टी को एग्जिट पोल में बढ़त दिखाने के पीछे एक तीसरा फैक्टर भी नजर आता है. दिल्ली में कमोबेश अब त्रिकोणीय की जगह आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला दिखाई पड़ रहा है. अगर हम उन आंकड़ों पर नजर डालें जो एग्जिट पोल में दिखाई पड़ रहे हैं तो बीजेपी के ऊपर आम आदमी पार्टी को लगभग 8 से लेकर 9% वोट की बढ़त दिखाई पड़ रही है, लेकिन बीजेपी के वोट शेयर में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं दिखती है और वह भी तब, जब उसके लिए 15 साल की एंटी इनकंबेंसी परेशानी बन रही हो. इसका सीधा मतलब यह है कि दिल्ली में या तो लोग केजरीवाल को पसंद करते हैं या फिर नापसंद.
नापसंद करने वालों के पास भी बीजेपी के अलावा कोई मजबूत विकल्प मौजूद नहीं है और उनकी संख्या भी लगभग 35% के आसपास है. आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के उस वोटर ने वोट तो दे दिया जो बीजेपी को एमसीडी में एक और मौका नहीं देना चाहता था, लेकिन बीजेपी को उन वोटरों का साथ मिला जो अरविंद केजरीवाल की नीतियों से सहमत नहीं हैं, जो 43% वोट एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है वह विधानसभा चुनावों से लगभग 10% कम है. यानी लगभग 2 सालों में यह बात तो तय है की आम आदमी पार्टी की पॉपुलर्टी कम हुई है.
बुधवार को अब चाहे नतीजे जैसे रहें, लेकिन एमसीडी में एक नया अध्याय जरूर शुरू होगा. यह संभावना भी दिख रही है कि दिल्ली नगर निगम में एक नया निजाम होगा और वह ऐसा शासन होगा जिसकी सत्ता दिल्ली सरकार में भी है.