पुलिस कर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर के प्रचार-प्रसार के तरीके पर असंतोष व्यक्त करते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जिला कलेक्टर और पुलिस आयुक्त जैसे अधिकारी 'भगवान की तरह व्यवहार करते हैं' और आम नागरिकों के लिए पहुंच से बाहर हैं. मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी मायी की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि वह जनता को ग्रीवांस सेल (शिकायत प्रकोष्ठ) और हेल्पलाइन नंबर के बारे में स्पष्ट तरीके से सूचित करे.
दरअसल, ट्रैफिक कांस्टेबलों ने अहमदाबाद शहर में देर रात यात्रा कर रहे एक जोड़े से कथित तौर पर पैसे वसूले थे. अदालत ने इस घटना की समाचार रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया था और इस संबंध में दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी. मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल ने कहा, 'क्या आप उम्मीद करते हैं कि एक सामान्य नागरिक आपके कार्यालय के सामने खड़ा होगा? उसे ग्रीवांस सेल में प्रवेश करने की अनुमति कौन देगा? आपके डीएम (जिला मजिस्ट्रेट) और आयुक्त भगवान की तरह, राजा की तरह व्यवहार करते हैं. हमें कुछ भी कहने के लिए उकसाएं नहीं, ये जमीनी हकीकत हैं.'
'सामान्य नागरिक के लिए थाने में प्रवेश करना आसान नहीं'
उन्होंने ग्रीवांस सेल के प्रचार के तरीके पर नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा, 'एक सामान्य नागरिक के लिए, पुलिस स्टेशन में प्रवेश करना आसान नहीं है और आयुक्त या डीएम का कार्यालय पूरी तरह से उनकी पहुंच से बाहर है.' अदालत ने पहले अहमदाबाद पुलिस आयुक्त को दोषी पुलिस कर्मियों या अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए नागरिकों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर और शिकायत कक्ष स्थापित करने का निर्देश दिया था. हाई कोर्ट ने कमिश्नर से इस नंबर का प्रचार-प्रसार करने को भी कहा था ताकि लोग इसे जानें और जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल करें. अदालत ने कहा था कि किसी व्यक्ति को पता होना चाहिए कि शिकायत प्रकोष्ठ से कैसे संपर्क करना है और किससे संपर्क करना है
क्या है पूरा मामला? जिसका गुजरात HC ने लिया स्वत: संज्ञान
अगस्त में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, दो ट्रैफिक पुलिस कांस्टेबल और एक ट्रैफिक ब्रिगेड जवान ने एक कपल को धमकी दी कि उनके खिलाफ 'देर रात बाहर रहने' और 'नियमों का उल्लंघन' करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. यह कपल विदेश में छुट्टियां बिताने के बाद अहमदाबाद हवाई अड्डे से अपने एक साल के बेटे के साथ कैब में घर जा रहा था.
ट्रैफिक कांस्टेबलों में से एक ने कथित तौर पर उन्हें छोड़ने के लिए 2 लाख रुपये की मांग की और 60,000 रुपये पर समझौता हुआ. रिपोर्ट में कहा गया है कि वह कथित तौर पर पति को एटीएम में ले गया और नकदी निकालने के लिए मजबूर किया, जबकि उसका सहयोगी महिला और बच्चे के साथ कैब में बैठा रहा. गुजरात हाई कोर्ट ने इस घटना से संबंधित समाचार रिपोर्ट पर संज्ञान लिया और एक जनहित याचिका शुरू की.