पालनपुर के 1996 एनडीपीएस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को आज कोर्ट ने 20 साल के कठोर कारावास और 2 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. इसके बाद संजीव भट्ट को पुलिस हिरासत में पालनपुर उप जेल ले जाया गया. द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एनडीपीएस मामले में बुधवार को दोषी करार दिया था. भट्ट के वकील एसबी ठाकोर ने कहा कि उनके मुवक्किल फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे.
संजीव भट्ट को गुरुवार को सजा सुनाए जाने के दौरान उनकी पत्नी श्वेता भट्ट भी मौजूद थीं. सजा का ऐलान होने के बाद उन्होंने फैसले के खिलाफ सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि हमें निष्पक्ष ट्रायल का मौका ही नहीं दिया गया. जिस व्यक्ति ने ड्रग्स पकड़ने के लिए रिवॉर्ड लिया, उसे अप्रूवर बनाकर हम पर आरोप लगा दिए गए. 4.5 साल से इस कोर्ट के जज का तबादला नहीं हुआ. हमने सारे मुद्दे उठाए, लेकिन हमारी कोई बात सुनी नहीं गई. हम इस केस में कहीं थे भी नहीं. यह पूरी तरह गलत है.
वकील को अफीम रखने के झूठे मामले में फंसाया
संजीव भट्ट ने 1996 में राजस्थान के एक वकील को अफीम रखने के झूठा फंसाया था. दरअसल, पुलिस ने पालनपुर के एक होटल में छापा मारा था, जहां वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित ठहरे हुए थे. उनके कमरे से अफीम बरामद करने का संजीव भट्ट ने दावा किया था. उस वक भट्ट बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक थे.
दुकान खाली कराने के मामले में किया गया था केस
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक संजीव भट्ट (अब बर्खास्त) ने पाली के रहने वाले वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित के खिलाफ अफीम का झूठा मामला पाली में एक दुकान खाली कराने के लिए बनाया था. इस मामले में पीड़ित अधिवक्ता सुमेरसिंह को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया. फिर पाली में दुकान खाली कराने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था. तब से इसकी जांच लंबित थी. भट्ट को साल 2015 में बल से बर्खास्त कर दिया गया था और वह 2018 से सलाखों के पीछे हैं.
हाई कोर्ट के निर्देश पर सीआईडी क्राइम ने की जांच
साल 2018 में गुजरात हाइकोर्ट ने इस मामले में अफीम कौन लाया? कहां से लाया और होटल तक किसने पहुंचाई? इसकी जांच के लिए सीआईडी काइम गुजरात को आदेश दिया था. इसके आधार पर एसआईटी का गठन हुआ था. इस मामले की जांच एसआईटी द्वारा की गई, जिसके बाद संजीव भट्ट और तत्कालीन एल.सी.बी. पुलिस इंस्पेक्टर और अब सेवानिवृत्त डीएसपी आईबी व्यास को गिरफ्तार किया गया था.
मामले में तीन महीने की समय सीमा के भीतर नामदार अदालत में चार्जशीट दायर की गई. आरोपी संजीव भट्ट अपनी गिरफ्तारी के बाद से ही जेल में हैं. फिर 2019 में नामदार अदालत में आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया गया. इस दौरान उपरोक्त न्यायिक प्रक्रिया में आरोपी संजीव भट्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट में कई याचिकाएं और आवेदन दायर किए गए थे.
रिटायर डिप्टी एसपी बन गए थे मामले के सरकारी गवाह
गुजरात हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में की गई उन याचिकाओं के संबंध में जांच अधिकारी और विशेष लोक अभियोजक के समन्वय से नामदार अदालत में आवश्यक हलफनामे प्रस्तुत किए गए और उन आवेदनों को खारिज कर दिया गया था. फिर इस मामले का आरोपी रिटायर डिप्टी एसपी आरबी व्यास सरकारी गवाह बनने के राजी हुए, जिसकी वजह से कोर्ट ने उनको सजा माफी दी और केस में साक्षी बनने की मंजूरी दी.
इस प्रकार, आरोपी संजीव भट्ट के खिलाफ विशेष लोक अभियोजकों द्वारा की गई गहन जांच और परीक्षण के अंत में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 21 (सी), 27 (ए), 29, 58 (1), 58 (2) एवं भारतीय दंड संहिता की धारा 116, 167, 204, 343, 465, 471, 120(बी) के तहत उनके आरोप साबित किए गए. इसके आधार पर प्रतिष्ठित न्यायालय कल उनको को दोषी करार दिया.
एक और केस में संजीव भट्ट काट रहे उम्र कैद की सजा
बताते चलें कि इससे पहले जामनगर कस्टोडियल डेथ केस में भी भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. साल 1990 के हिरासत में मौत मामले में पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट और अन्य पुलिस अफसर प्रवीण सिंह जाला को जामनगर जिला अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने प्रवीण सिंह झाला और भट्ट को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया था. इस केस में आठ पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था.
अन्य दोषी पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने आईपीसी की धारा 323 और 506 के तहत दोषी करार दिया था. यह मामला साल 1990 का है. उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर तैनात थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा के वक्त जमजोधपुर में संप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया. इनमें से एक शख्स प्रभुदास वैष्णानी की कथित टॉर्चर के कारण रिहा होने के बाद अस्पताल में मौत हो गई.
गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी का नाम लेकर चर्चा में आए थे
वह अप्रैल 2011 में उस वक्त चर्चा में आए थे, जब उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने का आरोप लगाया था. इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दायर किया था.