scorecardresearch
 

पैरोल पर छूटे बिलकिस बानो के दुष्कर्मी पर छेड़छाड़ का एक और केस, गुजरात सरकार के हलफनामे से खुलासा

बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई का मुद्दा पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है. इस मामले में अब गुजरात सरकार के हलफनामे से जुड़े कई खुलासे हुए हैं. गुजरात सरकार ने जिन दोषियों का आचरण अच्छा पाए जाने की बात कहकर रिहाई की अनुशंसा की है. उनमें से एक दोषी के खिलाफ पैरोल के दौरान छेड़छाड़ का केस दर्ज हुआ था.

Advertisement
X
बिल्किस बानो (File Photo)
बिल्किस बानो (File Photo)

बिलकिस बानो गैंगरेप और उनके 3 साल के बच्चे की हत्या के केस में दोहरे अजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने दावा किया कि 14 साल तक जेल में उनके अच्छे आचरण को देखने के बाद उन्हें गोधरा जेल से छोड़ने का निर्णय लिया गया. लेकिन अब गुजरात सरकार का हलफनामा ही सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े कर रहा है.

Advertisement

बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों में से 10 ने जेल से पैरोल और फरलो सहित 1,000 दिनों से ज्यादा की 'छुट्टी' ली है. जेल अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में दोषियों के पैरोल और फरलो लेने के बाद 'देर से लौटने' के कई मामले भी दर्ज किए हैं. 

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल गुजरात सरकार के हलफनामे के मुताबिक दोषियों में से एक बाकाभाई खिमाभाई वहोनिया को 998 दिनों की छुट्टी मिली. वहीं, रमेशभाई रूपाभाई चंदना को सबसे ज्यादा 1,576 दिनों की छुट्टी मिली.  सभी 11 दोषियों को उनके कारावास से चार साल का 'सेट ऑफ' समय भी दिया गया है. दोषियों को जनवरी 2004 को गिरफ्तार किया गया था, जबकि 21 जनवरी 2008 को उन्हें सजा सुनाई गई थी. 

हलफनामे से पता चलता है कि एक दोषी मितेश चिमनलाल भट्ट के खिलाफ पैरोल के दौरान छेड़छाड़ का मामला दर्ज हुआ है. भट्ट के खिलाफ दर्ज मामला जून 2020 का है. मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है और दाहोद जिले की अदालत में मुकदमा चल रहा है. 

Advertisement

भट्ट के खिलाफ छेड़छाड़ की एक और एफआईआर दर्ज होने के 281 दिनों बाद उन्हें फिर पैरोल दे दी गई. जेल सलाहकार समिति की रिपोर्ट में जेल के अंदर उनके व्यवहार को अच्छा बताया गया. पुलिस अधीक्षक, लिमखेड़ा ने अपनी रिपोर्ट में प्राथमिकी और चल रहे मुकदमे का उल्लेख किया करते हुए नो ऑब्जेक्शन का संकेत दिया.

पीड़िता के परिवार से सलाह नहीं ली!

हलफनामे से यह भी संकेत मिलता है कि पीड़िता के परिवार से भी इसके लिए सलाह मशविरा किया जाना चाहिए था. लेकिन केवल एक ही मामले में ऐसा किया गया, जिसमें दोषी का परिवार और बिलकिस बानो का परिवार एक ही गांव में रहता था. केवल राधेश्याम भगवानदास शाह के मामले में ही स्थानीय पुलिस ने पीड़िता से सलाह ली थी. 

एसपी ने रिहाई के खिलाफ लिखा था पत्र

दाहोद के पुलिस अधीक्षक ने जेल सलाहकार समिति को लिखे पत्र में राधेश्याम शाह की रिहाई के खिलाफ सिफारिश की थी. इस मामले में पीड़िता और उसके रिश्तेदारों ने कहा था कि कैदी राधेश्याम भगवानदास शाह और उसके साथी गंभीर अपराध कर सकते हैं. इसलिए उसे समय से पहले जेल से रिहा नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि उन्हें समय से पहले नहीं छोड़ा जाए.

Advertisement
Advertisement