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गुजरात में शराबबंदी पर याचिका- क्या खाएं-पीएं, सरकार तय नहीं कर सकती, सुनवाई को हाईकोर्ट राजी

गुजरात सरकार के सालों पुराने शराबबंदी कानून के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट तैयार हो गई है. हाईकोर्ट ने इस याचिका को मंजूर कर लिया है. याचिका में दलील दी गई थी कि कोई व्यक्ति क्या खाएगा और क्या पिएगा, इसे सरकार तय नहीं कर सकती.

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गुजरात हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
गुजरात हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शराबबंदी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका मंजूर
  • गुजरात में 1960 से लागू है शराबबंदी का कानून

गुजरात की विजय रुपाणी सरकार (Vijay Rupani Government) को एक बार फिर से हाईकोर्ट से झटका लगा है. गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) शराबबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई है. गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल ने याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने को कहा था, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.

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दरअसल, राइट टू प्राइवेसी (Righ To Privacy) के तहत ये याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें शराबबंदी (Liquor Ban) कानून को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया था. याचिकाकर्ता का कहना था कि कोई व्यक्ति घर पर बैठ कर क्या खाएगा और क्या पिएगा, इसे सरकार तय नहीं कर सकती. 

हाईकोर्ट याचिका पर सुनवाई करेगी या नहीं? इसको लेकर सोमवार को कोर्ट में बहस चल रही थी. इस दौरान गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल ने कहा कि याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जाना चाहिए. लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी अर्जी को खारिज कर दिया और याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई. शराबबंदी कानून के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी.

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याचिका में क्या कहा गया था?

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में कहा था, घर की चार दिवारों की बीच इंसान क्या खाता है, या क्या पीता है, इस पर सरकार रोक नहीं लगा सकती और वो सरकार तय नहीं कर सकती है. याचिकाकर्ता की इस अर्जी में ये भी कहा गया है कि दूसरे राज्य से शराब पीकर अगर कोई व्यक्ति गुजरात आता है तो उस पर भी सरकार ने रोक लगाई है, जो ठीक नहीं है. सवाल खड़ा किया गया था कि जहां शराबबंदी नहीं है और वहां से अगर कोई शराब पीकर आता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कितनी उचित है?

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में लिखा है कि शराबबंदी के पीछे का उद्देश क्या है, ये कानुन में कहीं पर भी जिक्र नहीं किया गया है. तब सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने कहा कि जनता की सेहत की चिंता करते हुए शराबबंदी का कानून लाया गया है. 

हालांकि, एडवोकेट जनरल ने बताया कि गुजरात में 6.75 करोड की बसावट के बीच 21 हजार लोगों को लिकर परमिट दिया गया है. जबकि विजिटर और टूरिस्ट परमिट जैसे टेम्पररी परमिट को मिलाकर 66 हजार लोगों को परमिट दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस याचिका की हाईकोर्ट में नहीं सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया गया. 

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गुजरात में 1960 से लागू है शराबबंदी

आजादी के बाद 1949 में बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट लाया गया था. उस वक्त गुजरात और बॉम्बे एक ही राज्य हुआ करते थे. 1960 में जब बॉम्बे से अलग होकर गुजरात अलग राज्य बना, तभी वहां शराबबंदी लागू कर दी गई थी. शराबबंदी की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करती है. 2017 में ही सरकार ने शराबबंदी से जुड़े कानून में संशोधन कर सख्त सजा का प्रावधान किया था. इसके तहत अगर कोई गैरकानूनी तरीके से शराब की बिक्री करता है तो उसे 10 साल कैद और 5 लाख रुपये जुर्माने की सजा हो सकती है.

 

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