गुजरात में नगर निगम और जिला पंचायत चुनावों के नतीजों पर हर किसी की नजर टिकी थी. बीजेपी के लिए यह उसकी साख का सवाल था तो कांग्रेस के लिए नाक की बात थी. बुधवार को जब नतीजे आए तो खुशखबरी बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मिली, क्योंकि नगर निगम चुनावों में हर शहर में 'कमल' खिला तो जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को बड़ा झटका दिया.
गुजरात के स्थानीय निकाय में बीजेपी के हाथों शहरी राजपाट आया, लेकिन गांव की सत्ता हाथों से चली गई. सभी छह नगरपालिका में बीजेपी की जीत हुई, जबकि जिला पंचायतों में कांग्रेस ने बढ़त बनाई. यकीनन बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार से मुरझाई बीजेपी को इन नतीजों ने फिर से खिलने का मौका दे दिया है. इसके साथ ही गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सियासी उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल अपनी पहली अग्निपरीक्षा में अव्वल नंबरों से पास हो गई हैं.
क्या कहते हैं शहरों के आंकड़े
अहमदाबाद नगर निगम की कुल 192 सीटों में से बीजेपी के 143, कांग्रेस को 48 और अन्य के खाते में 1 सीट आई है. सूरत की कुल 116 निकाय सीटों में से बाजेपी को 75 और कांग्रेस को 33 सीटें मिली हैं. वडोदरा की कुल 76 सीटों में से बीजेपी की झोली में 54 और कांग्रेस के कब्जे में 14 सीट आई. राजकोट की 72 नगर निगम सीटों में से बीजेपी के खाते में 38 और कांग्रेस के खाते में 34 सीटे आईं.
इसी तरह जामनगर की 64 सीटों में से बीजेपी को 38 और कांग्रेस को 24 सीट पर सफलता मिली. अन्य को 2 से संतोष करना पड़ा. भावनगर की 52 सीटों में 34 बीजेपी के हिस्से और 18 कांग्रेस के हिस्से में पड़ी.
आधार खो चुकी कांग्रेस का उदय
ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस को भी जश्न मनाने का मौका मिला है. जिला पंचायत चुनाव की 31 सीटों में से कांग्रेस ने अप्रत्याशित 21 सीटों पर कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी को सिर्फ 9 सीटों पर संतोष करना पड़ा. जबकि पिछली बार जिला पंचायत की 31 सीटों में से बीजेपी ने 30 कर जीत हासिल की थी और कांग्रेस महज 1 पर सिमट गई थी. पिछले 12 वर्षों में गुजरात में बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगभग हर चुनाव में हारती आ रही कांग्रेस, एक तरह से राज्य में अपना पूरा आधार खो चुकी थी. कांग्रेस ने जीत को बजेपी सरकार के खिलाफ जनादेश बताया है.
'यह लघु-चुनाव की तरह है'
परिणामों से उत्साहित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी ने कहा, 'यह राज्य के लिए एक लघु-चुनाव की तरह है, जहां कांग्रेस अधिकतर क्षेत्रों (ग्रामीण) में जीत रही है. यह राज्य सरकार के खिलाफ जनादेश है.' छह नगर निगमों के लिए मतदान 22 नवंबर को हुआ था, वहीं 31 जिला पंचायतों, 230 तालुका पंचायतों और 56 नगर पालिकाओं के लिए मतदान 29 नवंबर को हुआ था.
मोदी, गुजरात, आनंदीबेन और पटेल आरक्षण
स्थानीय निकाय चुनावों को मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की लोकप्रियता की कसौटी के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य में यह पहले महत्वपूर्ण चुनाव हैं. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये चुनाव पटेल आरक्षण आंदोलन की पृष्ठभूमि में भी हो रहे हैं. अब तक पूरी तरह बीजेपी को समर्थन देते रहे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पटेल समुदाय ने आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई पुलिसिया कार्रवाई को लेकर राज्य सरकार का विरोध किया है और कांग्रेस इससे फायदा होने की उम्मीद कर रही थी.
पटेल समुदाय को ओबीसी के तहत आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे समुदाय ने अपने सदस्यों से बीजेपी के खिलाफ वोट करने की भी अपील की थी.