ऊना में दलित युवकों की पिटाई का विरोध करते हुए गुजरात के दलित लेखक अमृतलाल मकवाना ने राज्य सरकार से उन्हें मिले पुरस्कार को वापस लौटाने कि घोषणा की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रशासन को दलित समुदाय के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है.
गुजरात के सुरेन्द्रनगर के रहने वाले दलित लेखक अमृतलाल मकवाना ने राज्य सरकार से उन्हें मिले 'दासी जीवन श्रेष्ठ दलित साहित्य कृति अवार्ड' को वापस लौटाने का फैसला लिया है. दरअसल अमृतलाल मकवाना ने पिछले दिनों गुजरात के ऊना में हुऐ दलितों पर अत्याचार से आहत होकर अपना विरोध जताते हुऐ ये फैसला लिया है. मकवाना बुधवार को अपना पुस्कार और उसके साथ मिली 25000 की नकद राशि को अहमदाबाद कलेक्टर को वापस लौटाएंगे.
लेखक ऊना हिंसा से आहत
मकवाना को साल 2014 में गुजरात राज्य समाज कल्याण विभाग की तरफ से उनकी किताब 'खारा पाटनु दलित लोक साहित्य' के लिये सम्मानित किया गया था. मकवाना का कहना है कि 'ऊना में जो हुआ वह बहुत ही भयावह है, दलितों के प्रति ऐसा अत्याचार निंदनीय है और उसने मुझे अंदर तक हिला दिया है. दुख की बात है कि ऐसी घटानाएं हमारे आस पास लगातार हो रही हैं.'
दलितों को नहीं मिलते समान अधिकार
अमृतलाल मकवाना ने कहा है कि 'सोशल मीडिया पर दलितों कि पिटाई का जो वीडियो वायरल हुआ है उसमें कम से कम 40 लोग मारते हुऐ दिख रहे हैं, जबकि उनमें से अब तक सिर्फ 16 लोगों को ही गिरफ्तार किया गया है. हालांकि जो राजनेता भी मिलने पहुंचे थे वो भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे थे, ऐसे में सवाल यही है कि भारत जहां वैश्विक तौर पर अपनी छवि को आगे बढ़ा रहा है वहां दलितों को समानता का अधिकार देने में कोताही क्यों बरती जा रही है.'