देश में कृषि कानून को लेकर किसानों का संघर्ष जारी है. देश के अलग-अलग हिस्सों में जारी किसान आंदोलन के बीच गुजरात से एक हैरान करने वाला मामला आया है. गुजरात में एक किसान सरकारी मदद के लिए लगातार पंचायत दफ्तर के चक्कर काटता रहा, लेकिन जब पैसा नहीं मिला तो उसी दफ्तर में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. किसान सरकारी योजना का लाभ ना मिलने से परेशान था और लगातार पंचायत घर में चक्कर काटता था.
ये मामला गुजरात के महिसागर जिले का है. जहां बाकोर गांव में किसान बलवंत सिंह ने पंचायत के दफ्तर में फांसी लगा ली. किसान ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है, ‘मेरी आत्मा में अब भी बीजेपी है, लेकिन मुझ गरीब का काम किसी ने भी नहीं किया’.
इस मामले में चौंकाने वाली बात ये है कि आत्महत्या करने से पहले बलवंत सिंह ने बाकोर पुलिस थाने में पंचायत घर से ही फोन किया, फोन पर पुलिसवालों से कहा कि सरकारी कर्मचारी उसका काम नहीं कर रहे हैं और वो आत्महत्या करने जा रहा है. लेकिन पुलिसवालों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, नतीजा ये हुआ कि किसान ने आत्महत्या ही कर ली.
सरकार की ओर से भले ही लगातार किसानों की आय दोगुनी करने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन ऐसे मामले सच्चाई को अलग ही बयां करते हैं. आत्महत्या करने वाले बलवंत सिंह की जेब से जो चिठ्ठी मिली है, उसमें उसने महिसागर के सांसद, विधायक जिग्नेश सेवक दोनों के नाम का जिक्र किया है.
‘मर जाऊं, लेकिन बीजेपी को मानता रहूंगा’
सुसाइड नोट में किसान बलवंत ने लिखा है कि सेवक का मतलब सेवा करना होता है, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है. मैं एक गरीब आदमी हूं और वर्षों से बीजेपी में विश्वास करता था. मेरी आत्मा में भाजपा है. बीजेपी के साथ अंत तक रहा, भले ही मैं मर जाऊं, फिर भी मैं बीजेपी को मानता रहूंगा. पार्टी में आज भी मेरी आत्मा है लेकिन गरीब होने की वजह से मुझे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला.
बलवंत सिंह की मौत के बाद उनके बेटे राजेंद्र भाई ने बताया कि उनके पिता ने अपनी ज़मीन का हिस्सा बेचकर घर बनाने का सपना देखा था, वो पांच साल में प्रधानमंत्री आवास योजना की सहायता से अर्जी भी लगा रहे थे. उनका नाम भी लिस्ट में आया, लेकिन पंचायत घर से उन्हें आर्थिक मदद नहीं मिली. इसीलिए वो यहां चक्कर काटते थे.