दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP और BJP के स्टार प्रचारक सुर्खियां बन रहे हैं, विवादों को हवा दे रहे हैं और वोटरों को लुभाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में तीसरे प्रतिभागी दल का नाम गायब है. जब प्रतिद्वंद्वी नेता लगातार हमले कर रहे हैं, ज्यादा समय दे रहे हैं, तो सवाल उठता है कि कांग्रेस पार्टी कहां है? कांग्रेस का घोषणा पत्र अभी भी प्रिंटर के पास है, प्रचार अभियान कोल्ड स्टोरेज में है और ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी खुद सोयी हुई है.
जल्दबाजी से देर भली?
यह जानते हुए कि दिल्ली में कांग्रेस का मुकाबला दो आक्रामक विरोधियों से है, फिर भी कांग्रेस किस बात का इंतजार कर रही है? कांग्रेस में वरिष्ठ हैसियत रखने वाले पीसी चाको इन बातों से सहमत नहीं हैं कि कांग्रेस की रफ्तार धीमी है, बल्कि उन्हें लगता है कि बीजेपी जरूरत से ज्यादा शोर कर रही है.
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको ने कहा, 'उम्मीदवारों के कार्यालय व्यवस्थित ढंग से चल रहे हैं और समितियां अपना काम कर रही हैं, हम 1 फरवरी से 6 फरवरी तक अपने स्टार प्रचारकों को उतारेंगे... इस दौरान चुनाव प्रचार अपने चरम पर होगा. दरअसल, हम समय के साथ अपना काम कर रहे हैं, भाजपा हताश है और इसलिए वह जरूरत से ज्यादा शोर कर रही है जबकि केजरीवाल एक मार्केटिंग गुरु हैं और वे सिर्फ झूठ की मार्केटिंग कर रहे हैं.'
स्टार प्रचारक कहां हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संभवत: दो रैलियों को संबोधित करेंगी, जबकि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी रोड शो के जरिये एक दिन में लगभग सात से दस निर्वाचन क्षेत्रों को कवर करेंगे. यह दूसरी बार होगा जब प्रियंका गांधी दिल्ली में चुनाव प्रचार करेंगी, पिछली बार उन्होंने 2019 के चुनावों में शीला दीक्षित के लिए प्रचार किया था, जब वे खुद को 'दिल की लड़की' कहती थीं.
एक नेता ने कहा, 'रोड शो की पहुंच बेहतर होती है और इससे अधिक से अधिक क्षेत्र को कवर किया जाएगा. प्रचार के लिए ये आखिरी दिन हैं इसलिए हमारे कार्यकर्ता भी मैदान में डटे हैं. रैलियां करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि भीड़ इकट्ठी होना मुश्किल है.'
दिल्ली में प्रचार के लिए जिन कांग्रेस नेताओं की मांग है उनमें पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू हैं, लेकिन अंतिम कार्यक्रम अभी भी बनना बाकी है.
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क्या कांग्रेस ट्रैक पर नहीं है?देश की सबसे पुरानी पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं कर पाई, जो अपनी प्रतिष्ठा जाने के डर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. अजय माकन की इच्छा परिदृश्य से उनकी अनुपस्थिति से स्पष्ट है. कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रस्ताव दिया है कि उनके बदले उनके परिजनों को टिकट दिया जाना चाहिए.
यही कारण हैं कि कांग्रेस लगभग बीस निर्वाचन क्षेत्रों में अच्छे उम्मीदवारों के लिए जूझ रही थी और अंतत: कांग्रेस को ऐसे भाग्यशाली नहीं मिले! कई नाम ऐसे हैं जिनका निर्वाचन क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है या उन्हें अपने पड़ोसियों से भी अनजान हैं लेकिन फिर भी उन्हें कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया गया. प्रदीप कुमार पांडेय, सुरेश गुप्ता, जेएस गोयल, हरि किशन जिंदल और दर्जन भर ऐसे उम्मीदवार हैं जो कभी कोई चुनाव नहीं जीते. यहां तक कि पार्टी ने जब उम्मीदवारों का चयन किया तो कांग्रेस के लोकल कार्यकर्ता भी चौंक गए.
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आया राम गया राम का स्वागतदिल्ली में कांग्रेस ने दलबदलुओं का दिल खोलकर स्वागत किया है. अलका लांबा, कृष्णा तीरथ, अमर लता सांगवान, अमरीश गौतम और भीष्म शर्मा ऐसे लोग हैं जिन्होंने चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थामा है. इसका असर स्थानीय स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं पर पड़ा, उन्होंने नेतृत्व की कमी महसूस की.
कुछ उम्मीदवार अपने पार्टी प्रतिद्वंद्वियों से खफा थे. कई अन्य ऐसे हैं जो परिवार की वजह से जगह बना रहे हैं. इसे ऐसा समझा जा सकता है कि पार्टी खाली जगह भरने के लिए इतनी बेताब थी कि परिवार का नाम जुड़ा हो तो यह बात टिकट मिलने के लिए पर्याप्त थी.
बाबरपुर की उम्मीदवार अन्वीक्षा जैन राजनीति में नौसिखिया हैं, हालांकि उनके परिवार का नाम उन्हें कांग्रेस की मेरिट लिस्ट में ले आया. वे पूर्व विधायक कैलाश जैन की पुत्र वधू हैं.
देओली के उम्मीदवार अरविंद सिंह बूटा सिंह के बेटे हैं, जो टिकट मिलने के दो दिन पहले तक बत्रा अस्पताल के आईसीयू में थे. वे बीजेपी से कांग्रेस में आए हैं और मुश्किल से अपना नामांकन भर सके.
दिल्ली कांग्रेस ने विशेष रूप से प्रेस रिलीज भेजा जब प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा की बेटी शिवानी चोपड़ा कालकाजी से अपना नामांकन दाखिल कर रही थीं. इसी तरह से दूसरे नेताओं के रिश्तेदार जैसे मंदीप सिंह, अकांक्षा ओला, यदुराज चौधरी, प्रियंका सिंह, पूनम आजाद और विपिन शर्मा को उतना प्यार तो नहीं मिला, लेकिन पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने के योग्य बेशक माना है.