अहमदाबाद के रहने वाले नीरव ओर जल्पा देसाई के लिए पुलवामा में सीआरपीएफ बस पर हुए आंतकी हमले का मंजर अपने जहन से निकाल पाना असंभव हो रहा है. दरअसल नीरव ओर जल्पा अपने हनीमून के लिए श्रीनगर गए थे. दोनों ही श्रीनगर से पुलवामा होते हुए पहलगाम जा रहे थे. जिस वक्त आंतकी ने सीआरपीएफ के जवानों पर हमला किया, उस वक्त वो दोनों हमले की जगह से कुछ ही किलोमीटर दूर थे.
धमाके के बाद दोनों कुछ समझ ही नहीं पाए. उनके साथ उनका कश्मीर का एक लोकल ड्राइवर था, वो भी समझ नहीं पाया कि आखिरकार हुआ क्या है. कुछ ही पल में जैसे ही वो आगे बढ़े वहां मौजूद आर्मी और सीआरपीएफ के जवानों ने उन्हें पहलगाम की ओर आगे बढ़ने से रोक दिया और श्रीनगर वापस भेज दिया. नीरव देसाई का कहना है कि हमें जब पता चला कि यहा आतंकी हमला हुआ है, उस वक्त हम लोग वहां से कुछ ही दूरी पर थे, लेकिन आर्मी के जवान जिस तरह वहां से लोगों को हटा रहे थे, वो देख हम काफी डर गए.
इस हमले की खबर जैसे ही फैली, तुरंत दोनों के घर से फोन आने लगे. नीरव ने बताया कि उन्हें डर लग रहा था. हालांकि, वहां के लोग उन्हें बहुत सामान्य लगे. आर्मी और सीआरपीएफ के पूरे काफिले को उन्होंने अपनी नजरों के सामने जाते हुए देखा. आज भी उस मंजर को याद कर दोनों सहम जाते हैं. जल्पा देसाई का कहना है कि हमने पहली बार डर को महसूस किया था, तब हमें श्रीनगर के होटल में वापस जाना ही सबसे सुरक्षित लगा.
जैसे ही 40 जवानों के शहीद होने की खबर नीरव और जल्पा को मिली, वो अपने हनीमून को कैंसिल करके श्रीनगर से अहमदाबाद आने के लिए निकल गए. नीरव का कहना है कि हमला 14 फरवरी को हुआ. इसके बाद जब हम श्रीनगर के होटल में वापस आ गए, तो होटल के अंदर भी डर महसूस हो रहा था. यही नहीं हम जब एयरपोर्ट के लिए निकले तो 6 किलोमीटर के अंतर में कम से कम 6 बार हमें चेक किया गया.