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मोदी मैंनेजमेंट के 'सबसे बड़े गुरु' हैं अमित शाह...

अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली है. ऐसे में उनके बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही है. जानिए कौन हैं अमित शाह...

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अमित शाह को मिठाई खिलाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अमित शाह को मिठाई खिलाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली है. ऐसे में उनके बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही है. जानिए कौन हैं अमित शाह...

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दरअसल, अमित शाह मोदी मैनेजमेंट के सबसे बड़े गुरु हैं. गुजरात की राजनीति में ऐसा कम ही हुआ है, जब किसी व्यापारी के बेटे ने सियासी दांवपेच में माहिर होने की शोहरत हासिल की हो. व्यापारी अनिलचंद्र शाह के यहां जन्मे अमित शाह अब बीजेपी के सेनापति बन चुके हैं.

बीजेपी महासचिव अमित शाह की जिंदगी तीन शब्दों के इर्द-गिर्द घूमती है- मोदी, एनकाउंटर और यूपी. लेकिन उनके करीबी लोग बताते हैं कि चुनौतियों और अवसरों को पहचानने में शाह का जवाब नहीं है.

शाखा, स्टॉक और राजनीति...
साइंस स्नातक कॉलेज में छात्र नेता रहे अमित शाह संघ की शाखाओं में बचपन से ही जाया करते थे और राजनीति में आने से पहले एक स्टॉक ब्रोकर थे. एक स्टॉक ब्रोकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य अमित शाह अब बीजेपी में किसी का भी 'स्टॉक' ऊपर ले जा सकते हैं और किसी को भी सियासी दौड़ से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं.

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शाह के करीबी कहते हैं कि उन्होंने धीरूभाई अंबानी और अन्य धनी व्यापारियों से प्रेरित होकर प्लास्टिक का धंधा शुरू किया था, लेकिन जल्द ही उन्हें लगने लगा कि बिना सरकारी मदद के कोई भी बड़ा उद्योग खड़ा करना मुश्किल है.

एक वरिष्ठ संघ प्रचारक ने 26 वर्ष के युवा अमित शाह को उस समय तक संघ और बीजेपी में अपनी पैठ बना चुके 41 वर्षीय नरेंद्र मोदी से मिलवाया. मोदी उन दिनों अपनी टीम बना रहे थे और उन्हें अमित शाह के आत्मविश्वास ने काफी प्रभावित किया.

अमित शाह ने मोदी से लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव-प्रचार संभालने की इच्छा जताई. शाह ने कहा कि उनके पिता माणसा, जो गांधीनगर लोकसभा क्षत्र में आता है, के एक प्रतिष्ठित व्यापारी रहे हैं और वह गांधीनगर के राजनीतिक समीकरणों से अच्छी तरह वाकि‍फ हैं. आडवाणी के उस चुनाव के बाद शाह ने पार्टी में अच्छी पहचान बना ली.

बीजेपी और गुजरात की राजनीति को करीब से देखने वाले कई लोग मोदी और शाह के रिश्ते को 1980 और 1990 में आडवाणी और मोदी के रिश्ते जैसा बताते हैं. शायद यही कारण है कि मोदी को शाह में अपने उस युवा जोश की झलक दिखी और उन्होंने अपना अभिन्न सहयोगी बना लिया. साल 2001 में जब केशुभाई पटेल को हटाकर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो उससे पहले ही उन्होंने अमित शाह को एक कद्दावर नेता बना दिया था.

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शाह 1995 में गुजरात स्टेट फाइनेंसियल कॉरपोरेशन के चेयरमैन बनाए गए. इस पद पर रहते हुए वो कुछ खास असर नहीं दिखा पाए, लेकिन यहां रहते हुए उनकी नजर गुजरात के को-ऑपरेटिव बैंक सेक्टर पर पड़ी. बस कुछ दिनों में वो अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक के मुखिया बन गए.

शाह हैं मोदी के आंख-कान
उन्हीं दिनों गुजरात में मोदी का बढ़ता विरोध देखकर पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुला लिया. लेकिन गुजरात में रहते हुए शाह मोदी के आंख-कान बने रहे और गुजरात की राजनीति की पल-पल की खबर उन्हें पहुंचाते रहे. शाह ने इस दौरान गुजरात के को-ऑपरेटिव बैंक और मंडलियों पर, जिस पर वर्षों से कांग्रेस का कब्जा था, अपनी पकड़ मज़बूत करनी शुरू कर दी.

साल 2002 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की दोबारा सरकार बनी, तो क्षमता, सूझबूझ और वफादारी देखते हुए सरकार में सबसे कम उम्र के शाह को गृह राज्यमंत्री बनाया गया. शाह को सबसे अधिक दस मंत्रालय दिए गए और उन्हें दर्जनों कैबिनेट समितियों का सदस्य बनाया गया. उन दिनों यह चर्चा थी कि शाह पर ये मेहरबानियां केशुभाई को हटाने में मदद करने के ईनाम के रूप में की गई थीं.

साल 2002 में अमित शाह को पार्टी ने सरखेज विधानसभा से टिकट दिया. चुनाव में वह रिकॉर्ड एक लाख 60 हजार मतों से जीत कर आए. यह जीत नरेंद्र मोदी की चुनावी जीत से भी बड़ी थी. 2007 में जाकर यह आंकड़ा 2 लाख 35 हजार पर पहुंच गया.

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मोदी अमित शाह के चुनावी दांव-पेच के प्रशंसक बन गए थे. मोदी मंत्रिमंडल में अमित शाह जल्द ही सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे. फिर क्या था...'जो हुकुम मेरे आका' के तर्ज पर शाह मोदी के हर मंसूबे को अंजाम तक पहुंचाते रहे.

चाहे गुजरात की को-ऑपरेटिव मंडली हो या सरकारी-निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की यूनियन, शाह ने बीजेपी का झंडा हर जगह लहराया. शाह मोदी के कवच बन चुके थे और और फिर चाहे पुलिस अफसर हों या विपक्ष के नेता या गुजरात बीजेपी में मोदी विरोधी, शाह ने सभी को मोदी के आदेश मानने को मजबूर कर दिया. मोदी मानते थे कि जब तक पुलिस और सरकारी अधिकारी उनके साथ नहीं होंगे, वे राज्य में लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगे.
राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि शाह जैसी माइक्रो मैनेजमेंट और चुनाव के वक्त बूथ मैनेजमेंट की क्षमता कम ही लोगों में है. एक बार मोदी ने शाह से गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में कांग्रेस की पकड़ के बारे में चिंता जताई. फिर क्या था, शाह ने 2009 में मोदी को जन्मदिन के तोहफे के रूप में एसोसिएशन का अध्यक्ष पद दिया और खुद उपाध्यक्ष बन गए. हालांकि शाह और मोदी के एसोसिएशन में आने से क्रिकेट का माहौल बिगड़-सा गया और राज्य का एक भी नया खिलाड़ी टीम इंडिया में अपनी जगह नहीं बना पाया. हालांकि, शाह के गुजरात से बाहर रहने के दौरान उनके पुत्र जय पार्टी के भीतर और बाहर अपनी जगह बना रहे हैं. जय हाल ही में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी बने हैं और टीम के चुनाव में बेहद दिलचस्पी रखते हैं, जिससे वरिष्ठ खिलाड़ी खासे नाराज हैं.

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अमित शाह और नरेंद्र मोदी के जीवन में कई समानताएं हैं. दोनों ने आरएसएस की शाखाओं में जाना बचपन से शुरू कर दिया था और दोनों ने अपनी जवानी में अपने जोश और कुशलता से वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया था. हालांकि शाह और मोदी के जीवन में सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ तब आया, जब उन्हें गुजरात से बाहर निकला गया. जहां मोदी को गुजरात में उनके खि‍लाफ बढ़ते विरोध के चलते निकाला गया, वहीं, शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर केस में आरोप लगने के बाद कोर्ट के आदेश पर तड़ीपार किया गया. अमित शाह अभी उस केस में जमानत पर चल रहे हैं. इसी मामले में पकड़े गए गुजरात के दर्जनों पुलिस अधिकारी जेल में हैं.

शाह को जब गुजरात से निकाला गया, तब उन्होंने अपना डेरा दिल्ली में स्थित गुजरात भवन में डाला. यहां रहते हुए वे बीजेपी के बड़े नेताओं के करीब आते गए और मोदी के लिए दिल्ली आने के रास्ते बनाते गए. जब बीजेपी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बना रही थी, तब मोदी और शाह जानते थे कि यूपी जीते बिना दिल्ली की कुर्सी पाना नामुमकिन जैसा है. तब शाह यूपी जाना नहीं चाहते थे, पर गुजरात में आनंदीबेन पटेल और अन्य खेमों की गुजरात बीजेपी में बढ़ती पकड़ देख उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली.

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बहरहाल, पार्टी की यूपी की कमान संभालते ही शाह एक राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए.

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