गुजरात विधानसभा में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ संकल्प पत्र लाया गया. बीबीसी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए उत्साहपूर्ण स्वागत किया गया.
जानकारी के मुताबिक, बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ लाए गए संकल्प पत्र को अब लोकसभा में भेजा जाएगा. विधानसभा में राज्य सरकार के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने कहा कि ये ड्रॉक्यूमेंट्री देश के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली शख्सियत को बदनाम करने के लिए बनाई गई है.
मोदी की छवि को बदनाम करने का आरोप
उन्होंने कहा कि वैश्विक नेता नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भारत विरोधी प्रचार का टूलकिट है. नानावती और शाह आयोग ने भी गोधरा कांड को क्लीन चिट दी थी. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक नेता नरेंद्र मोदी की छवि को बदनाम करने के प्रयास किया गया है.
'सरकार और संगठन की कोई भूमिका नहीं'
संघवी का कहना था कि गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बे में जंजीर खींचना और कार सेवकों को जलाना पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. जांच आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि इस घटना में किसी भी राजनीतिक दल, संगठन या सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. लेकिन, भारत विरोधी तत्वों द्वारा एजेंडा आधारित प्रचार चलाया जा रहा है.
क्या है बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का मामला?
दरअसल, हाल ही में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री आई थी. यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी. केंद्र सरकार ने प्रोपेगेंडा बताते हुए इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी थी. डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर कई यूनिवर्सिटीज में बवाल भी मचा था. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर हुई हैं. ऐसे में विपक्ष आयकर विभाग की छापेमारी को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री से जोड़ कर केंद्र पर निशाना साध रहा है.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के सोशल मीडिया लिंक को ब्लॉक करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इसको लेकर आरएसएस से जुड़ी साप्ताहिक पत्रिका 'पाञ्चजन्य' ने शीर्ष अदालत की आलोचना की है. पत्रिका में कहा गया है कि देश विरोधी ताकतों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को 'टूल' के रूप में उपयोग किया जा रहा है. साप्ताहिक पत्रिका के नवीनतम अंक के संपादकीय में कहा गया है कि मानव अधिकारों के नाम पर आतंकवादियों को बचाने, पर्यावरण के नाम पर भारत के विकास में बाधा बनाने के बाद, अब यह कोशिश की जा रही है कि देश विरोधी ताकतों को भारत में उसके खिलाफ ही प्रचार करने का अधिकार हो.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर केंद्र को शीर्ष अदालत के नोटिस का हवाला देते हुए संपादकीय में आरोप लगाया गया, "सुप्रीम कोर्ट हमारे देश के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन इसका इस्तेमाल भारत के विरोधियों द्वारा अपने रास्ते साफ करने के प्रयासों में एक टूल के रूप में किया जा रहा है."