भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की हिंसा का असर पूरे महाराष्ट्र में दिख रहा है. अब आग की चिंगारी पड़ोसी राज्य गुजरात में भी देखने को भी मिल रही है. बुधवार देर रात दलित समुदाय के कुछ लोगों ने चाणस्मा हाइवे पर टायर जलाकर विरोध प्रदर्शन किया. जिसका असर यातायात पर देखने को मिला था, हालांकि पुलिस ने मशक्कत कर इसे खुलावाया. अभी भी दलितों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है, उन्होंने 5 जनवरी को पाटण बंद का ऐलान किया है.
आपको बता दें कि हिंसा के बाद बुधवार को दलित संगठनों ने महाराष्ट्र बंद बुलाया था. जो एक तरह से सफल साबित हुआ था, बुधवार को महाराष्ट्र में कई जगह हिंसा हुई, बसों को जलाया गया, धरना प्रदर्शन भी हुए थे. बुधवार को भी महाराष्ट्र के साथ गुजरात में भी कई जगह ऐसा ही देखने को मिला था. राजकोट के धोराजी में कुछ अज्ञात लोगों ने सरकारी बस को आग के हवाले कर दिया था. वापी में भी दलित सेना ने हाइवे जाम किया था.
बता दें कि दलित नेता प्रकाश अंबेडकर की अगुवाई में बुधवार को महाराष्ट्र बंद बुलाया गया था, जिसका कई संगठनों ने समर्थन किया था. इस दौरान मुंबई के मशहूर डब्बावाले, स्कूल बसों की सर्विस बंद रही थी. प्रकाश अंबेडकर ने देर शाम बंद को सफल बताते हुए इसे वापस लिया था.
मालूम हो कि बीते सोमवार को भीमा-कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने की खुशी में कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस बीच अचानक हिंसा भड़क गई. इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसके बाद यह हिंसा पूरे महाराष्ट्र में फैल गई. पुणे, अकोला, औरंगाबाद और ठाणे से लेकर मुंबई तक में हालात बेकाबू हो गए. इसके बाद राज्य सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए.
वहीं, यह मामला संसद में भी उठाया गया. लोकसभा में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ये फूट डालने की कोशिशों का नतीजा है. श्रद्धांजलि कार्यक्रम को लेकर विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार और विपक्ष में इस मुद्दे को लेकर जुबानी तीर भी चले.
आखिर क्या है भीमा कोरेगांव की लड़ाई
भीमा कोरेगांव की लड़ाई एक जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में हुई थी. यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी. अंग्रेजों की तरफ 450 महार समेत कुल 500 सैनिक थे और दूसरी तरफ पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे. सिर्फ 500 सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था.
हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं. यहीं वो जयस्तंभ स्थित है, जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. कहा जाता है कि साल 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे, जिसके बाद से अंबेडकर में विश्वास रखने वाले इसे प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं.