गुजरात में हाल ही में नए मुख्यमंत्री बने विजय रुपानी की सरकार ने मंगलवार को आर्थिक तौर पर गुजरात हाईकोर्ट के आरक्षण के अध्यादेश को असंवैधानिक बताया. गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 16 अगस्त को तय की है.
गुजरात हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अनारक्षित श्रेणी के तहत दस फीसदी आरक्षण के अध्यादेश को रद्द कर दिया है. आरक्षण कि मांग करने वाले पाटीदार समुदाय को शांत करने के लिए राज्य की बीजेपी सरकार ने यह कदम उठाया था.
अध्यादेश को बताया अनुपयुक्त
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और वी एम पंचोली की खंडपीठ ने एक मई को जारी अध्यादेश को अनुपयुक्त और असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि सरकार के दावे के मुताबिक इस तरह का आरक्षण कोई वर्गीकरण नहीं है बल्कि वास्तव में आरक्षण है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अनारक्षित श्रेणी में गरीबों के लिए दस फीसदी का आरक्षण देने से कुल आरक्षण 50 फीसदी के पार हो जाता है जिसकी सुप्रीम कोर्ट अनुमति नहीं देता है.
10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान
राज्य सरकार के ईबीसी को कोटा देने के फैसले को जून में गुजरात हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी. राजकोट के लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता, जयंतीभाई मनानी द्वारा दायर की गई याचिका पर अदालत ने प्रतिक्रिया देते हुए एक नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से आग्रह किया था कि राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर जारी गुजरात गैर-आरक्षित आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (राज्य में शिक्षण संस्थानों और राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों तथा पदों में आरक्षण) अधिसूचना, 2016 गैर-आरक्षित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले ऐसे लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान था जिनके परिवार की वार्षिक आय छह लाख रुपये से ज्यादा ना हो, इस अध्यादेश को खारिज किया जाए.