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आईआईटी खड़गपुर द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएम मोदी के जन्मस्थल वडनगर में लगभग 2800 साल पहले मानव जीवन मौजूद था. आईआईटी खड़गपुर, भारतीय पुरातत्व विभाग, अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और डेक्कन कॉलेज के विशेषज्ञों की टीम ने वडनगर में पिछले कुछ सालों से लगातार शोध और खुदाई का काम कर रही है. वडनगर में हो रही खुदाई का नेतृत्व एएसआई की टीम द्वारा किया गया था. वहीं, अनुसंधान को गुजरात सरकार के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय द्वारा वित्तीय मदद दी गई.
पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मस्थल से एक किलोमीटर से कम दूरी पर एएसआई द्वारा किए गए अध्ययन में बीते करीब 2800 वर्षों की अवधि में वडनगर में विभिन्न राजाओं के उत्थान और पतन के बारे में जानकारी मिल रही है. यह अध्ययन सात सांस्कृतिक कालखंडों अर्थात वैदिक काल, बौद्ध काल, मौर्य युग, इंडो-ग्रीक, शक-क्षत्रप काल, सोलंकी युग, मुगल सल्तनत-इस्लामिक युग और गायकवाड़-ब्रिटिश शासन काल तक वडनगर में बसी निरंतर मानव जीवन से संबंधित है. संशोधन में स्पष्ट संकेत मिलता है कि पिछले कुछ वर्षों में वडनगर की गतिशीलता में जलवायु ने प्रमुख भूमिका निभाई है.
जल प्रबंधन प्रणाली के कारण जिंदा रहा यह शहर
आर्कियोलॉजिकल विभाग के सुपरवाइजर मुकेश ठाकोर ने कहा वडनगर में खुदाई का काम 2005 से चल रहा है. उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तभी से गुजरात सरकार ने शोध कार्य शुरू किया था. वडनगर से वर्षों पुराने दो लाख अवशेष हासिल हुए हैं. इस शहर के जीवित रहने का कारण इसकी जल प्रबंधन प्रणाली और जमीन में पाया जाने वाला जल स्तर रहा है. समय-समय पर यहां कृषि एवं अन्य व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल रह चुका है. वडनगर में मिले अवशेष से साबित होता है कि यहां बौद्ध, जैन और हिंदू सभी धर्मों के लोग रहते थे.
खुदाई की जगह के पास मिला वडनगर का सुरक्षा कवच
खुदाई का काम जिस साइट पर हुआ है, उसके बिल्कुल करीब एक मिट्टी की चट्टान के भीतर वडनगर के लिए बनाया गया एक सुरक्षा कवच यानी दीवार पाई गई है. आर्कियोलॉजिकल विभाग के सुपरवाइजर मुकेश ठाकोर ने कहा ने कहा कि इस मिट्टी की चट्टान को हटाने के बाद 2000 साल पुरानी संस्कृति के प्रमाण पाए गए. अलग-अलग समय में वडनगर में आकर जीवन बिताने वाली चार संस्कृतियों के बारें में प्रमाण मिलता है. इसी के बिलकुल करीब देश का सबसे बड़ा संग्रहालय तैयार हो रहा है. इसकी दूरी प्रधानमंत्री मोदी के जन्मस्थान से एक किलोमीटर से भी कम है.
पता कर रहे हैं कि कितनी और कैसी बस्तियां मौजूद रहेंगी
आईआईटी खड़गपुर में भूविज्ञान और भूभौतिकी के प्रोफेसर डॉ. अनिंद्य सरकार ने वडनगर में मिले जीवन चक्रों के बारे में कहा, 'हम एएसआई के साथ मिलकर पिछले चार-पांच साल से काम कर रहे हैं. एएसआई यह पता लगाने की कोशिश कर रहा था कि प्राचीन काल में यहां कितनी और किस तरह की बस्तियां मौजूद रही होंगी. इसके अलावा पीआरएल-अहमदाबाद, जेएनयू, डेक्कन कॉलेज जैसे संस्थान भी वडनगर में लंबे समय से शोध कर रहे थे.’
प्राचीन बौद्ध मठ भी इस खुदाई स्थल के पास मिला
प्रोफेसर डॉ. अनिंद्य सरकार कहते हैं कि यहां एक बहुत प्राचीन बौद्ध मठ भी मिला है. साल 2016 से एएसआई ने यहां गहरा खनन करने का फैसला किया और करीब 21 मीटर गहरी खुदाई की गई. इसमें सात युगों के अस्तित्व को प्रमाणित करने वाली सात संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं. सबसे पुराना अवशेष 2800 साल पुराना प्राप्त हुआ है.
पास में बन रहा संग्रहालय, रखे जाएंगे खुदाई में मिले अवशेष
साल 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद ASI ने 2014 से 2022 के दौरान वडनगर में फिर से खुदाई की. एएसआई पुरातत्वविद् अभिजीत अम्बेकरे ने कहा कि जब हम खुदाई स्थल से 20 मीटर की गहराई पर पहुंचे, तो पानी दिखाई दिया. पानी निकालने की कोशिश हुई, लेकिन हिस्सा ढह जाने के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका.
आने वाले दिनों में लोग वडनगर के बारे में जानकारी हासिल कर सकें, उस दिशा में तेजी से कार्य हो रहा है. वडनगर में एक संग्रहालय तैयार हो रहा है, जिसमें सात कालचक्रों के पाए गए अवशेष रखे जाएंगे. इस संग्रहालय से लोग इस खुदाई वाली जगह तक जा सकेंगे और सातों कालचक्रों की संस्कृति और जीवनशैली के बारें में जानकारी हासिल कर सकेंगे. उस दिशा में तेजी से काम शुरू किया गया है.