गुजरात चुनाव को अब महज 6 से 7 महीने का वक्त बचा हुआ है. बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी... सभी पार्टियां जोर-आजमाइश कर रही हैं. 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के तीन चर्चित चहरे हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर आज क्या कर रहे हैं, उनका राजनीतिक अस्तित्व क्या है? क्या ये तीनों खुद की जगह राजनीतिक पार्टी में बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? 2022 में क्या इनके नाम पर पार्टी चुनाव लड़ेगी? इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
हार्दिक पटेल...
पाटीदार आंदोलन का एक बड़ा चेहरा... जो एक वक्त पर पाटीदारों की 3 से 4 लाख लोगों की रैली को संबोधित करता था. हार्दिक पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग के साथ आंदोलन के मैदान में उतरे थे. दरअसल, हार्दिक पटेल का आंदोलन 2015 में शुरू हुआ था. उसके बाद 2017 के चुनाव में हार्दिक भले ही किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जुड़े लेकिन उसका झुकाव कांग्रेस की और साफ देखा जा सकता था. यहीं वजह थी कि गुजरात में 1998 से कभी 60 का आंकडा पार ना करने वाली कांग्रेस 78 सीट जीती थी. इसके बाद से चर्चा होने लगी कि हार्दिक पटेल कांग्रेस से जुड़ सकते हैं.
हार्दिक ने जैसे-जैसे कांग्रेस की और कदम बढ़ाया, पाटीदार समुदाय उनसे दूर होता गया. हार्दिक आज पाटीदार नेता तो हैं, लेकिन वो ज्यादा कांग्रेस नेता कहलाना पंसद करते हैं. कहा जा रहा है कि इसके पीछे की सोच ये है कि अगर भविष्य में किसी बड़े पद पर जाना है तो अकेले पाटीदार नेता के तौर पर उस पद को हासिल नहीं किया जा सकता है. आज हार्दिक गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी उपाध्यक्ष हैं, लेकिन वे पार्टी आलाकमान से ये शिकायत करते कई बार दिखे कि वे गुजरात कांग्रेस के नेताओं की गुटबाजी का शिकार हो रहे हैं. गुजरात कांग्रेस के स्थानीय कार्यक्रम में उन्हें बुलाया नहीं जाता. आज 2022 का चुनाव सामने है. कांग्रेस में हार्दिक पटेल युवा नेता के तौर पर काम कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के कई सीनियर नेता आज भी उन्हें पसंद नहीं करते हैं.
हार्दिक ने यूथ कांग्रेस के जरिए अपनी जड़ों को कांग्रेस में मजबूत जरूर की हैं. युवा चहरों के जरिए हार्दिक धीरे-धीरे कांग्रेस में अपनी पकड़ को भी मजबूत कर रहे हैं, लेकिन 2022 में अगर सौराष्ट्र के पाटीदारों का बड़ा चेहरा नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल होते हैं तो माना जा रहा है कि हार्दिक पटेल का कद कांग्रेस में कम हो सकता है.
जिग्नेश मेवानी....
जिग्नेश मेवानी दलित आंदोलन से उभरा वो नाम है जिसने ऊना के दलितों पर हुए अत्याचार को लेकर आवाज उठाई. मेवानी ने दलितों के न्याय के लिए आंदोलन शुरू किया. 2017 में चुनाव आया तो जिग्नेश मेवानी ने आरक्षित सीट वडगाम से चुनाव लड़ना पंसद किया और बतौर निर्दलीय उम्मीदरवार चुनाव जीता भी. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवानी ने वडगाम से चुनाव लड़ा तो कांग्रेस ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था, जिसके बाद जिग्नेश मेवानी लगातार सक्रिय राजनीति और अपने दोस्त कन्हैया कुमार के साथ आंदोलन करते दिखे. जिग्नेश मेवानी 2022 में भी चुनाव लड़ना चाहते हैं.
निर्दलीय विधायक और आंदोलनकारी नेता होने की वजह से जिग्नेश मेवानी को ना सिर्फ भाजपा सरकार से अपने इलाके में योजनाओं को लाने और उन्हें धरातल पर लाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी, बल्कि जब कोरोना आया तो वडगाम के मेडिकल सेंटर में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए डोनेशन साइट के जरिए पैसे इकट्ठा किए. इसमें भी सरकार ने पाबंदी लगाते हुए प्लांट को वक्त पर नहीं लगने दिया. हालांकि इसके बाद कांग्रेस के वडगाम के स्थानीय लोगों के जरिए जब जिग्नेश मेवाणी के जरिए विरोध किया गया तो जिग्नेश ने अहमद पटेल का हाथ थामा. उनसे बात की, लेकिन अहमद पटेल की कोरोना में मौत के बाद एक बार फिर जिग्नेश मेवानी को लेकर सवाल खड़े होने लगे. क्या 2022 के चुनाव में जिग्नेश मेवानी इस सीट से चुनाव जीत पाएंगे?
वडगाम सीट पर सब से ज्यादा वोट दलित और मुस्लिमों का है. वैसे इस सीट पर अगर कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारती है तो जिग्नेश को हार का सामना करना पड सकता है. कांग्रेस इस दिशा में आगे सोचे, इससे पहले जिग्नेश ही कांग्रेस में शामिल हो गए. जिग्नेश अब कांग्रेस के जरिए खुद की राजनीति जमीन की तलाश में जुटे हुए हैं.
अल्पेश ठाकोर...
ओबीसी आंदोलन के जरिए अल्पेश ठाकोर चर्चा में आए थे. अल्पेश ठाकोर ने सबसे पहले शराबबंदी का आंदोलन शुरू किया. उत्तर गुजरात के ठाकोर समाज ने अल्पेश की इस शराबबंदी मूवमेन्ट को काफी सराहा और उनका साथ भी दिया. 2017 के चुनाव से पहले अल्पेश कांग्रेस में शामिल हुए. अल्पेश को कांग्रेस जॉइन कराने के लिए राहुल गांधी खुद गुजरात आए थे. 2017 में अल्पेश राधनपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी जीते थे. कहा जाता है कि चुनाव जीतने के बाद अल्पेश मंत्री पद चाहते थे. 2017 में कांग्रेस बहुमत में नहीं आ पाई जिसकी वजह से अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस को छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए.
अल्पेश ठाकोर के बीजेपी जॉइन करने के बाद उपचुनाव हुआ तो धनपुर सीट से अल्पेश ठाकोर चुनावी मैदान में उतरे और कांग्रेस ने उसके सामने रधु देसाई को चुनावी मैदान में उतारा. अल्पेश चुनावी प्रचार में यह दोहराते रहे कि चुनाव खत्म होने के बाद लालबत्ती वाली गाड़ी में आऊंगा, लेकिन अल्पेश का ये सपना आज भी अधूरा है. अल्पेश ठाकोर यहां से उपचुनाव हार गये.
अल्पेश ठाकोर को लेकर जानकार मानते थे कि अल्पेश को भरोसा था कि भाजपा के नेता उन्हें जिताएंगे, लेकिन भाजपा के नेताओं ने ही उन्हें हरा दिया. अल्पेश इसके बाद लगातार हासिए पर जाते रहे. अल्पेश ठाकोर आज भी अपने समाज के नाम पर राजनीति कर रहे हैं. अल्पेश को न तो बीजेपी के संगठन में स्थान मिला है और न ही पार्टी में उनकी ज्यादा कोई खोज खबर लेता है. इतना साफ है कि अल्पेश 2022 में चुनाव लडना चाहते हैं और हो सकता है कि उन्हें बीजेपी एक मौका दे.
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