दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल से टक्कर लेने के लिए बीजेपी ने किरण बेदी को मैदान में उतारा है. इसमें शक नहीं कि बेदी के पार्टी में आने से बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है. राजनीतिक पंडित इसे फायदे का सौदा मान रहे हैं, लेकिन किरण बेदी के बीजेपी में आने के कुछ नुकसान भी हैं. तो आइये जानते हैं किरण बेदी के आने से BJP को हो सकते हैं कौन से 5 नुकसान.... (बेदी के आने से BJP को होंगे ये 5 फायदे)
1- किरण बेदी के बीजेपी में आने से पार्टी में चल रहा सत्ता संघर्ष भले ही सतह पर न दिखे, लेकिन इस बात की भी संभावना है कि पार्टी को भितरघात का सामना करना पड़े. (BJP नेता किरण बेदी के नाम एक खुला खत)
2- किरण बेदी अडि़यल रुख की मानी जाती हैं. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना हैं कि वह मौजूदा चुनावी एजेंडे में फेरबदल करें. इसके अलावा बेदी के रहते दिल्ली में संघ के साथ बीजेपी की तकरार भी तय है. अगर पार्टी चुनाव में जीतती है तब यह समस्या और बड़ी हो सकती है. वैसे जीत के बाद बेदी को दरकिनार पार्टी के बेहद कठिन साबित हो सकता है.
3- किरण बेदी के अतीत के बयान बताते हैं कि वह अगर कोई काम करती हैं तो उसका जमकर प्रचार भी करती हैं. ऐसे में वह किसी भी हद तक जा सकती हैं. उनके लिए बड़ा चैलेंज होगी बीजेपी के कल्चर को अडेप्ट करना. बीजेपी की परंपरा है कि मौजूदा दौर में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा दूसरे किसी को नेता को आगे नहीं किया जा रहा है.
ये ट्वीट बने मुसीबत
- बेदी के बीजेपी में शामिल होने की खबर आते ही उनके पुराने ट्वीट भी चर्चा में आ गए. जैसे 16 मार्च 2013 का उनका ये ट्वीट 'एक दिन नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों पर सफाई देनी ही पड़ेगी, बावजूद इसके कि अदालतें उनको अब तक क्लीन चिट दे रही हैं'
- 5 सितंबर 2013 का उनका ये ट्वीट, 'अगर राजनीतिक पार्टियां आरटीआई के दायरे में न आएं तो इन्हें मिलने वाली टैक्स में छूट वापस ले लेनी चाहिए. साथ ही बंगला और जमीन भी वापस लिए जाने चाहिए.'
4- किरण बेदी को दिल्ली चुनाव से ठीक पहले पार्टी का चेहरा बनाने से आम आदमी पार्टी का यह आरोप सही साबित होता है बीजेपी के पास दिल्ली में वाकई कोई चेहरा नहीं था. ऐसे में क्या जनता उन्हें बीजेपी से जोड़कर देख पाएगी या नहीं?
5- किरण बेदी को बीजेपी ने चेहरा जरूर बनाया है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह पार्टी के ब्राह्मण-बनिया वोट बैंक को एड्रेस नहीं करती हैं, जो दिल्ली में निर्णायक है. बेदी की छवि सख्त एडमिनिस्ट्रेटर की है, इसकी वजह से खासतौर पर बनिया वोट, जो बीजेपी से कई प्रकार की छूट मिलने की उम्मीद लगाता है, छिटक सकता है. इसके ठीक उलट अरविंद केजरीवाल ब्राह्मण-बनिया वोटों पर डोर डाल रहे हैं.