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सीधे शीला दीक्षित को टक्‍कर देंगे AAP के केजरीवाल!

सूत्रों की मानें तो अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे.

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Arvind Kejriwal
Arvind Kejriwal

आम आदमी पार्टी (AAP) नेता अरविंद केजरीवाल एक लम्बी लड़ाई और बड़ी जीत के लिए जमीन तलाश रहे हैं. आम आदमी पार्टी को दिल्ली के 70 सीटों पर उतारने का फैसला तो वो पहले ही कर चुके हैं अब सबसे बड़ा फैसला कि वो खुद कहां से लड़ेंगे. सूत्रों की मानें तो अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे.

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AAP रविवार को यह निर्णय करेगी कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसके नेता अरविंद केजरीवाल कहां से चुनाव लड़ेंगे. AAP ने रविवार को अपने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी है, जिसमें केजरीवाल के चुनाव लड़ने वाले स्थान के बारे में निर्णय किया जाएगा.  पार्टी ने 12 विधानसभा सीटों के लिए छांटे गए 44 संभावित उम्मीदवारों के नामों की घोषणा पहले ही कर दी है जिसमें मनीष सिसोदिया और संजय सिंह शामिल हैं.

कभी ग्रेटर कैलाश तो कभी नजफगढ़, कभी कंक्रीट के जंगलों में तो कभी दिल्ली आउटर के गांवों में. अरविंद केजरीवाल जमकर पसीना बहा रहे हैं. मकसद है अपनी राजनीतिक जमीन तलाश करना. वो जमीन जहां से वो लम्बी राजनीतिक लड़ाई लड़ सकें. जहां से वो बड़ी राजनीतिक जीत हासिल कर सकें. पहली बार विधानसभा, वो भी सीधे सत्तर सीटों पर. जाहिर है, आत्मविश्वास बड़ा है और तैयारी भी.

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अरविंद खुद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ उन्हीं के गढ़ से ताल ठोंकने की तैयारी में हैं. जिसकी वजहें भी साफ हैं कि जब वो सीधे दिल्ली फतह करने का सपना देख रहे है तो मुकाबला मुख्यमंत्री के खिलाफ ही होगा. दूसरे उनकी हर जनसभा में निशाने पर शीला दीक्षित ही होती हैं.

बड़ी जीत का सपना अपनी आंखों में पाले अरविंद जनता को भी वायदों के सब्जबाग दिखा रहे हैं. मसलन, आम आदमी पार्टी अगर दिल्ली में काबिज हो तो बिजली की दरें आधी हो जाएंगी और पानी के अब तक के बिल माफ कर दिए जाएंगे. यही नहीं, हर परिवार को रोजाना 70 लीटर पानी भी मुफ्त मिलेगा. ये और बात है कि नजफगढ़ में रैली करते हुए वो उन लोगों की अनदेखी कर गए जो देर से भरी गर्मी में पानी भरने और अरविंद केजरीवाल से अपनी बात कहने का इंतजार कर रहे थे.

लेकिन सत्ता तक आम आदमी पार्टी के पहुंचने से पहले की बात ये है कि केजरीवाल का रास्ता इतना आसान भी नहीं. क्योंकि आखिरकार ये तो राजनीतिक समीकरण ही तय करेंगे कि अरविंद खुद अपनी सरकार बना पाते हैं. या वोट काटकर कांग्रेस को ही फायदा पहुंचाते हैं.

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