ऊना में दलित नौजवानों के साथ हुई हिंसा के मामले ने सड़क से संसद तक हंगामा मचा रखा है. इतने बड़े पैमाने पर वायरल हुए मामले को वक्त रहते संभाला जा सकता है. गुजरात की आनंदीबेन पटेल सरकार के कई मोर्चों पर पिछड़ने को इसकी बड़ी वजह बताया जा रहा है.
आनंदी बेन सरकार की लापरवाहियों की वजह से मामले का वीडियो देशभर में फैला और उसके बाद हंगामे की वजह बना. इस वीडियो ने प्रदेश में बीएसपी को फिर से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा थमा दिया. आइए जानते हैं, कहां-कहां चुकी आनंदी बेन सरकार-
- गौरक्षकों के जरिए दलितों को पीटे जाने के बाद जब वीडियो वायरल होने लगा तब सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. दूसरे दिन जब दलित समूहों ने मिलकर पुलिस स्टेशन का घेराव किया तब जाकर सरकार हरकत में आई और पुलिस ने आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया. इसके बाद पांच गौरक्षकों को गिरफ्तार किया गया.
- पुलिस स्टेशन के करीब दलितों को मारे जाने का वीडियो वायरल हुआ. लगभग हर मामले की तरह इस मामले में भी पुलिस की लचर शैली एक बार फिर विवाद के केंद्र में रही. अगर पुलिस उसी दिन यानी 11 जुलाई को कड़े कदम उठाती तो मुद्दा इतना तूल नहीं पकड़ता.
- सरकार की चूक इस मोर्चे पर भी दिखी कि मामला संवेदनशील होने के बावजूद शुरू से ही इस पर नजर नहीं रखी जा सकी. अगर मामला भांप कर फौरन कार्रवाई की गई होती तो यह मुद्दा सरकार के लिए गले की फांस नहीं बनता.
- शुरुआत में सरकार इसे झड़प का आम मामला ही मान रही थी. इस वजह से पहले तो पीड़ितों को 4 लाख के मुआवजे की घोषणा की. 5 प्रमुख आरोपियों को गिरफ्तार किया. हालांकि इसकी जानकारी किसी भी मीडिया या दलित समुदाय के नेताओं तक नहीं पहुंचाई गई.
- एक हफ्ते बाद जब मायावती ने इस मामले को राज्यसभा में उठाया तब जाकर सरकार हरकत में आई. आनन-फानन में सरकार ने कार्रवाई करते हुए और 7 लोगों को गिरफ्तार किया. इस मामले की पूरी जांच सीआईडी क्राइम को सौंपी गई. इतना ही नहीं 60 दिन में चार्जशीट दाखिल कर स्पेशल कोर्ट में मामला चले. इसकी घोषणा भी कर दी गई.
- सरकार की कई घोषणाएं काफी देर से हुई. वैसे देखा जाए तो जिस तरह की घटना थी, इसमें और ज्यादा सरकारी कार्रवाई की क्या उम्मीद की जा सकती है, लेकिन अब इस मुद्दे ने अत्याचार और इंसाफ से हटकर सियासत की शक्ल ले ली.
- सरकारी घोषणा में देरी के चलते दलित समूहों को वक्त भी मिला और राजनैतिक पार्टी सक्रिय हो गई . जिसके चलते इन आठ दिनों में दलित अत्याचार मामले ने राजनैतिक स्वरुप ले लिया था.
- 11 जुलाई को हुए इस हादसे में सूबे की मुखिया आनंदीबेन पटेल को पीड़ित परिवार और पीड़ितों से मिलने में 9 दिन का वक्त लग गया. दरअसल पीड़ितो से मिलने का फैसला भी तब हुआ जब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ओर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से ऊना जाने का ऐलान किया गया.
- खास कर ये देखा गया हे कि बीजेपी सरकार हमेशा गाय के कत्ल के मुद्दे पर संवेदनशील रहती है. पुलिस जहां गाय को कत्लखाने जाने से रोक नहीं पाती, वहां अब तक देखा गया है कि गौरक्षक ही इस तरह के लोगों को पकड़ने में आगे होते हैं. सरकार ने कभी ऐसे गौरक्षकों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की. क्योंकि हर बार पकड़े जाते लोगों में दूसरे संप्रदाय के लोग होते हैं. जो कुल मिलाकर बीजेपी सरकार को ही वोट बैंक का फायदा कराती है. यह भी सरकार की निष्क्रियता के लिए बड़ी वजह मानी जाती है.