अक्सर किसी नरभक्षी जानवर को पकड़ने के लिए वन विभाग पिंजरे में ट्रैप लगाता है. इसमें बकरी या कोई अन्य जानवर को रखा जाता है. मगर, गुजरात के छोटा उदयपुर में मानवभक्षी तेंदुए को पकड़ने के लिए ट्रैप में इंसान को ही बैठा दिया गया. वन विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि एक बार कोई भी जंगली जानवर नरभक्षी हो जाता है, तो उसे इंसान के खून की सुगंध आकर्षित करती है.
इस ट्रैप को लगाने के बाद पिंजरे में करीबन 5 से 6 घंटे तक शिकार की तरह फॉरेस्ट ऑफिसर अनिल राठवा बैठे रहे. ताकी नरभक्षी तेंदुए को इंसानी सुगंध आए और वो शिकार के लिए पिंजरे के पास आए. अनिल राठवा का कहना है कि शिकार के तौर पर बैठने की वजह ये होती है कि वो इंसान की स्मेल से आकर्षित होकर करीब आता है. आखिरकार मेहनत रंग लाई और तेंदुओ को पकड़ लिया गया.
...इसलिए नहीं डरते वनकर्मी
हालांकि, डर इसलिए भी नहीं होता है कि सालों से जंगली जानवर के साथ ही हम काम करते हैं. हमारे पर जानवर को बेहोश करने वाली दवाई वाले इंजेक्शन भरी गन भी रहती है. जैसे ही जानवर पिंजरे के पास आता है, उसे हम गन से बेहोशी का इंजेक्शन लगा देते हैं.
डर से घरों में दुबके हैं लोग
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से छोटा उदयपुर के बोडेली तहसील में एक तेंदुए के नरभक्षी होने की वजह से उसे दो बच्चों का शिकार किया, जबकि तीन लोगों को घायल किया था. इस वजह से यहां के गांव वालों बाहर निकलने में डर हैं. यहां तक कि वो अपने बच्चों को स्कूल तक नहीं भेज रहे हैं.
14 जगह लगाए गए पिंजरे
बोडेली के मुलधर, टोकरवा, धोलीवाव जैसे इलाके में 14 अलग अलग पिंजरे रखे गए थे. पिछले एक हफ्ते से तेंदुआ लगातार वन विभाग के कर्मचारियों की पकड़ से बाहर था. बार बार वन विभाग तेंदुए तक पहुंच कर भी उसे पकड़ नहीं पा रहा था. मुलधर गांव के रहने वाले राम वसावा का कहना है कि तेंदुए की वजह से सभी गांव वालों में काफी भय था. यहां तक की दो बच्चे शिकार हुए, तो हमारे बच्चों के लिए काफी चिंतित थे.
बच्चों पर खतरा होने पर करते हैं तेंदुए हमला
दरअसल, आमतौर पर जंगल और कई बार खेत के आस-पास के इलाके में रहने वाले तेंदुए इस वक्त उनके बच्चे आने के बाद बच्चों के साथ वो खेत या झाड़ियों में रहना पसंद करते हैं. वैसे में जब खेत में कटाई होती है, तो तेंदुए को लगता है कि उनके बच्चों के लिए खतरा है और वो इंसान पर हमला कर देता है.
दोबारा शिकार के लिए उसी इलाके में आता है तेंदुआ
राकेश वणकर रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर नसवाडी का कहना है कि जब हमें पता चला कि तेंदुआ इस इलाके में है, तो हमने उसे 135 वनकर्मचारीओं के साथ ट्रैप किया. धीरे-धीरे उसके शिकार के इलाके को छोटा करते गए. फिर हमने उसे बेहोशी का इंजेक्शन देकर पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं हो पाया.
हालांकि, कई बार ऐसा होता है कि जानवर एक बार जहां पर शिकार करता है, दूसरे दिन उसी जगह पर दोबारा शिकार के लिए आता है. इसलिए हमने इस जगह पर पिंजरा लगाया. पिंजरे में इंसान को बिठाने की वजह यह थी कि तेंदुआ आदमखोर हो चुका है और उसे इंसान का खून चख लिया है. ऐसे में वो इंसान पर दोबारा हमला करेगा.
इसलिए वनकर्मचारी को ही पिंजरे में ट्रैप के तौर पर बिठाया जाता है. साफ है कि तेंदुए को पकड़ने के लिए वन विभाग लगातार मेहनत कर रहा था. आखिरकार वन विभाग के लोग तेंदुए के लिए बतौर ट्रैप बनकर 5 घंटे से ज्यादा बैठे, तब जा कर तेंदुआ पिंजरे के करीब आया और उसे बेहोश किया जा सका.