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गुजरात: विधानसभा चुनाव में अर्श पर थी कांग्रेस, साढ़े तीन साल में फर्श से भी गायब

गुजरात में एक तरफ कांगेस के विधायकों की संख्या लगातार घट रही है तो दूसरी तरफ निकाय चुनाव में पार्टी का रहा-सहा जनाधार भी खिसक गया है, जिससे पार्टी फिर दोबारा से खराब दौर में लौटती दिख रही है. निकायों चुनाव के परिणाम ने यह साफ कर दिया कि गुजरात के शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी बीजेपी की पकड़ मजबूत बनी है.

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गुजरात कांग्रेस नेता
गुजरात कांग्रेस नेता
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2017 के चुनाव में बीजेपी को जीतने में पसीने छूट गए थे
  • कांग्रेस का गुजरात के ग्रामीण इलाके में खिसकता जनाधार
  • कांग्रेस के विधायक छोड़ रहे साथ और चुनाव में हार

गुजरात के 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजपी को लगभग सत्ता से बाहर करने की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतिम समय में किए प्रचार ने बीजेपी की लाज बचा ली थी. अब साढ़े तीन साल के बाद सूबे में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने सब कुछ गंवा दिया है. गुजरात में एक तरफ कांगेस के विधायकों की संख्या लगातार घट रही है तो दूसरी तरफ निकाय चुनाव में पार्टी का रहा-सहा जनाधार भी खिसक गया है, जिससे पार्टी फिर दोबारा से खराब दौर में लौटती दिख रही है.

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गुजरात में नगर निगम चुनाव के बाद नगरपालिका, जिला पंचायत और तहसील पंचायत चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्ड जीत मिली है जबकि कांग्रेस को इन चुनावों में भी करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. निकायों चुनाव के परिणाम ने यह साफ कर दिया कि गुजरात के शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी बीजेपी की पकड़ मजबूत बनी है. वहीं, बीजेपी के साथ आम आदमी पार्टी और AIMIM की राज्य ग्रामीण इलाके में एंट्री कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि मोदी के गुजरात में रहते हुए भी कांग्रेस ग्रामीण इलाके में अपनी पकड़ को मजबूत बनाए हुई थी, जो अब पूरी तरह से उसके हाथ से छूटते दिख रहे हैं. 

100 फीसदी सीटों के लक्ष्य की ओर BJP

गुजरात पहला राज्य है, जहां किसी भी दल ने सौ फीसद सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. लोकसभा में लगातार दूसरी बार क्लीन स्वीप करने के बाद, उपचुनावों के बाद महानगरपालिका और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 80 फीसदी सीटें जीतकर यह संकेत भी दे दिया है कि वह सौ फीसदी लक्ष्य की ओर बढ़ रही है. राज्य की सभी 31 जिला पंचायतों में पहली बार बीजेपी ने कब्जा जमाया है जबकि कांग्रेस एक भी जिले में अपना प्रमुख नहीं बना सकी है. हालांकि, 2015 के पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने 31 में से 22 जिला पंचायतों पर कब्जा जमाया था और बीजेपी को महज 7 जिला पंचायतें मिली थीं. इसी जिला पंचायत चुनाव ने कांग्रेस को 2017 में संजीवनी दी थी. 

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कांग्रेस में संगठन से लेकर प्रदर्शन तक का संकट 

वहीं, 81 नगर पालिकाओं में से 75 में बीजेपी को जीत मिली है. कांग्रेस को केवल तीन नगर पालिकाओं में बहुमत मिला है. तीन नगर पालिका अन्य दल के खाते में गईं. दूसरी तरफ 231 तहसील पंचायतों में से 196 पर बीजेपी ने कब्जा किया जबकि कांग्रेस 33 पर सिमट गई. दो तहसील पंचायतों में अन्य दलों को बहुमत मिला. इससे पहले गुजरात के छह नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस को करारी मात ही नहीं खानी पड़ी बल्कि कई जगह पार्टी का खाता भी नहीं खुला है. प्रदेश में कांग्रेस घुटने टेकने लगी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां के प्रदेश अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया है.

कांग्रेस नहीं उठा सकी परिस्थितियों का फायदा

गुजरात निकाय और पंचायत चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है. प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद कांग्रेस के लिए गुजरात में परिस्थिति बदलने का मौका दिखा था. खासकर यह देखते हुए कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंतिम दौर के धुआंधार प्रचार से कहीं जाकर बीजेपी लगातार छठी बार सत्ता में वापसी कर पाई थी. इन चुनावों में पार्टी 100 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी. 

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कांगेस के लिए दोतरफा चुनौती

गुजरात की 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी 99 सीटों पर अटक गई थी जबकि कांग्रेस को 80 सीटों पर जीत मिली थी. इससे बीजेपी के गुजरात की जीत का मॉडल बिखरने की आहट शुरू हो गई थी, लेकिन पिछले साढ़े तीन सालों में बीजेपी ने जबरदस्त वापसी की तो कांग्रेस एक बार फिर पुराने खराब दौर की ओर लौटती दिख रही है. यही नहीं, कांग्रेस की चिंता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि ग्रामीण इलाके में भी पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है और आम आदमी पार्टी और AIMIM जैसे दलों को एंट्री मिली है. इस तरह से गुजरात में कांग्रेस के लिए दो तरफा चुनौती खड़ी हो गई है.  

बीजेपी के सबसे बेहतर प्रदर्शन

गुजरात के शहरी मतदाता कितनी तेजी से कांग्रेस से दूर हो रहे हैं, इसका एक नमूना भी इस चुनाव परिणाम में देखने को मिला है. पार्टी ने 2015 में कुल 30.6 फीसदी सीटें जीती थीं, लेकिन यह घटकर इस बार यह आंकड़ा महज 9.55 फीसदी रह गया है. यानी कांग्रेस ने बीते छह सालों में 21.05 फीसदी सीटें खो दी हैं. ऐसे ही ग्रामीण मतदाताओं में भी कांग्रेस की लोकप्रियता काफी तेजी से घटी है. 2015 में कांग्रेस ने 31 जिला पंचायत में से 22 पर कब्जा जमाया था जबकि इस बार एक भी जिला नहीं बचा सकी. वहीं, बीजेपी 7 से बढ़कर 31 पर पहुंच गई है, जो कि अब तक का पार्टी का सबसे बेहतर रिकॉर्ड है. कांग्रेस के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. 

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नए चेहरे नहीं दिखा सके करामात

गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जय प्रकाश प्रधान कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस यहां सक्रिय नजर नहीं आ रही है. कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेताओं के बजाय नए चेहरों को आगे किया, लेकिन वो भी बीजेपी के खिलाफ जमीन पर कोई खास काम नहीं कर सके. पाटीदारों के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हार्दिक पटेल भी सूबे में अब कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के नेता बन चुके हैं, लेकिन पाटीदार समुदाय के वोटों को कांग्रेस के साथ जोड़ नहीं सके. यही वजह रही कि पाटीदार बहुल शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में कांग्रेस को करारी हार मिली है. 

नेताओं के जाने से परेशान है कांग्रेस 


वह कहते हैं कि राहुल गांधी के करीबी राजीव सातव गुजरात कांग्रेस के प्रभारी हैं, लेकिन वह अशोक गहलोत की तरह से काम नहीं कर सके. ऐसे ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भरतसिंह के सोलंकी के चचेरे भाई अमित चावड़ा को 2018 में जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस हमेशा बैकफुट पर रही. कांग्रेस के नेता एक के बाद एक पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी में दामन थाम रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस काफी समय से अपने नेताओं द्वारा पार्टी छोड़कर चले जाने की समस्या से जूझ रही है. 

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BJP के अलावा AAP और AIMIM भी बने चुनौती
वहीं, दूसरी ओर बीजेपी 2017 के चुनाव के बाद से ही अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जुट गई थी. बीजेपी ने गांव-गांव में अपने संगठन को मजबूत किया और पाटीदार समुदाय की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की है, जिसका नतीजा निकाय और पंचायत चुनाव में दिखा है. एंटी बीजेपी वोटरों को गुजरात में एक नया विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी और AIMIM दिख रही है. ऐसे में बीजेपी विरोधी वोट कांग्रेस के बजाय इन दोनों पार्टियों के साथ जाना बेहतर समझा है. ऐसे में अब देखना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कैसे अपने जनाधार को दोबारा से मजबूत करती है फिर अपने पुराने खराब दौर में ही रहेगी?

 

  • क्या गुजरात निकाय चुनाव में जीत का फायदा बीजेपी को आगामी चुनावों में भी मिलेगा?

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