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EXCLUSIVE: 70 मिनट के टेप से खुलासा: इशरत एनकाउंटर पर सवालों के घेरे में गुजरात के मंत्री-अफसर

इशरत जहां एनकाउंटर केस में बड़ा खुलासा हुआ है. 70 मिनट के ऑडियो टेप से गुजरात सरकार में हड़कंप मचा हुआ है. ये ऑडियो टेप है 18 नवंबर 2011 को अहमदाबाद में हुई एक गोपनीय बैठक का, जिसमें गुजरात के गृहमंत्री समेत कई आला अधिकारी मौजूद थे.

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ऑडियो टेप से खुलासा
ऑडियो टेप से खुलासा

इशरत जहां एनकाउंटर केस में बड़ा खुलासा हुआ है. 70 मिनट के ऑडियो टेप से गुजरात सरकार में हड़कंप मचा हुआ है. ये ऑडियो टेप है 18 नवंबर 2011 को अहमदाबाद में हुई एक गोपनीय बैठक का, जिसमें गुजरात के गृहमंत्री समेत कई आला अधिकारी मौजूद थे. टेप के मजमून से ये बात सामने आई है कि इस बैठक में ये रणनीति बन रही थी कि कैसे इशरत एनकाउंटर केस की जांच को भटकाया जाए और एसआईटी को दूसरी एफआईआर दर्ज करने से रोका जाए.

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पहली बार जानिए इशरत एनकाउंटर केस का सनसनीखेज खुलासा...

15 जून, 2004
अहमदाबाद के पास हाईवे पर एक सनसनीखेज एनकाउंटर होता है. चार लोग मारे जाते हैं. मरने वालों में एक कॉलेज की छात्रा इशरत जहां थी. एनकाउंटर के बाद से इस पर तरह-तरह के सवाल उठे और छह साल बाद गुजरात हाईकोर्ट ने इसकी सच्चाई की पड़ताल के लिए एसआईटी का गठन कर दिया. जब एसआईटी अपनी रिपोर्ट दाखिल करने की तैयारी कर रही थी तभी अहमदाबाद में एक टॉप सीक्रेट बैठक होती है. बताया जाता है कि बैठक में ये रणनीति तैयार हुई कि इस केस में दूसरी एफआईआर दर्ज होने से कैसे रोका जाए. इस बैठक में नौ लोग शरीक हुए थे. टेप का खुलासा होने के बाद से इस बैठक के किरदार अब सीबीआई जांच के घेरे में हैं.

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ऑडियो टेप को सुनने के बाद ये साफ हो जाता है कि कैसे नवंबर 2011 में गुजरात के गृहमंत्री खुद एसआईटी रिपोर्ट के नतीजे को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे.

टेप में गुजरात के गृहमंत्री प्रफुल पटेल बोलते हैं, 'मैं जितनी मदद कर सकता था, की है.' बातचीत में वो आगे कहते हैं कि कैसे उन्होंने खुद जांच अधिकारी को बुलाया और उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की.

प्रफुल पटेल कहते हैं, 'मैंने ये जानते हुए भी कि इसमें इतना खतरा है, सतीश वर्मा को मेरे घर पर बुलाया और उनके साथ 4 घंटे से ज्‍यादा बात की. मैंने उनसे इन 18 लोगों की मदद करने को भी कहा और अगर आप ये करते हैं तो ये बड़ी बात होगी.'

गृह मंत्री राज्य की पुलिस का भी मुखिया होता है. लेकिन ऑडियो टेप में वही मंत्री इंसाफ के रास्ते में अड़ंगा डालने की कोशिश करते, जांच को फिक्स करने की कोशिश करते नजर आए. लेकिन उस रोज टॉप सीक्रेट कमरे में और भी बहुत कुछ हुआ.

जानिए आगे की बातचीत में कैसे तब के एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी आरोपी जीएल सिंघल के वकील रोहित वर्मा को ये सलाह दे कि कोर्ट में बचाव की रणनीति क्या हो.

त्रिवेदी कहते हैं, 'हमलोग पिछले कई घंटों से उस रिपोर्ट पर चर्चा कर रहे हैं जो 21 को आ सकती है. एक पल के लिए मान लो कि ये रिपोर्ट हमारे खिलाफ है. सबसे पहले तो ये जान लो कि हमें वकीलों के जरिए ही बात रखनी चाहिए, हर वक्‍त सरकार नहीं बोल सकती. इस वक्‍त आपको खुद अपनी आवाज बुलंद करनी होगी. एक सलाह ये है कि हमें 3 वकील रखने चाहिए. निरूपमभाई तो हैं ही, सूर्यप्रकाश राजू, तरुण बरोट का केस देखेंगे जबकि बाकी लोगों का के भारत नायक को देखना चाहिए.'

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कमल त्रिवेदी आगे कहते हैं, आपलोग इन तीनों से संपर्क कर सकते हैं और मैं भी बात करूंगा. मान लो रिपोर्ट सामने आती है और कोर्ट कहती है कि रिपोर्ट देखकर पहली नजर में एनकाउंटर फर्जी लगता है. जैसे ये कोर्ट ये कहे, इसका विरोध होना चाहिए, संभवत: हम इस रिपोर्ट का मूल्‍यांकन करना चाहेंगे और इसके लिए हमें कुछ समय चाहिए. हम यह भी चाहेंगे कि हमें इस रिपोर्ट की एक कॉपी दी जाए ताकि हमारे पास जो कुछ भी तथ्‍य हैं

, हम अदालत के सामने ला सकें. हालांकि ये कोर्ट को तय करना है कि क्‍या करना है. इस तरह हमें हफ्ते या 10 दिन का टाइम लेने की कोशिश करनी चाहिए.'

ये गुजरात के तत्कालीन एडवोकेट जनरल हैं जो आरोपी पुलिसकर्मियों के बचाव की रणनीतिक बना रहे थे. यहां गौर करने वाली बात ये है कि आरोपों के घेरे में गुजरात सरकार नहीं बल्कि कुछ पुलिस वाले थे. ऐसे में आरोपियों के बचाव की रणनीति में गुजरात के एडवोकेट जनरल क्यों शामिल थे?

70 मिनट की बातचीत के दौरान कुछ मौकों पर तब एजी और दूसरे लोगों ने केस की सुनवाई कर रहे जजों को लेकर गलत टिप्पणियां भी की. एक मौके पर तो एजी कमल त्रिवेदी ने केस की सुनवाई कर रहे जज को लेकर अभद्र टिप्पणी भी कर दी. सीक्रेट में मीटिंग में जो लोग मौजूद थे और टेप से जो ब्योरा सामने आया, उससे साफ जाहिर है कि दूसरी एफआईआर और आगे की जांच रोकने के लिए एडवोकेट जनरल और सूबे के गृह मंत्री किस हद तक कोशिश कर रहे थे. सवाल उठता है कि क्यों? आखिर ये बड़े पुलिस अफसर और मंत्री फर्जी एनकाउंटर के आरोपी पुलिस वालों को बचाने की कोशिश में क्यों लगे थे? क्या सिर्फ इस डर से कि कहीं उस बड़ी साजिश का खुलासा ना हो जाए जो इस फर्जी एनकाउंटर के पीछे रची गई थी?

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टेप में सिर्फ इतना ही नहीं है. टेप की बातचीत से सामने आता है कि बैठक में नरेंद्र मोदी के करीबी आईएएस अफसर जीसी मुर्मु भी मौजूद थे जो तब सचिव की हैसियत से मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े थे. आज भी वो इसी पद पर हैं. इस टेप में आप मुर्मु की आवाज सुन सकते हैं, जो जांच दबाने के तरीके पर विचार विमर्श कर रहे थे.

बैठक की ऑडियो रिकार्डिंग से जाहिर होता है कि बैठक में मौजूद लोग ये मान चुके थे कि एसआईटी इशरत जहां एनकाउंटर को फर्जी घोषित कर देगी और इसका मतलब ये होगा कि इसमें शामिल पुलिस वालों को आपराधिक केस का सामना करना होगा. फिर भी ये ताकतवर राजनेता और सरकारी अफसर आगे की जांच प्रभावित करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे थे.
- आखिर गुजरात सरकार किस बात से परेशान थी?
- गुजरात की पूरी मशीनरी नई जांच के खिलाफ क्यों थी?
- क्या सिर्फ इसलिए कि आगे की जांच से और बड़ी साजिश का खुलासा हो सकता है?
- ऐसी साजिश जिसके लपेटे में बड़े सियासी नाम भी आ सकते हैं?
बातचीत से जाहिर होता है कि सीक्रेट मीटिंग में मौजूद लोग केस को पोटा कोर्ट में भेजना चाहते थे. उनकी बातों से लगता है कि उन्हें भरोसा था कि पोटा कोर्ट में वो केस दबाने में कामयाब हो जाएंगे. जानिए आरोपी पुलिस अफसर जीएल सिंघल के वकील रोहित वर्मा ने उस बैठक में क्या कहा था.

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राहित वर्मा कहते हैं, 'जिस वक्‍त वो पोर्ट कोर्ट में रिपोर्ट फाइल करेंगे, गेंद हमारे पाले में होगी. हमें किसी तरह एसआईटी को पोटा कोर्ट तक ले जाना होगा. आप उतना कर देंगे सर, बाकी तो कानूनी दांव पेंच इतना है कि ना तो पोटा कोर्ट संज्ञान ले पाएगी ना कुछ कर पाएगी. ऐसे ही चलता रहेगा, 2 साल, 4 साल, 5 साल. इतनी कानूनी जटिलताएं हैं, ये केस बंद होना चाहिए बस.'

एक प्राइवेट वकील कार्यवाहक एडवोकेट जनरल जैसे गुजरात सरकार के टॉप कानूनी अफसर के साथ बैठकर ये रणनीति तैयार कर रहा है कि केस को कैसे पोटा कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए. लेकिन, इतना ही काफी नहीं था. कार्यवाहक एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने मीटिंग में मौजूद लोगों से ये भी बताया कि उन्होंने एसआईटी के कामकाज को कैसे काबू में रखने की कोशिश की.

कमल त्रिवेदी कहते हैं, 'मैंने उनसे कहा है, उनसे बात की है, मैंने उन्‍हें सलाह दी कि रिटायर हो जाओ.....सही है मुर्मू? बेशर्म आदमी कहता है कि अगर मैंने उसे डिमोट करने की कोशिश की तो वो सबसे पहले सारा खुलासा कर देगा.

देखा आपने, कैसे कार्यवाहक एडवोकेट जनरल एसआईटी के एक सदस्य को अपने चैंबर में बुलाते हैं और उनसे पद छोड़ने को कहते हैं. यहां बात मोहन झा की हो रही है जो गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर बनी एसआईटी के तीन सदस्यों में एक हैं. एक बार फिर इस बातचीत को सुनिये. बातचीत के क्रम में कमल त्रिवेदी ने नरेंद्र मोदी के ताकतवर सचिव जीसी मुर्मू का नाम भी लिया. इस बैठक में मुर्मू भी मौजूद थे और टेप में उनकी आवाज भी है. ऑडियो रिकार्डिंग से साबित होता है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के सचिव भी इशरत जहां केस में आगे की जांच रोकने की कोशिश में शामिल थे.

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