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केजरीवाल सरकार vs LG... एल्डरमैन पर SC के फैसले से क्या MCD में वोटों का गणित बदलेगा?

सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि एलजी अब नगर निगम (MCD) में 10 एल्डरमैन को नामित करने के लिए स्वतंत्र हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी को इस बाबत निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार काम करने की जरूरत नहीं है.

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दिल्ली एमसीडी एक बार फिर चर्चा में है.
दिल्ली एमसीडी एक बार फिर चर्चा में है.

दिल्ली नगर निगम (MCD) में एल्डरमैन की नियुक्ति कौन करेगा? सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है. SC में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने फैसला सुनाया और कहा, दिल्ली के उपराज्यपाल MCD में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं. उपराज्यपाल को यह अधिकार है कि वो दिल्ली कैबिनेट की सलाह के बिना भी एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं. यानी उपराज्यपाल स्वतंत्र रूप से एमसीडी में 10 एल्डरमैन को नामित कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जानिए MCD के सदन में वोटों का क्या गणित बदलेगा? क्या मेयर चुनाव पर कोई फर्क पड़ेगा?

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SC के फैसले से दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को झटका लगा है. जस्टिस पीएस नरसिम्हा का कहना था कि उपराज्यपाल का ये वैधानिक अधिकार कर्तव्य है कि वो एल्डरमैन की नियुक्ति करें और इसे पूरा करने के लिए वो राज्य की कैबिनेट की सलाह लेने के लिए भी बाध्य नहीं हैं. 1993 के डीएमसी अधिनियम में सबसे पहले एलजी को मनोनीत करने की शक्ति प्रदान की गई थी. दिल्ली के उपराज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि वे कानून के आदेश के अनुसार काम करेंगे, ना कि मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह के अनुसार. इससे पहले एलजी की ओर से 10 एल्डरमैन (पार्षद) मनोनीत किए जाने के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. दिल्ली सरकार का कहना था कि उससे सलाह- मशविरा के बिना एलजी ने मनमाने तरीके से इनकी नियुक्ति की है. ये नियुक्ति रद्द होनी चाहिए.

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बीजेपी को राहत, कांग्रेस को मिली संजीवनी...

दरअसल, ओल्ड राजेंद्र नगर हादसे के बाद जिस तरह से एमसीडी की किरकिरी हुई है, ऐसे में सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर टिकी हुई थी. MCD चुनाव के सवा साल बाद ही सही, सदन में सबसे पावरफुल फाइनेंशियल कमेटी यानी स्टैंडिंग कमेटी बनने का रास्ता साफ हो गया है. एल्डरमैन की नियुक्ति बीजेपी के लिए बहुत बड़ी राहत है तो आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन के चुनाव में अब कांग्रेस किंगमेकर होगी. चूंकि, स्टैंडिंग कमेटी में जीत के लिए 10 वोट चाहिए. एल्डरमैन की नियुक्ति जायज होने के बाद बीजेपी के पास आठ वोट हैं तो आम आदमी पार्टी के पास अब भी 9 वोट हैं. 

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कांग्रेस के पास स्टैंडिंग कमेटी की चाभी

स्टैंडिंग कमेटी अध्यक्ष के चुनाव में 12 जोन में से 2 जोन ऐसे हैं, जो बहुत निर्णायक साबित होंगे. सेंट्रल जोन में सत्ता की चाबी कांग्रेस के हाथ में होगी. यानी कांग्रेस के पार्षद जिसे वोट करेंगे, वो स्टैंडिंग कमेटी अध्यक्ष होगा. कहा जा सकता है कि कांग्रेस के वोट ही तय करेंगे कि बीजेपी की जीत होगी या फिर आम आदमी पार्टी के हाथ बाजी लगेगी.

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स्टैंडिंग कमेटी की एक सीट खाली

बताते चलें कि बीजेपी की द्वारका से पार्षद और स्टैंडिंग कमेटी की सदस्य रहीं कमलजीत सेहरावत अब सांसद बन चुकी हैं. लिहाजा, एक सीट खाली हो गई है, इसलिए अब पहले उस सीट पर चुनाव होगा. ये चुनाव अगस्त के अंत तक होने की संभावना है. उसके बाद स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव के लिए आगे बात बढ़ेगी. एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों की कुल संख्या 18 होती है, जिसमें से 6 सदस्य सदन से और 12 सदस्य हर 12 जोन से चुनकर आते हैं.

दिल्ली नगर निगम में मेयर, डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव होते हैं. दिल्ली नगर निगम अधिनियम कहता है कि मनोनीत सदस्य या एल्डरमैन सदन की बैठकों में मतदान नहीं कर सकते हैं. हालांकि पीठासीन अधिकारी ने कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए वोटिंग राइट दिया है. मेयर और डिप्टी मेयर के लिए आम आदमी पार्टी बहुमत में है. अब एल्डरमैन, स्टैंडिंग कमेटी और हाउस में वोट करते हैं तो स्टैंडिंग कमेटी चैयरमैन के चुनाव में बीजेपी और मजबूत हो जाएगी.

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MCD में AAP को बहुमत

दिल्ली नगर निगम में 250 निर्वाचित और 10 नामित सदस्य हैं. दिसंबर 2022 में MCD चुनाव के नतीजे आए तो AAP ने 134 वॉर्ड में चुनाव जीता और बहुमत हासिल किया. बीजेपी को 15 साल बाद MCD की सरकार से बाहर होना पड़ा. बीजेपी ने कुल 104 सीटें जीतीं. जबकि कांग्रेस तीसरे नंबर पर आई और 9 सीटों पर चुनाव जीता. 

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मेयर चुनाव पर कोई फर्क पड़ेगा क्या?

MCD के सदन में 10 बीजेपी समर्थित एल्डरमैन (नामित पार्षद) भी होंगे, लेकिन वे मेयर चुनाव में वोट कर पाएंगे या नहीं, यह अधिकार एक विवादास्पद और कानूनी रूप से जटिल मसला रहा है. दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, सिर्फ निर्वाचित पार्षदों को ही मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट देने का अधिकार है. एल्डरमैन को यह अधिकार नहीं है. हाल के वर्षों में इस मुद्दे पर विवाद हुआ है और अदालतों में मामले भी गए हैं. कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं ने यह तर्क दिया है कि एल्डरमैन को वोट देने का अधिकार दिया जाना चाहिए. मेयर चुनाव में एल्डरमैन वोट कर सकेंगे या नहीं, यह फैसला पीठासीन अधिकारी का है. ऐसा नहीं हो सकता कि एक ही हाउस में एक ही वोटर की दो अलग-अलग स्थिति हो कि वो जोन में वोट कर सकता है लेकिन हाउस में नहीं. जबकि अन्य ने इसका विरोध किया है. 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि एल्डरमैन को मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं है. बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 243आर का हवाला दिया और कहा, संविधान ने एक प्रतिबंध लगाया है जिसके तहत नामित सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं है. फिलहाल, ये मुद्दा समय-समय पर विवाद और कानूनी बहस का विषय रहा है. 

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कौन होते हैं एल्डरमैन?

डीएमसी ऐक्ट, 1957 के तहत 10 ऐसे विशेषज्ञ मनोनीत पार्षद के तौर पर चुने जाते हैं, जिनके पास स्पेशल नॉलेज या निगम के प्रशासन का अनुभव हो. इन्हें प्रशासक यानी राज्यपाल की तरफ से मनोनीत किया जाता है. दिल्ली के एलजी ने जिन 10 एल्डरमैन को नॉमिनेट किया है, वे सभी बीजेपी के सदस्य हैं. उन्हें वोटिंग का अधिकार मिलने से मेयर, डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव में बीजेपी की संख्या मजबूत होगी. 

वोटिंग राइट के पीछे ये है गणित

मेयर पद के चुनाव के बाद जोन अध्यक्ष पद का चुनाव होता है. 12 जोन में से बीजेपी करीब 7 जोन पर दावा कर रही है. यानी साफ है कि 50% से ज्यादा जोन में बीजेपी अपना अध्यक्ष बनाने की कोशिश में है. यानी एल्डरमैन के जरिए अधिकतर जोन में बीजेपी अपने अध्यक्ष बनाने का प्रयास करेगी. BJP के पास शाहदरा नॉर्थ, शाहदरा साउथ, नजफगढ़ जोन, और केशव पुरम जोन में बहुमत है. नरेला और सिविल लाइन जोन से 4-4 और मध्य जोन में दो एल्डरमैन को उपराज्यपाल ने नामित किया है.

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