गुजरात सरकार ने 10 फीसदी आरक्षण से जुड़े नियम को बदल दिया है. इसका असर दूसरे राज्यों से जाकर गुजरात में नौकरी की चाहत रखने वाले कैंडिडेट्स पर पड़ेगा. नए नियम के मुताबिक बाहर से आए जनरल कैटेगरी के उन्हीं विद्यार्थियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिनका परिवार 1978 के पहले से गुजरात में आकर बसे हों. 1978 के बाद आकर गुजरात में बसने वाले सामान्य कैटेगरी के लोग इस आरक्षण से अब वंचित रहेंगे.
उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने इस मामले कि घोषणा करते हुए कहा कि, आरक्षण से वंचित सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को केन्द्र सरकार द्वारा दस फीसदी आरक्षण देने की प्रक्रिया गुजरात में शुरू कर दी गई है. नितिन पटेल ने ये बात साफ कर दी कि आरक्षण का फायदा ऐसे लोगों को नही मिलेगा जो गुजरात में 1978 के बाद यहां आकर बसे हैं. शिक्षा और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए लागू 33 प्रतिशत आरक्षण का कोटा इसमें भी प्रभावी होगा. इस 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ आठ लाख रुपये तक वार्षिक आय वाले लोगों को ही मिलेगा.
गुजरात सरकार के इस फैसले का कांग्रेस ने विरोध किया है. कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी का कहना है कि गुजरात के विकास में यहां बसे हरेक इंसान का योगदान है, ऐसे में सरकार द्वारा भेदभाव ठीक नहीं है. कांग्रेस ने कहा कि इस नियम का पालन कर सरकार भेदभाव को बढ़ावा दे रही है.
यहीं नहीं 1978 के बाद गुजरात में आए हजारों लोगों ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है. प्रमोद गुप्ता साल 2000 में गुजरात आए हैं, वह सरकार के फैसले से निराश हैं. प्रमोद गुप्ता ने कहा कि वह पिछले 18 सालों में पूरी तरह से गुजराती हो गए, लेकिन गुजरात की सरकार ये मानने को तैयार नहीं है, और नागरिकों के बीच अलगाव का बीज बो रही है.
बता दें कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक रुप से कमजोर जनरल कैटेगरी के लोगों को नौकरियों और एडमिशन में 10 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की है. इस बावत सरकार ने संसद में कानून बनाया है. इस कानून को कई राज्यों ने अपना लिया है.